जीवन को लेकर एक सूत्र वाक्य है- “जल है तो कल है”. इसी सूत्र वाक्य को छत्तीसगढ़ सरकार ने महत्वकांक्षी सुराजी योजना से जोड़ा है. और सुराजी योजना से जुड़ा है नरवा प्रोजेक्ट. नरवा प्रोजेक्ट के माध्यम छत्तीसगढ़ में जल संरक्षण का जो काम हो रहा है वह सराहनीय और अन्य राज्यों के अनुकरणीय है.

‘नरवा’ छत्तीसगढ़ी शब्द है, जिसका हिंदी में अर्थ नाला है. नाला अर्थात नदी से आकार और लंबाई में छोटा वह जल स्त्रोत जो बरसाती और नदियों का सहायक होता है. लेकिन छत्तीसगढ़ के संदर्भ में जब नरवा को लेकर हम बात करते है तो इसकी अहमियत या कहे कि उपयोगिता अधिक हो जाती है. क्योंकि 40 प्रतिशत से ज्यादा वन क्षेत्र से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ में नदी और नाले भी अत्याधिक है.

लिहाजा ग्रामीण पृष्ठभूमि और किसान परिवार से आने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इस बात को भली-भांति जानते हैं कि नरवा राज्य के विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण है. नरवा के जरिए अगर जल को सहेजे का काम कर लिया तो मौजूदा दौर में जहाँ विश्व भर में जल संकट गहराते जा रहा है वहाँ यह एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है. और आज बीते दो वर्षों में जब नरवा प्रोजेक्ट के माध्यम से हुए काम को देखे तो उससे यह साफ हो जाता है कि वाकई यह जल संरक्षण के क्षेत्र में एक क्रांतकारी कदम ही है, जिस ओर भूपेश सरकार तेजी से काम कर रही है.

छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी में से एक नरवा के माध्यम राज्य में किस तरह से काम हो रहा है आइये आपको बताते हैं.

1310 नालों की दशा संवार कर जल संरक्षण

प्रथम चरण में छत्तीसगढ़ राज्य में 1385 नरवा (नाला) उपचार के लिए चिन्हित किए गए हैं. जिसमें से 1372 नालों में वर्षा जल की रोकथाम के लिए बोल्डर चेक, गली प्लग, ब्रश हुड, परकोलेशन टैंक जैसी संरचनाओं का निर्माण एवं उपचार कर पानी को रोकने और भू-जल स्तर बेहतर बनाने प्लान तैयार कर काम कराया जा रहा है.

सुराजी योजना के तहत अब तक 1310 नालों में वर्षा जल को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के 71 हजार 831 स्ट्रक्चर बनाए जाने की मंजूरी दी गई है, जिसमें से 51 हजार 742 स्ट्रक्चर का निर्माण हो चुका है. अभी 9 हजार 685 स्ट्रक्चर निर्माणाधीन है. लगभग दो सालों से छत्तीसगढ़ राज्य में भू-जल संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में किए जा रहे कार्यों का सकारात्मक परिणाम भी अब दिखाई देने लगा है.

केंद्र सरकार ने की सराहना, मिला राष्ट्रीय पुरस्कार

छत्तीसगढ़ राज्य में पानी को रोकने की इस मुहिम को केन्द्र सरकार ने न सिर्फ सराहा है, बल्कि सूरजपुर और बिलासपुर जिले को नेशनल वाटर अवार्ड से सम्मानित भी किया है. यह नेशनल वाटर अवार्ड बिलासपुर जिले को नदी-नालों के पुनरूद्धार के लिए और सूरजपुर जिले को जल संरक्षण के उल्लेखनीय कार्यों के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से दिया गया.

महात्मा गांधी जो कहा था उसे सच कर रहे हैं- भूपेश बघेल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना के माध्यम से गांवों को विकसित और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की पहल की जा रही है. दरअसल यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों का गांव गढ़ने की दिशा में बढ़ते कदम है. इसके माध्यम से नदी-नालों एवं पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देकर पौष्टिक खाद्यान्न, फल तथा सब्जी-भाजी के उत्पादन को बेहतर बनाना है, ताकि गांव आर्थिक रूप से समृद्ध हो सके. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने वर्धा के सेवा आश्रम में प्रार्थना सभा में कहा था कि हमारी दृष्टि दिल्ली के बजाय देहात की ओर होनी चाहिए. देहात हमारा कल्पवृक्ष है. कल्पवृक्ष हर इच्छाओं को पूरा करता है. छत्तीसगढ़ सरकार सुराजी गांव योजना के माध्यम से ग्रामीण संस्कृति, परंपरा और प्राकृतिक संसाधनों को सहेज कर सशक्त, खुशहाल और समृद्ध गांव गढ़ रही है.

गाँव-गाँव बोहात हे गंगा के धार

जानकारी के मुताबिक राज्य के जिन-जिन क्षेत्रों में नरवा उपचार के काम हुए हैं, वहां भू-जल स्तर में आशातीत वृद्धि हुई है. नालों में जल भराव होने से किसान अब बेहतर तरीके से फसलोत्पादन के साथ-साथ साग-सब्जी की भी खेती करने लगे हैं. नालों के पानी को लिफ्ट करने से किसानों को सिंचाई की भी सुविधा मिली है.

नरवा प्रोजेक्ट माध्यम से जिस तरह से जल संरक्षण का काम हुआ है और हो रहा है उससे आज बरसाती नाले अभी पानी से लबालब हैं. किसानों को अब हर समय में पानी उपलब्ध हो रहा है. हालांकि अभी सभी गाँवों तक नरवा का उपचार होना बाकी है. लेकिन जिन क्षेत्रों में नरवा को नए सिरे से व्यवस्थित किया जा चुका है, वहाँ के लोग, किसान अब यही कह रहे हैं-
‘नरवा’ योजना ले होवत हे बिकास आपार, गाँव-गाँव बोहात हे गंगा के धार