प्रदीप गुप्ता, कवर्धा. जिले का एक बड़ा हिस्सा वनांचल और पहाड़ों से घिरा हुआ है. जहां विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति के लोग निवासरत हैं. ऐसा ही एक गांव बासा टोला है. ये गांव भी चारों ओर से पहाड़ और जंगल से घिरा हुआ है. यहां तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क तक नहीं है. बरसात के 4 माह इस गांव तक पहुंचना आसान नहीं रहता. लगभग 20 परिवार वाले इस गांव के बैगा आदिवासी आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं.

बता दें कि, गांव के हालात ये है कि गर्मी के दिनों में तो यहां मेहमान तक आना पसंद नहीं करते, क्योंकि गांव से लगभग 500 मीटर दूर पहाड़ से नीचे उतरकर पानी लाना होता है. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा बोर भी करवाया गया, लेकिन बोर सफल नहीं हुआ. यहां समस्या वर्षों से चल रही है. महिलाएं छोटे-छोटे बच्चों को कमर से बांधकर पानी लाने पर मजबूर हैं. स्थिति ऐसी है कि ग्रामीण इस समस्या को अपनी दिनचर्या में शामिल कर चुके हैं.

इसे भी पढ़ें- 4 का मासूम और 11 साल का हत्याराः पड़ोसी ने मासूम को उतारा मौत के घाट, चंद घंटों में हत्यारा गिरफ्तार, बाघा ने वारदात को सुलझाने में निभाई अहम भूमिका…

वहीं इस क्षेत्र की दूसरी बड़ी समस्या स्वास्थ्य है. यहां महीने में एकात बार ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता पहुंचते हैं. ऐसे में बैगा आदिवासी परिवार इलाज के लिए 10 से 15 किमी तक कि दूरी तय करते हैं. छोटी-छोटी बीमारी के लिए इन्हें दवाइयां तक नहीं नसीब नहीं होती. हालांकि अब जिला प्रशासन जिले के ऐसे पिछड़े इलाकों के लिए अलग से राशि स्वीकृत कर मूलभूत सुविधा बढ़ाने का दावा कर रही है.