पुरुषोत्तम पात्रा,गरियाबंद. सरकार आज विकास के लाख दावे करती है. लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही होती है. कुछ ऐसी ही सच्चाई है प्रदेश के गरियाबंद जिले की मदांगमुडा पंचायत के आश्रित ग्राम नयामालपारा की जहां आजादी के इतने वर्ष बाद भी विकास की धारा तो क्या,विकास की बूंद भी नहीं गिरी है. आलम यह है कि यह गांव पूरी तरह से पिछड़ा है. इस गांव में ना तो बिजली है,ना सड़क,ना ही अस्पताल और तो और सरकारी योजनाओं का लाभ भी यहां के ग्रामीण नहीं उठा पा रहें हैं.
ग्रामीण एक गांव से दूसरे गांव पकडंडी के सहारे आना जाना करते हैं. परेशानी यहीं खत्म नहीं होती बिजली नहीं होने के कारण ग्रामीण अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. आमतौर पर ग्रामीण बिजली नहीं होने पर लालटेन का सहारा लेते हैं. लेकिन राशनकार्ड नहीं होने के कारण इन्हें मिट्टी तेल भी नहीं पाता जिसके कारण ये लालटेन भी नहीं जला पाते. पूर्ण रूप से पिछड़े इस गांव में स्कूल भी नहीं है जिसके कारण यहां के बच्चे दूसरे गांव में रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ने को मजबूर हैं. यहीं नहीं जब मौसम आग उगल रहा होता है तब इन्की प्यास बुझाने के लिए भी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. इस कारण ग्रामीण नदी का पानी पीते हैं. सरकार कहती है कि हमने पूरे देश के लिए एक जैसा योजनाएं बनाई है लेकिन इस गांव की हकीकत कुछ और ही बयां करती है. यहां के लोगों के पास जॉबकार्ड नहीं है. परिणाय यह होता है कि ग्रामीणों को मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिल पाता
आदिवासियों ने जंगल काटकर बसाया था गांव
20 साल पहले यहां के आदिवासियों ने जंगल को काटकर एक गांव बसाया था. जिसे सरकार ने 10 साल पहले मदांगमुड़ा पंचायत के वार्ड 14 का दर्जा दिया था. 400 लोगों की आबादी वाले इस गांव में कुल 52 परिवार रहते है. वहीं यदि बात करें प्रधानमंत्री आवास योजना की तो वो भी इन ग्रामीणों को अभी तक नसीब नहीं हो सका है.
वहीं जब इस गांव में अधिकारियों से सवाल जवाब किए गए तो उन्होंने अपने ही अंदाज में पल्ला झाड़ लिया. सरकारे आती जाती रहीं लेकिन किसी सरकार ने इन ग्रामीणों की सूध नहीं ली. लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे वैसे राजनैतिक दल अपनी रोटियां के सेकने में लए गए हैं. इसी क्रम में कांग्रेस ग्रामीणों का हक दिलाने की बात कर रही है.
इस तरह से पिछड़ेपन का दंश झेल रहे नयामालपारा प्रदेश का कोई पहला गांव नहीं है. इस तरह की मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांवों के नाम पहले भी सामने आते रहे हैं. लिकन अब तक सरकार की आंखें नहीं खुली हैं.