Importance Of Gotra: रायपुर. किसी भी पूजा या हवन को संपन्न कराने से पहले संकल्प के दौरान ब्राह्मण, पुरोहित, पुजारी आपसे आपका गोत्र के बारे में पूछता है. आज के समय में अधिकतर लोगों को अपना गोत्र याद नहीं होता है. ऐसे में आप गोत्र का उच्चारण इस तरह से भी कर सकते हैं.

गोत्र का इतिहास बहुत पुराना (Importance Of Gotra)

गोत्र का इतिहास बहुत पुराना है। आमतौर पर यह माना जाता है कि गोत्र का संबंध ऋषि-मुनियों से है. भारत की गोत्र पद्धति एक बहुत प्राचीन भारतीय पद्धति है, जिसके जरिए व्यक्ति के वंश का पता चलता है. यह पद्धति आज भी प्रचलन में है. हमारे देश में चार वर्ण माने जाते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. जिनका गोत्र ज्ञात नहीं है उनके लिए ज्योतिष कश्यप गोत्र बनाकर जाते हैं.

कैसे अस्तित्व में आए गोत्र

जाति विभाजन होने के बाद अलग-अलग गोत्रों का निर्माण हुआ. जिसके द्वारा प्रत्येक जाति के लोगों को अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया. एक गोत्र के स्त्री-पुरुष आपस में विवाह नहीं कर सकते क्योंकि एक गोत्र में आने वाले सभी लोग भाई-बहन कहलाते हैं. सबसे पहले गोत्र सप्तर्षियों के नाम से प्रचलन में आए. जो इस प्रकार हैं- अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र.

क्या थी गोत्र के निर्माण की वजह (Importance Of Gotra)

गोत्र का चलन इसलिए किया गया ताकि एक ही खून से संबंध रखने वालों की आपस में शादी न हों. एक ही प्राचीन ऋषि आचार्य के शिष्यों को गुरु भाई मानते हुए पारिवारिक संबंध स्थापित किए गए और जैसे भाई और बहन का विवाह नहीं हो सकता. उसी तरह गुरु भाइयों के बीच विवाह संबंध गलत माना जाने लगा.

क्या हैं वैज्ञानिक कारण (Importance Of Gotra)

विज्ञान ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि एक गोत्र में शादी करने से कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं. विज्ञान के अनुसार, एक ही गोत्र या कुल में शादी करने पर दंपती की संतान में आनुवांशिक दोष हो सकते हैं. ऐसे दंपती की संतानों में एक-सी विचारधारा होती है, कुछ नयापन देखने को नहीं मिलता.