आज पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है. इस परिवेश में हम सब स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं. इस महापर्व में हमें कोरोना से भी आज़ादी का संकल्प लेना है. इस कोरोना काल में जो लोग आर्थिक रूप से परेशान हैं, निराश है उनके लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा, उन्हें संकट से बाहर निकालना होगा. 74वें स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर मैं आप से कहना चाहता हूं की इस दिवस में हमें गंभीर होने की जरूरत है. झंडारोहण, संबोधनों की औपचारिकता मात्र के निर्वाह से यह दिवस नहीं मनाया जा सकता है. मेरे विचार से यह दिवस भारत के सभी स्वतंत्र नागरिकों को लिए राजविदों के लिए, समाजसेवियों के लिए, अध्यात्मिक विचारकों के लिए और सभी युवकों के लिए, छात्र-छात्राओं के लिए आत्म विश्लेषण और आत्म चिंतन का विषय होना चाहिए.

संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कार्डिनेटर, लल्लूराम डॉट कॉम

हम सब को यह विचार करना चाहिए की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने क्या-क्या पाया और इस बीच क्या खोया है ? प्रत्येक परिवार के आने वाली संतानें यह सोचती है की हमारे पूर्वज हमारे लिए विरासत में क्या छोड़ गए हैं और उस विरासत को सहेज कर रखने में हम कितना सफल हुए हैं ? इस समृद्ध भारत की आजादी हमें विरासत में मिली है. आज समीक्षा का दिन है. अपने कर्तव्यों के और अपने दायित्वों के निर्वहन में हमारी क्या भूमिका रही है ?

 

विज्ञापन के इस युग में हर पर्व को हम प्रचार के रूप में देखते हैं. इससे हमारा राष्ट्रीय पर्व भी अब अछूता नहीं हैं. विभिन्न परिधानों में और देशभक्त दिखने के उपक्रम में हम राष्ट्रीय पर्व के उद्देश्य को ही भूल गए हैं. सिर्फ इसे ही करके हम अपने राष्ट्रधर्म उऋण होने का प्रयास करते है क्या ये सही हैं ? आईये इस विषय को हम समीक्षात्मक दृष्टि से समझने का प्रयास करते हैं. मेरा भारत महान है.  इसमें कोई संदेह नहीं है की विश्व के मानचित्र पर भारत ने अपनी सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज की है. अर्थव्यवस्था भी अन्य देशों की तुलना में सुदृढ़ हुई है. आज भारतवंशी पूरे विश्व में देश का नाम आगे बढ़ा रहे हैं.  उत्पादन और निर्यात के संतुलन को बनाने में सफल हुए हैं.

भारत के योग ने भोग को प्राथमिकता देने वाले देशों को योग की महिमा से अवगत करा दिया है. सैन्य बल में भारत प्रतिष्ठित हुआ है. परीक्षणों के बाद आणविक शक्ति भारत में अपनी स्थिति दर्ज की है.  अत्याधुनिक हथियारों से सजी हुई हमारी सेना ,खगोलीय ज्ञान पर भी भारत की गूंज है. कृषि स्वास्थ्य और शिक्षा पर भारत की जनसख्या के दृष्टिकोण से भारत बेहतर कार्य कर रहा है. विकसित हो रहे विश्व संस्कृति की प्रतिस्पर्धा में भारत ने नए सोपान पार किए हैं, जहां भारत ने बहुत कुछ अर्जित किया है. वही बहुत कुछ खोया है, उसी भारत को हमें खोजना चाहिए और उसे महिमा मंडित करना चाहिए इसीलिए मैं कहता हूं. “कहां है, कहां है मेरा भारत महान है.”

विकास की अंधी दौड़ में भारत ने आखिर क्या खो दिया ? क्या हम अपने पूर्वजों की विरासत के साथ न्याय कर पाए हैं ? क्या यह वही भारत है जो विश्व गुरु था ? आज हमने धीरे धीरे अपने सामाजिक मूल्यों को खो दिया है. इसकी झलक संसद से सड़क तक देखी जा सकती है. अनुभव की जा सकती है.  स्वतंत्रता के आनंद के धुंध में भारत के बहुत सारे लोग अपने ही लोगो को नहीं देख पा रहे हैं. हमारे आदर्श सिर्फ़ अब बोलने तक की ही सीमित रह गए. हमारा चिंतन वित्तपरक हो गया हो गया है. अपनी संस्कृति और मर्यादाओं का दिव्य मंजूषा का भारत विचारपरक था अब जो कि वित्त पर हो गया है. समाज के हर स्तर पर इसका सक्रमण देखा जा सकता है.

हमारा भारत चंद्रमा और नक्षत्रों के करीब पहुंच गया, लेकिन आदमी-आदमी से दूर हो गया है या कहें फेसबुक में तो है, लेकिन फेस टू फेस एक दूसरे को नहीं जानता है.  स्वतंत्रता का मतलब उद्दंडता नहीं है.  हमने अपनी संवेदनशीलता को खो दिया है. हम वैचारिक संकीर्णता की लाश पर बैठे हैं और हम संवेदनहीन हो गए है. जिसके कई उदाहरण आप अखबार और टीवी चैनलों पर देखते होंगे. हमें यशोलिप्सा के चलते अपने नैतिकता को ताक पर रख दिया. विविधताओं से भरे इस देश में अलग-अलग क्षत्रप अपने विषैले विचारों से समाज को दिग्भ्रमित कर रहें हैं. अर्थतंत्र के सामने हमारा आस्था तंत्र विवश है, लाचार दिखाई देता है.  नेपथ्य से हमारे पूर्वज पूछ रहे हैं जो विरासत हमें मिली है उसे हमने कितना संजो के रखा है ?  वह आज हमसे पूछ रहे हैं “कहां है, कहां है मेरा भारत महान.”

भारत माता मानों पूछती हैं कि विरासत के संरक्षण में उसके सवर्धन में तुम्हारी क्या भूमिका है तो आज मेरे जैसे कई लोग अनुत्तरित हो जाते हैं ? स्वतंत्रता दिवस हमारे राष्ट्रीय चरित्र ,अनुशासन और दायित्यों के संकल्प का पर्व है और जब हम इस मार्ग पर चलेंगे तब ही उत्तर दे पाने की स्थिति में आएंगे ? हमारे देश के कवि उर्मिलेश की यह पंक्तियां आज भी झकझोर कर रख देती हैं, जो आज भी प्रसांगिक हैं-

कहां है, कहां है मेरा भारत महान
सभ्यता टीवी वाले धुनों पर थिरकते मिली
जिंदगी सत्ता के गलियारों में फुदकते मिली
नारी देह पोस्टरों में छपते मिली
मर्यादा बिस्तर में सिसकते मिली
ऐसे में मुझे बता दो श्रीमान
कहां है, कहां है मेरा भारत महान

जय हिंद…