राज्य सरकार ने पीली क्रांति की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है. इससे तिलहनी फसलों में राज्य को अव्वल बनाने की तैयारी है. इससे दामों को भी नियंत्रित रखा जा सकेगा. जनसमान्य को शुद्ध खाद्य तेल मिलेगा और फसल विविधताकरण को बढ़ावा मिलेगा. अब सरकार तिलहन फसलों का क्षेत्रफल, उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाएगी. पिछले दिनों मंत्री परिषद के सामने कृषि उत्पादन सेक्टर ने जो प्रस्तुतिकरण दिया उसके मुताबिक, अगले पांच साल में तिलहन फसलों का रकबा बढ़कर 2,884 लाख हेक्टेयर, प्रति क्विंटल उत्पादकता 1,241 किलोग्राम और उत्पादन 35,709 मीट्रिक टन करने का लक्ष्य रखा गया है.
2019 में देश में सर्वाधिक तिलहन उत्पादन के लिए प्रदेश सरकार को प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया था. इससे उम्मीद जगी है कि सरकार अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब हो सकती है. योगी सरकार 2 में रणनीति बनाकर तिलहन फसलों का रकबा और उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम करने की रणनीति तैयार की गई है.
रकबा क्षेत्र में विस्तार
उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को अनुदान पर गुणवत्ता पूर्ण बीज उपलब्ध कराकर उपज बढ़ाने के साथ, तिलहनी फसलों की अंत: फसली (इंटर क्रॉपिंग) खेती और सिंचित क्षेत्र में रकबे को विस्तार देकर ऐसा करेगी.
सरसों राज्य की प्रमुख तिलहन फसल
पिछले दिनों मंत्रिपरिषद के सामने विभाग ने इस बाबत अपनी कार्ययोजना का प्रस्तुतिकरण भी दिया था. खरीफ के आगामी सीजन से इस पर अमल भी शुरू हो जाएगा. उल्लेखनीय है कि सरसों उत्तर प्रदेश की प्रमुख तिलहन फसल है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के डायरेक्टरेट ऑफ इकोनॉमिक्स एन्ड स्टेटिस्टिक्स की ओर से जारी (साल 2013 से 2015-16) आंकड़ों के अनुसार, भारत मे राई और सरसों की खेती 6.06 मिलियन हेक्टेयर में होती है. इस रकबे का 10.4 फीसद (0.63 मिलियन हेक्टेयर) हिस्सा उत्तर प्रदेश का है. 7 मिलियन टन उत्पादन में प्रदेश की हिस्सेदारी 0.64 मिलियन टन (9.1 प्रतिशत) है। प्रति हेक्टेयर देश की औसत उपज 1154 किलोग्राम की तुलना में प्रदेश की उपज 1020 क्विंटल है.
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45 फिसदी बढ़ा उत्पादन
हालांकि इसके बाद प्रदेश सरकार ने तिलहन उत्पादन में ठीक-ठाक प्रगति की है. इसी दौरान प्रदेश को तिलहन के उत्पादन के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार भी मिला. यही नहीं 2016-2017 के दौरान तिलहन के उत्पादन में करीब 45 फीसद की वृद्धि हुई. इस दौरान उत्पादन 12.41 मीट्रिक टन से बढ़कर 17.05 मीट्रिक टन हो गया. इसी समयावधि में प्रति क्विंटल उत्पादकता 935 किलोग्राम से बढ़कर 1065 किलोग्राम हो गई.
सरकार वितरित करेगी मिनीकिट
इन सबके बाद भी प्रदेश में खाद्य तेलों की खपत की तुलना में मात्र 30 से 35 फीसदी ही तिलहनी फसलों का उत्पादन होता है. इसके लिए बीज आवंटन की मात्रा 2905 क्विंटल से बढ़ाकर 18,250 क्विंटल की जाएगी. खेती योग्य असमतल भूमि पर अपेक्षाकृत दक्ष सिंचाई विधाओं (स्प्रिंकलर और ड्रिप) का प्रयोग कर तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाया जाएगा. लघु और सीमांत किसानों का सारा फोकस खाद्यान्न की फसलों पर होता है. चूंकि इन किसानों की संख्या करीब 90 फीसद है. लिहाजा तिलहन फसलों के प्रति इनकी अनिच्छा पैदावार बढ़ाने में बड़ी बाधा है. इस श्रेणी के किसानों को तिलहन की फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार इनको मिनीकिट वितरित करेगी.
किसानों को पॉजिटिव और मार्केटिंग सर्पोट जरुरी
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के कुलपति डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने कहा कि तिलहन फसल के मामले में सरकार अच्छा निर्णय ले रही है. इसका वैल्यू एडिशन बहुत जरूरी है. इनके अन्य उत्पादन पर ध्यान देने की जरूरत है. गर्मी वाली मूंगफली को बढ़ावा देने की जरूरत है. किसानों को पॉजिटिव और मार्केटिंग सर्पोट बहुत जरूरी है.
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