क्रोध एक सामान्य, स्वस्थ भावना है लेकिन यह अस्वास्थ्यकर है जब यह हर समय नियंत्रण से बाहर निकलता है. क्रोध आपके संबंधों, आपके स्वास्थ्य और आपके मन की स्थिति के लिए हानिकारक हैं. किसी भी भावना की तरह, यह आपको बता रहा है कि कोई स्थिति परेशान कर रही है, या कोई बात अनुचित है या गलत है. गुस्सा एक सुनामी जैसा है, जो जाने के बाद बर्बादी के निशान छोड़ जाता है. गुस्से में सबसे पहले जबान आपा खोती है, वह सब कहती है, जो नहीं कहना चाहिए और रिश्तों में कडवाहट घोलती है.

यही गुस्सा जब ज्यादा देर हमारे दिमाग में रह जाता है तो बदले की भावना में बदलने लगता है. बहुत से अपराधों की जड में यही गुस्सा और बदले की भावना होती है. मानसिक तनाव बढ़ता है, जिसका विपरीत प्रभाव स्वास्थ्य पर, सामाजिक प्रतिष्ठा पर और हमारे रिश्तों पर पडता है.

ज्योतिषीय दृष्टि से क्रोध के मुख्य कारण मंगल, सूर्य, शनि, राहु तथा चंद्रमा हैं. यदि जन्मकुंडली में सूर्य और चंद्रमा, मंगल ग्रह से संबंधित हो तो व्यक्ति क्रोध व्यक्त कर पाता है. यदि चंद्रमा लग्र में या तीसरे स्थान में मंगल, शनि या केतु के साथ युत हो तो क्रोध के साथ चिडचिडापन देता है. वहीं यदि सूर्य मंगल के साथ योग बनाये तो अहंकार के साथ क्रोध का भाव आता है. मंगल शनि की युति क्रोध जिद के रूप में व्यक्त होती है. राहु के लग्र, तीसरे अथवा द्वादश स्थान में होने पर काल्पनिक अहंकार के कारण क्रोध उत्पन्न हो सकता है.

तीसरा स्थान और उस स्थान का कारक ग्रह भी क्रोध के लिए जवाबदार होता है. मंत्रजाप, मन की शक्ति को बढ़ाता है और निरंतर अभ्यास से एकाग्रता और धैर्य बढ़ता है, धैर्य ही क्रोध को नियंत्रित कर सकता है. गुस्से को शांत करने के लिए हनुमान चलीसा का पाठ करना चाहियें. साथ ही शनिवार के दिन काली वस्तुओं का दान करना इसके अलावा शनिवार के दिन पानी वाले नारियल की जटा उतारकर उसमें छेद करके उसमें यथासंभव शक्कर भर दें और सायंकाल के समय काले कपड़े से ढककर चीटियों के अड्डे पर इसे गाड़ दें. ऊपर का मुंह खुला रहने दें, चीटियों के लिए, इस दान से भी क्रोध नियंत्रित होता है. इसके साथ ही सूर्य को अर्ध्य देना और शिव मन्त्र जाप करना भी क्रोध कम कर सकता है.