रायपुर। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन अविभाजित मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा के निधन पर सदन ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। सदन की कार्यवाही शुरु होते ही विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी ने मोतीलाल वोरा के निधन की सूचना सदन को दी।

देश के लिए क्षति- मंडावी

उन्होंने कहा अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक रहे, दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। केंद्र सरकार में स्वास्थ्य, नागरिक उड्डयन मंत्रालय जैसी कई ज़िम्मेदारी सम्भाली। आदर्शों और सिद्धांतों में उनका पूरा जीवन समर्पित रहा। उनके निधन से न केवल देश बल्कि छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी क्षति हुई है।

गरीब आदमी का भी सम्मान करते थे- चौबे

संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि सदन में कुछ चेहरे है जो मध्यप्रदेश विधानसभा में मोतीलाल वोरा जी के साथ बैठ चुके है।
वह समाजवादी चिंतकशील व्यक्ति थे। विधानसभा, रजयसभा और लोकसभा का अनुभव उनके पास था। गरीब आदमी भी उनके पास जाता था उसका भी सम्मान वोरा जी से करता था । उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान कभी कभी किसी कामों को लेकर हम उग्र होकर अपनी बात कह देते थे तब भी उनकी विनम्रता देखने को मिलती थी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में आज जितने पुराने कालेज दिख रहे है इसमें उनकी बड़ी भूमिका रही है। सरकार को निचले स्तर तक ले जाने की शुरुआत मोतीलाल वोरा जी ने की है। उनका जाना राजनीतिक क्षेत्र के लिए बड़ा नुक़सान है। एक दिन पहले ही उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनसे फ़ोन पर बात की थी। हर दशहरा दिवाली दुर्ग के अपने घर में उनका आना होता ही था। 78 में जब इंदिरा जी की गिरफ़्तारी हुई थी तब वह स्कूटर से दुर्ग में घूम-घूमकर विरोध में बंद करने निकले थे।

ऐसी शुन्यता जिसे भर पाना मुमकिन नहीं- भूपेश

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि दो दिन पहले जब उन्हें जन्मदिन की बधाई दी तब नहीं लगा था कि वह विदा ले लेंगे। अभी दिल्ली दौरे में उनसे मिलकर आया था , स्वस्थ थे। कोरोना से भी लड़कर जीतकर आए थे। जब से होश सम्भाला तब से वोरा जी को देख रहे थे। उनकी राजनीति को देखकर काम करते रहे। सुबह से लेकर देर रात तक काम करते रहते थे, देर रात भी उसी ताज़गी से काम करते थे। यह देश की क्षति है, पार्टी की तो है ही। कांग्रेस नेतृत्व के प्रति वह लगातार समर्पित रहे। एक ऐसी शून्यता आई है, जिसे भर पाना मुमकिन नहीं है। हमने उनसे बहुत कुछ सीखा, यदि हम कहे कि मोतीलाल वोरा अजातशत्रु थे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

नई पीढ़ी को उनसे सीखना चाहिए- धरमजीत

जेसीसी विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि वोरा जी न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ के लाल थे बल्कि देश के लाल थे। एक पार्षद से शुरू होकर केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल से लेकर देश की एक बड़ी पार्टी कांग्रेस के लम्बे समय तक कोषाध्यक्ष के रूप में काम करते रहे। वह बड़ी शक्तिशाली जगह पर थे फिर भी उन्होंने कभी भी अपने परिवार को आगे बढ़ाने की नहीं सोची। जहां भी रहे पूरी निष्ठा के साथ काम करते रहे। 1984 में पंडतराई में चार लोगों की हत्या के मामले में वह व्यथित थे। किसी घटना को भी विकास से जोड़ते थे। वह राजनीति के विश्वविद्यालय थे। नई पीढ़ी को उनसे सीखना चाहिए।

उनकी खूबियों को उतारने का प्रयास करते रहा- ताम्रध्वज

ताम्रध्वज साहू ने कहा कि 1975 से उनके सम्पर्क में रहा हूँ। जब उनके घर जाते थे तब वह बाई ( अपनी पत्नी) से कहते थे ताम्रध्वज आया है मिठाई लेकर आओ। मैं अपने जीवन में उनकी खूबियों को उतारने का प्रयास करता रहा। अभी पिछली 14 तारीख़ को ही दिल्ली में मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी। हम एक घंटे बैठे थे। मैं उनके साथ स्कूटर में खूब घुमा हूँ। वह चलाते थे मैं पीछे बैठता था। उन्होंने मुझसे कहा था कि जब दुःख का समय रहे मिलकर बाँटना चाहिए, और जब सुख का समय रहे तब भी मिलकर बाँटना चाहिए।

