बच्चे माता-पिता के जीवन की बहुत बड़ी पूंजी होते हैं. इसलिए एक कहावत आपने अक्सर सुनी होगी ‘पूत कपूत तो का धन संचय और पूत सपूत तो का धन संचय’ जिसका अर्थ है कि यदि आपकी संतान ठीक नहीं हैं तब भी बहुत अधिक धन इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है और यदि आपकी संतान ठीक है तब भी आपको बहुत अधिक धन जोड़ने की जरूरत नहीं है. लेकिन बहुत से लोग अपना सारा ध्यान केवल पैसा कमाने पर लगाए रहते हैं. इसके कारण वह अपने बच्चों पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं और इस पैसे के खेल में उनके बच्चे अक्सर किसी न किसी समस्या के शिकार हो जाते हैं. आज हम आपको ऐसे ही कुछ बेहतरीन टिप्स देने जा रहे हैं, जिन्हें फॉलो कर आप अपने बच्चों को ऑलराउंडर बना सकते हैं.

समय की अहमियत बताएं

अक्सर बच्चे समय की कीमत को नहीं समझते हैं. इसलिए वह अपना काफी समय बेकार की बातों में बिता देते हैं. हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि समय बेहद कीमती चीज है. इसलिए बच्चों को इसकी अहमियत कम उम्र में ही सिखा देनी चाहिए. बच्चों की पढ़ाई से लेकर खेलने तक सभी चीजों का समय एकदम फिक्स होना चाहिए.

हमेशा बच्चों के लिए उपलब्ध

आप चाहे बिजनेस करते हों या कोई नौकरी, लेकिन आपके बच्चे आपके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होते हैं तो इसके लिए आपको उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए. आप अपने बच्चों के लिए समय किसी कठिन से कठिन समय में से भी निकालकर देना चाहिए. हालांकि माता-पिता की जरूरत बच्चों को हमेशा होती है, लेकिन जब वह छोटे होते हैं, तब आपकी जरूरत उनके लिए बहुत ज्यादा जरूरी हो जाती है.

पैसे की कीमत सिखाएं

यदि आपके पास बहुत सारा पैसा है और आप अपने बच्चों को मनमाना खर्च करने के लिए पैसा देते हैं तो यह उनके पैसे को लेकर अहमियत को कम देगा. आपको बच्चों को खर्चे के लिए पैसे देते समय इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि उन्हें कितने पैसे की जरूरत है. यह इसलिए भी जरूरी है कि बच्चे अभी से पैसे की वैल्यू समझ जाएं और अपने काम एक सीमित धनराशि में करने की कोशिश करें.

कल्चर के बारे में बताएं

हमें अपने बच्चों को कल्चर के बारे में जरूर बताना चाहिए. इसके लिए आप अपने घर में होने वाले पूजा-पाठ में बच्चों को पूरे रीति-रिवाज के साथ शामिल करें. इस बात को उनकी परवरिश का अहम हिस्सा बनाएं, क्योंकि यह उनके जीवन में कल्चर के साथ पॉजिटिविटी को भी लेकर आती है.

नजर रखना भी है जरूरी

हमें अपने बच्चों पर नजर रखना भी काफी जरूरी है. वहीं यह तब और जरूरी हो जाता है जब बच्चे 15 से 22 साल की उम्र में हों. यही वह उम्र होती है जब यदि बच्चों पर जरा सा भी ध्यान भटका तो वह उनके लिए काफी मुश्किल का कारण बन जाता है. हालांकि उनके ऊपर नजर रखते समय आपको सावधान रहने की भी जरूरत है, क्योंकि इस बात की भनक बच्चों को नहीं लगनी चाहिए कि आप उन पर नजर बनाए हुए हैं.