मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जंगलों के बीच रहकर जीवन-यापन करने वालों के बारे में सोचा और तेंदूपते का समर्थन मूल्य बढ़ाया. आज समर्थन मूल्य पर बेचने से वनाश्रितों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ आजीविका के साधन भी बेहतर होते जा रहे हैं.

कोंडागांव के दादरगढ़ निवासी अकालू मंडावी और उनकी पत्नी बेजतीन मंडावी बताते हैं कि एक साल में एक बार तेंदूपते की तोड़ाई होती है. जब से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समर्थन मूल्य तय किया है, तब से हमारी कमाई दोगुनी हो गई है. अब पूरा परिवार मिलकर दिलचस्पी के साथ इस काम को करते है. तेंदूपत्ता संग्रहण से मिले पैसे से हमने टीवी खरीदने के सपने को साकार किया है और अच्छे कपड़े खरीदकर पहन पा रहे हैं.

छतीसगढ़ सरकार द्वारा तेंदूपत्ता छ संग्रहण की राशि 2500 रुपये से बढ़ाकर 4 हजार रुपये प्रति मानक बोरा किए जाने के बाद से वनांचलों में बदलाव का दौर शुरू हो गया है. संग्राहकों को 424 करोड़ 11 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि का भुगतान होने से संग्रहण को बढ़ावा मिल रहा है. हर साल संग्राहकों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है और छत्तीसगढ़ सर्वाधिक खरीदी भी कर रहा है.

तेंदूपत्ते के व्यापार से महिला समूहों को भी जोड़ा जा रहा है. समूह को रोजगार भी मिल रहा है. राज्य सरकार द्वारा अच्छा दाम मिलने की वजह से जनजातीय समुदाय अपनी जिंदगी बेहतर तरीके से व्यतीत कर रहे हैं और उनके रहन-सहन में भी बदलाव आने लगा है. तेंदूपत्ता संग्रहण दर में बढ़ोतरी किए जाने से खुश हैं और वे प्रदेश के मुख्यमंत्री का धन्यवाद कर रहे हैं.

नारायणपुर जिले के निवासी चैतराम यादव बताते है कि जंगलों के बीच निवासरत लोगों के लिए तेंदूपत्ता ही आमदनी का बड़ा जरिया बन गया है. पत्ते की तोड़ाई से लेकर बंडल बनाने का काम परिवार के साथ मिलकर करते हैं. पहले दाम कम मिलने की वजह से आर्थिक तौर पर काफी दिक्कतें होती थीं. लेकिन अब हरा सोना कहलाने वाला तेंदूपत्ता वाकई सोने जैसा ही है.