नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में दो बार पाकिस्तान को धूल चटाने वाला डकोटा विमान ‘परशुराम’ एक बार फिर इंडियन एयरफोर्स को मिलेगा. 1947 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए छद्म युद्ध में भी इसने अहम भूमिका निभाई थी. उस वक्त पाकिस्तान ने कबायलियों के वेश में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था. ये आज़ादी मिलने के ठीक बाद की बात है.
अभी वर्तमान में ‘परशुराम’ ब्रिटेन में मरम्मत के लिए है. यहां पिछले 6 सालों से इसकी मरम्मत का काम चल रहा था. डकोटा विमान ‘परशुराम’ अगले महीने भारत पहुंचेगा, जहां हिंडन एयरपोर्ट पर इसे भारतीय वायुसेना को सौंपा जाएगा. ये फ्रांस, इटली, ग्रीस, मिस्र, ओमान के ऊपर से उड़ते हुए गुजरात के जामनगर पहुंचेगा और फिर वहां से उसे नई दिल्ली के पास गाजियाबाद में स्थित वायुसेना के हिंडन हवाईअड्डे पर भेजा जाएगा.
राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने विमान से जुड़े डॉक्यूमेंट्स वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ को सौंपे. इस मौके पर धनोआ ने कहा कि डकोटा विमान ‘परशुराम’ की बदौलत ही आज पुंछ भारत का हिस्सा है.
डकोटा विमान ‘परशुराम’ की खास बातें
- 1930 में इसे तत्कालीन रॉयल इंडियन एयरफोर्स में शामिल किया गया था. उसके बाद से इसकी तैनाती लद्दाख और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में होती थी.
- 1947 में आज़ादी के ठीक बाद पाकिस्तान ने कबायलियों के वेश में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था. तब ‘परशुराम’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने कहा कि कश्मीर के पुंछ का इलाका डकोटा एयरक्राफ्ट की वजह से ही है.
- ‘परशुराम’ ने 27 अक्टूबर 1947 को सेना के 1 सिख रेजिमेंट के जवानों को श्रीनगर पहुंचाया था. ढाका और बांग्लादेश में भी इसकी अहम भूमिका रही. इसने शरणार्थियों और सामानों को भी अपने गंतव्य तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
- डॉग्लस डीसी 3 विमान को डकोटा नाम से जाना जाता है. इसका सैन्य मिशन में अहम योगदान होता है.
- डकोटा डीसी-3 पहला विमान है, जिसे लेह में 11,500 फीट की ऊंचाई पर विंग कमांडर मेहर सिंह ने उतारा था. 1940 से 1980 तक वायुसेना में इसका खूब इस्तेमाल होता था.
- ‘परशुराम’ भारतीय वायुसेना के पास मौजूद विशिष्ट विमानों में पहला डकोटा विमान है. ब्रिटेन में हुई मरम्मत में इसे नया रूप दिया गया है. इसके नेविगेशन सिस्टम को भी अपग्रेड किया गया है, लेकिन इसकी टेल पर उसी डकोटा विमान का नंबर VP 905 रहेगा, जिसने 1947 में भारत-पाकिस्तान ‘युद्ध’ के दौरान सैनिकों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाया था.