रायपुर. रायपुर का मेयर कौन होगा. ये बात कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व को ही पता है. पर इस बात की चर्चा हर ज़ुबान पर है. कई नामों पर चर्चाओं का दौर निगम चुनाव के परिणाम के साथ ही शुरु हो चुके हैं.

एक चर्चा मीडिया में है. जिसमें प्रमोद दुबे, एजाज ढेबर, ज्ञानेश शर्मा, श्रीकुमार मेनन और अजीत कुकरेजा प्रमुख दावेदार हैं. दूसरी चर्चा सोशल मीडिया की है. जिसमें इन नामों के अलावा तमाम नामों की चर्चा उनके समर्थक चला रहे हैं. यहां एक तरफ पहली बार चुनाव जीतकर आए आकाशदीप शर्मा के समर्थक उन्हें मेयर बनाने का अभियान चला रहे हैं तो चार बार नगरीय निकाय में जीत दर्ज करा चुके प्रमोद दुबे के राजनीतिक और गैर राजनीतिक समर्थक भी उनके पक्ष में लगे हुए हैं.

लेकिन जो सबसे दिलचस्प चर्चा रायपुर के राजनीतिक गलियारों में हो रही है. भाजपा इन चर्चाओं के आधार पर अपनी रणनीति बनाने की फिराक में है. तो कांग्रेस के दावेदार गुणा-भाग भिड़ा रहे हैं.

राजनीतिक गलियारे की चर्चाओं में कोई हर दिन कोई नाम ऊपर आ रहा है तो कोई नाम गोते खा रहा है. हालांकि इन चर्चाओं से बनने बिगड़ने वाले समीकरणों का हकीकत से किस कदर ताल्लुक है ये कोई नहीं बता सकता.  परिणाम के बाद प्रमोद दुबे और एजाज ढेबर का नाम सबसे ऊपर था. अजीत कुकरेजा को भी तगड़ा दावेदार माना जा रहा था.

अजीत का नाम सामने आने के बाद विधायक कुलदीप जुनेजा ने अपने क्षेत्र के 11 पार्षदों की स्कूटी मार्च कांग्रेस भवन में करा दी. कुलदीप ने साप संकेत दे दिया कि विधानसभा की दावेदारी में उनके लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले अजीत कुकरेजा के मेयर की दावेदारी के हक में वे नहीं हैं. लेकिन युवा और संसाधनयुक्त नेता होने की वजह से कुकरेजा की दावेदारी खारिज नहीं हो सकती.

चर्चाओं के बाज़ार में अब श्रीकुमार मेनन और ज्ञानेश शर्मा का वज़न बढ़ गया है.  उभर आए हैं. माना जा रहा है कि ढेबर और दुबे की जंग में इन दोनों में से किसी की लॉटरी निकल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

ज्ञानेश के पक्ष में बातें करने वाले लोग उनके लंबे और साफ सुथरे नगरीय प्रशासनिक अनुभव को बड़ी वजह मान रहे हैं. ज्ञानेश का सबसे बड़ा एडवाटेंज ये है कि वे ऐसे नेता हैं जिन्हें लेकर कोई विरोध होने की संभावना नगण्य है. इसके अलावा कुछ समय के लिए वो टीम भूपेश के सदस्य तब रहे थे जब वे प्रदेश अध्यक्ष थे और संचार विभाग ज्ञानेश के पास था. भूपेश बघेल के करीबी मंत्री रविंद्र चौबे के वे कट्टर समर्थक हैं. राययपुर के ब्राह्मण नेताओं का भी समर्थन ज्ञानेश के हक़ में है.

इसी तरह दूसरे ब्राह्मण नेता प्रमोद दुबे के हक में उनका शहर में बड़ा जनाधार है. हालांकि लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद उनका रुतबा शहर की राजनीति में घटा है. लेकिन प्रमोद दुबे की रायपुर निगम में पकड़ जबर्दस्त है. पार्षदों में बड़ी संख्या उनके समर्थकों की है. शहर का संगठन भी उनके साथ है. चूंकि कांग्रेस को अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. तो ऐसी परिस्थिति में प्रमोद दुबे जैसे संसाधन वाले नेता की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन दिक्कत है कि उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है जिससे पता चलता है कि उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ने से पहले सीएम बघेल की रज़ामंदी नहीं ली थी.

एजाज ढेबर की दावेदारी चर्चाओं के बाज़ार में इस लिहाज़ से काफी ऊपर है कि वो पिछले पांच साल से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी रहे हैं. वे युवा हैं. भूपेश बघेल नगरीय निकायों में युवाओं को मौका देने के हामी रहे हैं. कांग्रेस का उदारवादी धड़ा भी एजाज ढेबर को मेयर बनाने के पक्ष में है. उदारवादी धड़ा चाहता है कि कांग्रेस एक मुस्लिम को मेयर बनाकर देशव्यापी संदेश दे कि मुस्लिमों के संकट की घड़ी में वो उनके साथ है. लेकिन पार्टी का एक धड़ा उनके खिलाफ भी है.

चर्चाओें के बाज़ार में एक और नाम है. जो परिणामों के कुछ समय बाद तेज़ी से उभरा है. श्रीकुमार मेनन को इस रेस का डॉर्क हॉर्स माना जा रहा है. वे तीन बार के पार्षद हैं. उनकी छवि साफ सुथरी, सौम्य और काम करने वाले नेता की है. वे लो प्रोफाइल में रहकर काम करने वाले हैं. अगर विधायकों की राय ली जाएगी तो श्रीकुमार का पलड़ा भारी हो जाएगा. तीनों विधायकों की टीम में वे विश्वसनीय साथी के तौर पर रहे हैं. लो प्रोफाइल रहने की आदत और किसी जातिगत और सामाजिक समीकरण में फिट न होने से कोई भी बड़ा नेता उन्हें भविष्य की चुनौती के रुप में भी नहीं देखता. दिल्ली के उच्च संपर्कों की वजह से उनकी दावेदारी मज़बूत मानी जा सकती है. लेकिन किसी खेमे का ना होना उनके लिए बड़ी परेशानी का सबब है.