DeepSeek Ai: चीनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) स्टार्टअप DeepSeek के R1 मॉडल ने वैश्विक टेक्नोलॉजी सेक्टर में हलचल मचा दी है. इस मॉडल ने दिखाया है कि सीमित संसाधनों और कम लागत में भी उन्नत AI तकनीक विकसित की जा सकती है. भारत के शीर्ष AI विशेषज्ञों का मानना है कि यह मॉडल भारत के लिए भी एक बड़ा सबक है और अगर सही रणनीति अपनाई जाए, तो देश AI में ‘मंगलयान’ जैसा करिश्मा कर सकता है.
IIIT-दिल्ली के प्रोफेसर और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष गौतम श्रोफ ने कहा, “R1 मॉडल की लॉन्चिंग के साथ, भारत AI में भी मंगलयान जैसी सफलता हासिल कर सकता है.” उन्होंने इसरो के सफल स्पेस प्रोग्राम का उदाहरण देते हुए कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद अगर सही दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो भारत AI में वैश्विक स्तर पर बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है.
IIT जोधपुर के कंप्यूटर साइंस प्रोफेसर मयंक वत्स का कहना है कि अमेरिका और चीन वर्तमान में AI में आगे हैं, लेकिन भारत के पास भी इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने का अवसर है. उन्होंने कहा, “DeepSeek का मॉडल यह दिखाता है कि ओपन-सोर्सिंग से वैश्विक प्रतिस्पर्धा और सहयोग को बढ़ावा मिलता है. भारत को भी इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.”
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इसरो मॉडल से मिलेगी प्रेरणा
वत्स ने इसरो की यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि एक समय भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी में अयोग्य माना जाता था और इसको लेकर कार्टून तक बनाए गए थे. लेकिन आज इसरो की सफलता ने भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है. इसी तरह, भारत को AI में भी आत्मनिर्भरता और नवाचार पर ध्यान देना होगा ताकि कम लागत में बड़े परिणाम हासिल किए जा सकें.
श्रोफ ने कहा, “भारत ने मंगलयान को विकसित देशों की तुलना में बेहद कम लागत में सफलतापूर्वक मंगल ग्रह तक पहुंचाया. AI में भी यही दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.”
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DeepSeek मॉडल ने AI जगत में मचाई हलचल
पिछले हफ्ते लॉन्च हुआ DeepSeek का R1 मॉडल दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है. यह मॉडल एप्पल के ऐप स्टोर पर सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला फ्री एप्लिकेशन बन गया और OpenAI के ChatGPT को भी पछाड़ दिया. यह स्टार्टअप सीमित संसाधनों के साथ भी OpenAI जैसे बड़े अमेरिकी दिग्गजों के मुकाबले टक्कर देने में सक्षम साबित हुआ है.
DeepSeek ने मात्र 6 मिलियन डॉलर (लगभग 50 करोड़ रुपये) की लागत से इस मॉडल को विकसित किया, जबकि OpenAI ने अपने GPT-4 मॉडल को विकसित करने में 100 मिलियन डॉलर (लगभग 830 करोड़ रुपये) खर्च किए थे. इस मॉडल में “मिक्सचर ऑफ एक्सपर्ट्स” तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें कई छोटे विशेषीकृत मॉडल मिलकर काम करते हैं, बजाय इसके कि एक ही बड़ा मॉडल पूरी प्रक्रिया संभाले.
वत्स का मानना है कि यह तकनीक बड़े मॉडलों की तुलना में अधिक कुशल और प्रभावी साबित हो सकती है. इससे कम संसाधनों वाले देशों में भी उन्नत AI विकसित करने का मार्ग प्रशस्त होगा.
ऊर्जा बचत और पर्यावरणीय प्रभाव
AI मॉडल्स को ट्रेनिंग देने के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होती है. अमेरिका में 2023 में डेटा सेंटर्स ने कुल बिजली खपत का 4.4% उपयोग किया, जो 2028 तक 12% तक बढ़ सकता है. DeepSeek का R1 मॉडल ऊर्जा खपत के मामले में भी किफायती है. इसे केवल 2,000 GPUs के साथ विकसित किया गया, जबकि OpenAI जैसे बड़े खिलाड़ी 16,000 या उससे अधिक GPUs का उपयोग करते हैं.
IIT बॉम्बे के प्रोफेसर पुष्पक भट्टाचार्य का कहना है कि DeepSeek का यह कदम AI के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है. “AI समुदाय लंबे समय से इस तकनीक के पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंतित था. यह मॉडल उस दिशा में एक सकारात्मक पहल है,” उन्होंने कहा.
भारत के लिए आगे का रास्ता
भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब अपनी AI क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. खासतौर पर स्थानीय भाषाओं के लिए AI मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है ताकि देश की क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखते हुए नागरिकों को सही जानकारी मिल सके. भट्टाचार्य ने उदाहरण देते हुए कहा कि AI को इस तरह से विकसित किया जाना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपने मोबाइल फोन पर फसल संबंधी समस्याओं के समाधान प्राप्त कर सकें.
श्रोफ का मानना है कि भारत में AI क्षेत्र को विकसित करने के लिए सरकारी और निजी संस्थानों को मिलकर काम करना होगा. उन्होंने कहा, “हमारी निजी कंपनियों में अभी AI के मूलभूत मॉडल विकसित करने की न तो क्षमता है और न ही इच्छा. हमें केवल उपभोक्ता बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि योगदान भी देना चाहिए.”
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उन्होंने भारत सरकार द्वारा हाल ही में घोषित 10,000 करोड़ रुपये की AI मिशन योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इस फंड का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की जरूरत है. “DeepSeek से हमें सीखने की जरूरत है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी बेहतरीन मॉडल तैयार किए जा सकते हैं,” उन्होंने कहा.
DeepSeek के R1 मॉडल ने यह साबित कर दिया है कि सीमित संसाधनों में भी AI क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है. भारत को भी इसी दिशा में काम करना होगा और अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करते हुए वैश्विक AI परिदृश्य में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करानी होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत सही दिशा में आगे बढ़े, तो आने वाले वर्षों में देश AI क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू सकता है.
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