नई दिल्ली। भारत सरकार ने सियालकोट में पाकिस्तान के एक पूर्व कुलीन पैरा-ब्रिगेड सदस्य और अब बांग्लादेशी लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर (सेवानिवृत्त) को पाकिस्तान के अत्याचारों से बांग्लादेश को मुक्त कराने में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया. लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) जहीर एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी हैं, जो बांग्लादेश सेना की सेवा के लिए चले गए थे. वे एक उच्च पदस्थ अधिकारी रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि अपनी बहादुरी दिखाने के लिए वह पाकिस्तान में पिछले 50 साल से मौत की सजा काट रहे हैं.

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संयोग से लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) जहीर 71 साल के हो गए हैं, जब भारत और बांग्लादेश युद्ध के 50 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं. उन्हें वीरता के लिए वीर चक्र के समकक्ष भारतीय वीर प्रोटिक और बांग्लादेश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान स्वाधीनता पदक से सम्मानित किया गया. भारत ने अब उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है. पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की सफलता में उनके बलिदान और योगदान को मान्यता देते हुए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक से सम्मानित किया गया, जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ.

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वह 20 साल की उम्र में पाकिस्तान की योजनाओं के बारे में दस्तावेजों और नक्शों के साथ भारत आए थे. वह सियालकोट सेक्टर में तैनात पाकिस्तानी सेना में एक युवा अधिकारी थे और उसके बाद मार्च 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में क्रूरता और नरसंहार को देखते हुए भारत में प्रवेश करने में सफल रहे थे.

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सीमा पार करते समय उनकी जेब में सिर्फ 20 रुपये थे. शुरू में उन पर पाकिस्तानी जासूस होने का संदेह था. एक बार जब वह भारत आए, तो उन्हें पठानकोट ले जाया गया, जहां सैन्य अधिकारियों ने उससे और पाकिस्तानी सेना की तैनाती के बारे में पूछताछ की. पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला युद्ध में मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए पूर्वी पाकिस्तान जाने से पहले उन्हें महीनों तक एक सुरक्षित घर में ले जाया गया था. उन्होंने उद्धृत किया था कि पाकिस्तान से उनके भागने का कारण यह था कि जिन्ना का पाकिस्तान एक कब्रिस्तान (कब्रिस्तान) बन गया है. उनके साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता था, जिनके पास कोई अधिकार नहीं था.

 

बांग्लादेश के पूर्व उच्चायुक्त रहे मुअज्जम अली को पद्मभूषण

कर्नल काजी सज्जाद के साथ साथ भारत में बांग्लादेश के पूर्व उच्चायुक्त रहे मुअज्जम अली को भी भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है. लेकिन, कर्नल काली सज्जाद अली जहीर वो शख्स हैं, जिनकी तलाश पिछले 50 सालों से पाकिस्तान को है.

 

जानिए 1971 में क्यों पाकिस्तान के खिलाफ उठा था विद्रोह

1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई से पहले पाकिस्तान के सैनिक बांग्लादेश में भीषण उपद्रव मचा रहे थे और वहां हजारों लोगों की हत्या कर चुके थे, उस वक्त बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ भारी विद्रोह उठा था. पाकिस्तानी सैनिकों ने हजारों बांग्लादेशी महिलाओं से बलात्कार किया था, जिसके बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा. उस वक्त कर्नल जहीर ने भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था, जबकि बांग्लादेश की आजादी से पहले कर्नल जहीर पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारी थे.

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रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नल जहीर ने उस वक्त पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए भारतीय सेना को कई गोपनीय दस्तावेज सौंपे थे, जिसकी वजह से पाकिस्तानी सैनिकों की कमर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में टूट गई. बांग्लादेश को नया देश बनाने के लिए कर्नल जहीर ने ही भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर मुक्ति वाहिनी के हजारों लड़ाकों को सैन्य अभ्यास के जरिए ट्रेनिंग देनी शुरू की थी, जिसके बाद पाकिस्तान इस तरह भड़क गया था कि कर्नल जहीर को मारने का वारंट जारी कर दिया. अपने मिशन के बारे में बात करते हुए कर्नल जहीर ने एक बार बताया था कि ”मुझे मौत की सजा सुना दी गई थी, लेकिन मैं भागकर भारत पहुंचने में कामयाब रहा. जिसके बाद भारतीय सेना ने मेरी जान बचाई और फिर बाद में मैं मुक्ति वाहिनी का ट्रेनर बन गया”.