एक अभिभावक का जाना दुखद है- रमन

डाक्टर रमन सिंह ने कहा कि आज हम प्रदेश और देश के वरिष्ठ नेता को श्रधांजलि देने खड़े हुए हैं। वह राजनीति के मोती थे। जब हम चुनावी मैदान में आमने सामने थे तब हम टकरा जाते थे, मैं अक्सर उनके पैर छूता था वह मुझसे कहते थे कि बार बार पैर मत छुआ करो मैं कहता था कि आप मेरे वरिष्ठ हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जब एक बार मेरी गाड़ी फँस गई वहाँ से गुज़रते हुए उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई अपने ड्राइवर को देखने भेजा। गाड़ी धक्का देकर निकलवाई और फिर मैंने उनसे कहा कि लोकसभा में भी ऐसे ही धक्का दे देना। मुख्यमंत्री रहते हुए जब मैं दिल्ली में राज्य के विकास के लिए सांसदों की बैठक लेता था तब संकोच होता था। जिस नेता से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है उन्हें कैसे बैठक के लिए कहूँ। लेकिन वोरा जी सबसे पहले बैठक में आते, सुझाव देते। मुझे मेरे हर जन्मदिन में बड़े नेताओं के फ़ोन आते तब भी मुझे किसी फ़ोन का इंतज़ार होता वो वोरा जी का होता। आज उनके जाने के बाद ये महसूस हो रहा है कि एक अभिभावक का चले जाना कितना दुःखद है।

उनकी सीख मेरे साथ धरोहर की तरह रहेगी- सिंहदेव

टीएस सिंहदेव ने कहा कि मेरे पिता ने उनके साथ काम किया। संयोग से ऐसा मौक़ा मिला कि उनके आशीर्वाद से मैं राजनीति में आया।मेरे जीवन की बड़ी सीख देने वाले लोगों में वोरा जी की भूमिका बड़ी है, मैं ऐसा मानता हूँ। उनकी सीख मेरे लिए एक धरोहर की तरह मेरे साथ रहेगा।

उनसे जो सीखा उसे जीवन में उतारना ही सच्ची श्रद्धांजलि- बृजमोहन

बृजमोहन अग्रवाल  ने कहा मोतीलाल वोरा जी का चले जाना देश और प्रदेश के लिए इतनी बड़ी क्षति है जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती। सरल, सादगी से भरे हुए लेकिन उतने ही दृढ़ भी थे। महीने भर पहले ही दिल्ली से फ़ोन आया कि मोतीलाल वोरा बात करना चाहते हैं। जब बात हुई तब उन्होंने कहा कि मुझे अचानक तुम्हारी याद आ गई। मध्यप्रदेश में जब हम साथ काम करते थे वो दौर कितना अच्छा था। इतने बड़े बड़े पदों पर रहने के बाद भी अपने आपको एक सामान्य कार्यकर्ता मानकर काम किया। उनसे हमने जो कुछ सीखा है उसे अपने जीवन में उतरना है यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

पार्टी के लिए बेहद दुख का क्षण- अकबर

मोहम्मद अकबर ने कहा कि हमारी पार्टी के लिए ये बेहद दुःख का क्षण है। एक तस्वीर जिसमें सोनिया गांधी मोतीलाल वोरा के लिए छाता लेकर खड़ी हुई है यह वोरा जी के ऊँचे व्यक्तित्व को दिखाता है। विरेंद्रनगर विधानसभा में एक बार जब वो दौरे पर आए तब एक आदिवासी नेता ने उनके साथ तस्वीर खिंचाने कि आग्रह किया वह तैयार हो गए। वोरा जी ने जैसे ही उस आदिवासी नेता के कंधे पर हाथ रखा उस आदिवासी ने भी वोरा जी के कंधे पर हाथ रख दिया। मैंने रोकने की कोशिश की लेकिन वोरा जी ने मना कर दिया। यह उनकी सादगी थी।

