नदिया. 12 अगस्त 1947 को रेडियो पर खबर पढ़ी गई ‘भारत को आजादी मिल गई है. लेकिन बदकिस्मती से कहना पड़ रहा है कि नदिया जिले को पाकिस्तान में शामिल किया जा रहा है.’ इस खबर से हिंदू बहुलता वाले इस इलाके में विद्रोह पैदा हो गया.
यह कोई डिप्लोमेटिक निर्णय नहीं था. यह सर सीरल रेडक्लिफ की गलती थी. जिसने गलत नक्शा बना दिया था. आजादी से पहले नदिया में पांच सवडिविजन थे कृष्णानगर सदर, मेहरपुर, कुष्टिया, चुआडांगा और राणाघाट और यह सभी इलाके पूर्वी पाकिस्तान में शामिल हो गए.
रेडियो पर चली पाकिस्तान में शामिल होने की खबर से नदिया में दंगे भड़क गए. इस खबर के कारण दो दिनों तक महिलाओं ने घरों में चूल्हे तक नहीं जलाए थे. हालांकि मुस्लिम लीग के कुछ नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ कृष्णानगर पब्लिक लाइब्रेरी पर पाकिस्तानी झंडे फहराए थे. उन्होंने सड़कों पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हुए रैली भी निकाली थी. लेकिन लोगों के भयानक विद्रोह के आगे ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने ही पड़े.
दरअसल जब यह बात वायसराय लोर्ड माउंटबेटन तक पहुंची तो उन्होंने रेडक्लिफ को अपनी गलती सुधारने के आदेश दिए. इसके बाद रेडक्लिफ ने नक्शे में कुछ बदलाव किए और राणाघाट, कृष्णानगर, और करीमपुर के शिकारपुर को भारत में शामिल किया गया. हालांकि इस सुधार प्रक्रिया में कुछ समय लग गया. जिसके बाद 17 अगस्त की रात को इसकी घोषणा की गई.
घोषणा के बाद भी आसान नहीं रही झंडा फहराने की राह
इस घोषणा के बाद 18 अगस्त को कृष्णानगर लाइब्रेरी से पाकिस्तान का झंडा उतारा गया और भारतीय तिरंगा फहराया गया. हालांकि नदिया में इस ऐतिहासिक तारीख पर तिरंगा फहराने का संघर्ष इतनी जल्दी खत्म होने वाला कहां था. दरअसल राष्ट्रध्वज के सम्मान में बने कानून के मुताबिक आम नागरिक सिर्फ 23 जनवरी, 26 जनवरी और 15 अगस्त को ही झंडा फहरा सकते थे.
लेकिन अपनी ऐतिहासिक तारीख को यादगार बनाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी प्रमथनाथ शुकुल के पोते अंजन शुकुल ने इसी दिन को नदिया में स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए चुनौती दी. उनके लंबे संघर्ष के बाद साल 1991 में केंद्र सरकार ने उन्हें 18 अगस्त को नदिया में झंडा फहराने की इजाजत दे दी. तब से नदिया में 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा.