पंकज सिंह भदौरिया,दन्तेवाड़ा. महिला बाल विकास विभाग ट्रायबल क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्रों के नाम पर दर्जनों महत्वाकांक्षी योजनाओं को चलाने का दावा करता है. मगर दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा परियोजना के अंदुरिनी क्षेत्रों में ताले जड़े मिले, जो केंद्र विभाग की सारी दावेदारियों को मिथ्या साबित करने के लिए पर्याप्त है. परियोजना मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर गढ़मिरी और पूतमरका गांव में सभी केंद्र में 0 बच्चे मिले, साथ ही केंद्रों की सहायिका भी गायब मिली. कुछ केंद्रों में पूरक पोषण आहार महीनों से नहीं पहुँचा और इन सबके बावजूद विभागीय अधिकारी समस्त योजनाओं को बराबर संचालित कर कुपोषण दूर करने का दावा करते है.

अंधोड़ीपारा आंबा केंद्र में जब हम पहुँचे तो केंद्र एक शेड पर दिखा. ग्रामीणों ने बताया कि इसी जगह आंगनबाड़ी लगती है. मगर महीनों से इस केंद्र की कार्यकर्ता सोमड़ी नहीं आई है. वहीं केंद्र की सहायिका भीमे ने बताया कि हमारे केंद्र में 15 बच्चे दर्ज है, लेकिन बच्चों के लिए पूरक पोषण आहार 2 महीने से नहीं है. न तो गर्म भोजन, चावल, दाल, नमक है. केंद्र खोलकर भी बच्चों को क्या खिलाएंगे इसलिए आंगनबाड़ी बन्द है.

रजिस्टर में 50 बच्चे दर्ज पर मौजूद एक भी नहीं

इसी तरह से जब हम दूसरे केंद्र पूत मरका में 12 बजे पहुँचे, जहाँ केंद्र में 50 बच्चे दर्ज है, मगर 1 भी बच्चा मौजूद नहीं था. इस केंद्र की कार्यकर्ता पायके भी मौजूद नहीं थी. केंद्र में सहायिका लक्षे थी. जो सिर्फ लकड़ियों से चूल्हे फूंकने की मशक्कत कर रही थी. क्योकि गैस सिलेंडर महीनों पहले ही खत्म हो चुका था. इसी तरह पुतमरका 2 नम्बर का केंद्र भी बन्द दिखा. सहायिका कार्यकर्ता भी नदारद दिखी. इसी गांव के पूतमरका कामापारा आंगनबाड़ी इस झोपडी में नजर आई. जिस केंद्र की कार्यकर्ता सोमड़ी कोवासी और सहायिका नहीं थी. मतलब पूरी तरह से यह केंद्र भी बन्द चल रहा है. गढ़मिरी पटेलपारा में संचलित आम्बा केंद्र से कार्यकर्ता रामबती और सहायिका हिड़मे भी नदारद है.

धान काटने में लगी हैं कार्यकर्ता

ग्राम पंचायत के गढ़मिरी आमापारा में एक केंद्र दिखा जिस पर सहायिका कमली नजर आई. मगर केंद्र की कार्यकर्ता सोमड़ी नदारद है. सहायिका ने जानकारी देते हुए बताया कि धान काटने में कार्यकर्ता लगी हुई है. हमारे यहाँ 19 बच्चे दर्ज है, मगर आज 1 भी बच्चा नहीं आया है. जब आते तो भोजन बनाते है. साथ ही यह भी जानकारी दी कि इस केंद्र पर 45 दिनों से पूरक पोषण आहार की सप्लाई नहीं पहुँची है.

केंद्रों में 1 भी बच्चा नहीं, पर हर महीने निकल रहा लाखों

आपको जानकर शायद हैरानी होगा कि कुआकोंडा परियोजना में 154 केंद्रों पर महिला बाल विकास विभाग दर्जनों योजनाएं चलाकर लाखों रुपये प्रतिमाह निकाल रहा है. मगर केंद्रों की स्थिति इस ग्राउंड रिपोर्ट से नजर आ रही है. जब केंद्रों में 1 भी बच्चा पहुँचता ही नहीं है, तो आखिर सभी योजनाएं चल कैसे जाती है. खैर यह फार्मूला तो विभाग ही बता सकता है. फिलहाल हम आपको जानकारी के लिए बता देते है कि कुआकोंडा परियोजना में पूरक पोषण आहार और गर्म भोजन जैसी योजनाओं के नाम पर कुआकोंडा विभाग ने कितना पैसा निकाल रहा है. हमारे पास पुख्ता मौजूद जानकारी के मुताबिक बीते महीने मार्च में कुआकोंडा परियोजना 10 लाख 2 हजार 829 रुपए ट्रेचरी के बिल नम्बर 231,271,272,273,277,280,285,291 और 292 से कुआकोंडा परियोजना को आहरण हुआ है.

एक परियोजना पर हुआ 40 लाख का खर्च

जून महीने में 9 लाख 42 हजार 180 रुपए बिल क्रमांक 22 से 25 और 33 से 37 औऱ 40 से 41 तक आहरण हुआ है. इसी तरह से जुलाई माह में 4 लाख 75 हजार 119 रुपए ट्रेजरी में 54, 55, 60, 62 और 63 के बिल से राशि निकली हुई है. इसी तरह से अक्टूबर महीने में 15 लाख 27 हजार 891 रुपए बिल नम्बर 231, 271, 272, 273, 277, 280, 285, 291 और 292 नम्बर के बिल लगाकर आहरण किए गए है. मात्र इन चार महीनों में ही 40 लाख रुपए लगभग एक परियोजना पर सरकार ने पैसा खर्च कर दिया है. लेकिन केंद्रों की हालत देखते हुए नहीं लगता कि सरकार का खर्च किया पैसा कुआकोंडा में नौनिहालों के ऊपर हो रहा है. क्योंकि अभी हाल में ही परियोजना प्रभारी बिंदु स्वर्णकार पर कमीशन खोरी का एक ऑडियो क्लीप भी जग जाहिर हुआ था.

ये कहा अधिकारी ने

इस मामले में जिला कार्यक्रम अधिकारी अजय शर्मा से जब हमने बात कि तो उन्होंने कहा कि मैं बन्द केंद्रों की जानकारी खुद ही जाकर पता करुंगा. केंद्रों का हाल ऐसा कैसे हो सकता है कि एक भी केंद्र पर बच्चा नहीं है. जांच करने के बाद यदि मामला सही पाया जाता है तो इन पर कार्रवाई करने की बात कहीं है.