हिन्दुस्तान का कर्तव्यनिष्ठ नेता खोया- सत्यनारायण

सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि हिन्दुस्तान के एक कर्तव्यनिष्ठ नेता को हमने खो दिया। एक बार मैं वोरा जी के पास गया मैंने उनसे कहा कि ये मेरा काम करवा दीजिए ये मेरी प्रतिष्ठा से जुड़ा है। उन्होंने उस काम को करवा दिया, ये कहते हुए कि आज मैं यहाँ हूँ तो तुम्हारी प्रतिष्ठा को बचा लिया कल नहीं रहूँगा तो कौन बचाएगा? उस दिन उनसे मिली सीख के बाद मैंने कभी किसी विषय को प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ा।

सत्तापक्ष से ज्यादा वो विपक्ष के थे- मोहिले

पुन्नूला मोहिले ने कहा कि हम विपक्ष के थे लेकिन मोतीलाल वोरा जी ने इसका कभी आभास भी नहीं कराया। हमारे लिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वो कहते थे कि कभी भी कुछ काम हो तो फ़ोन कर बता दिया करो। वह एक फ़ोन पर काम कर दिया करते थे। वोरा जी कहते थे कि विपक्ष जैसी कोई बात नहीं यह सिर्फ़ राजनीति के लिए है। सत्तापक्ष से ज्यादा वो विपक्ष के थे।

कीचड़ में कमल की तरह थे- अमितेष

अमितेष शुक्ला ने कहा कि मोतीलाल वोरा कीचड़ में कमल की तरह थे, वह भी कांग्रेस जैसी पार्टी के भीतर इतने बरसो कोषाध्यक्ष जैसे पद पर रहे लेकिन कभी उनके बारे में कभी कुछ ग़लत नहीं सुना।

कहते थे जनता के मुद्दे उठाओ- लखमा

कवासी लखमा ने कहा कि पूरा देश पूरा छत्तीसगढ़ दुखी है। 1986 में राजीव गांधी के साथ मोतीलाल वोरा कोंटा आए थे तब मैं राजनीति में नहीं था। मैंने उनसे कहा था कि आपको गादिरास आना है, अगले ही साल वह आ गए। आपकी सरकार आपके द्वार उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू किया था, मैं आवेदन लेकर जाता था। मुझे विधानसभा में बोलते अक्सर सुना करते थे कहते थे जनता के मुद्दे उठाओ।

राजनीति का नैतिक मापदंड तैयार करने वाले युग का अवसान- चंद्राकर

अजय चंद्राकर ने कहा कि राजनीति का एक नैतिक मापदंड जिन लोगों ने तैयार किया उस युग का अवसान हो गया। देश और प्रदेश की प्रमणिकता के साथ सेवा की प्रतिमानों के साथ किसी दायित्व को जीना हो तो वो वोरा जी में देखा जा सकता है।

दूसरे दलों में भी उनकी स्वीकार्यता थी- चंदेल

नारायण चंदेल ने कहा कि बड़े मन से कैसे राजनीति की जा सकती है यह मोतीलाल वोरा जी से सीखना चाहिए। एक बार जब राजनाथ सिंह रायपुर आ रहे थे तब मोतीलाल वोरा उसी फ़्लाइट में थे। फ़्लाइट लैंड होने के बाद जब वो बाहर आए तब राजनाथ सिंह ने वोरा जी का समान उठाया हुआ था, बकायदा गाड़ी तक जाकर उन्हें बिठाया। अपनी ही नहीं दूसरे राजनीतिक दल में भी उनकी स्वीकार्यता थी।

आश्वासन के बाद अगले साल योजना शुरु की- शिवरतन

शिवरतन शर्मा ने कहा कि छात्र राजनीति के ठीक बाद बीजेपी में आने के बाद एक बार जब मोतीलाल वोरा भाटापारा आए तब हमने उन्हें पेयजल के लिए ज्ञापन सौंपा। उन्होंने इसे जल्द पूरी करने का आश्वासन दिया था, अगले ही साल वह पेयजल योजना की शुरुआत के लिए भाटापारा आए और अपने भाषण में ये कहा कि इसकी माँग बीजेपी ने की थी।

पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को सदस्यों द्वारा श्रद्धांजलि देने के बाद सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया है।