सुप्रीम कोर्ट(Suprem Court) ने इंद्रप्रस्थ अपोलो(Apollo) अस्पताल की कड़ी आलोचना की है. अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि अस्पताल ने गरीबों को मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान नहीं की, तो इसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के अधीन कर दिया जाएगा. कोर्ट ने अस्पताल को यह भी बताया कि इसे लाभ और हानि के बिना संचालित किया जाना चाहिए था, लेकिन वर्तमान में इसका व्यावसायिक उपयोग हो रहा है.

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अस्पताल को कोर्ट की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 25 मार्च 2025 को स्पष्ट किया कि यदि इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं, तो वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को इसे अपने अधीन लेने का निर्देश देगा. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पट्टा समझौते के उल्लंघन के मामले को गंभीरता से लिया, जिसमें इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IMCL) द्वारा संचालित अस्पताल को एक तिहाई गरीब मरीजों को भर्ती करने और आउटपेशेंट डिपार्टमेंट में 40 प्रतिशत मरीजों को बिना भेदभाव मुफ्त इलाज प्रदान करने की जिम्मेदारी दी गई थी.

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गरीब लोगों का मुफ्त में हो इलाज

पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि यह जानकारी मिली कि गरीबों को मुफ्त चिकित्सा सेवाएं नहीं मिल रही हैं, तो अस्पताल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को सौंप दिया जाएगा. पीठ ने यह भी बताया कि अपोलो ग्रुप को दिल्ली के एक प्रमुख क्षेत्र में 15 एकड़ भूमि एक रुपये के प्रतीकात्मक पट्टे पर दी गई थी, और इसे ‘लाभ और हानि’ के बिना चलाने का प्रावधान था, लेकिन यह अब एक पूरी तरह से वाणिज्यिक उद्यम में बदल गया है, जहां गरीबों को इलाज प्राप्त करने में कठिनाई होती है. IMCL के वकील ने कहा कि अस्पताल एक संयुक्त उद्यम के रूप में संचालित हो रहा है, जिसमें दिल्ली सरकार की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और उसे भी इस व्यवसाय से समान लाभ मिल रहा है.

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मुनाफा कमा रहा अस्पताल

जस्टिस सूर्यकांत ने वकील से remarked किया कि यदि दिल्ली सरकार गरीब मरीजों की सेवा करने के बजाय अस्पताल से लाभ अर्जित कर रही है, तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि अस्पताल को 30 वर्षों के लिए भूमि का पट्टा दिया गया था, जो 2023 में समाप्त होने वाला था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से यह जानने के लिए कहा कि क्या इस पट्टे के समझौते को अपडेट किया गया है या नहीं.

शीर्ष अदालत IMCL द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के 22 सितंबर 2009 के आदेश को चुनौती दी गई थी. उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि अस्पताल प्रशासन ने गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने के समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है. अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से यह भी पूछा कि यदि पट्टा समझौता नवीनीकरण नहीं किया गया है, तो उस भूमि के संबंध में क्या कानूनी कार्रवाई की गई है. इसके अलावा, पीठ ने अस्पताल में उपलब्ध कुल बिस्तरों की संख्या और पिछले पांच वर्षों के ओपीडी मरीजों का रिकॉर्ड भी मांगा.