दुर्ग। जिले में स्वाइन फ्लू का खतरा लगातार बढ़ते जा रहा है. स्वाइन फ्लू के संदिग्ध और पाजिटिव मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जो जिलेवासियों और स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़े खतरे की घंटी है. रोजाना मरीजों की संख्या में बढ़ रही है. दुर्ग जिला प्रदेश में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. राजधानी में सबसे ज्यादा संदिग्ध और पाजिटिव मरीज है, लेकिन स्वाइन फ्लू से मरने वालों में दुर्ग जिला नंबर वन है, जहाँ 11 लोगों की मौत ने स्वास्थ्य महकमे में हडकंप मचा दिया है. जिस स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा है वही स्वाइन फ्लू,पीलिया,डेंगू,मलेरिया जैसे गंभीर बीमारियों को आमंत्रण देता दिखाई दे रहा है.
जिले में स्वाइन फ्लू का कहर लगातार जारी है. जिले के अलावा दूसरे जिले के भी स्वाइन फ्लू से प्रभावित मरीज पहुंचे रहे है. स्वाइन फ्लू से जिले में अब तक कुल 19 लोगों की जान जा चुकी है. अकेले दुर्ग जिले से 12 और दूसरे जिले बालोद, बेमेतरा से 8 लोग शामिल है. जिले में 123 संदिग्ध मरीजों के विभिन्न अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती हैं. जिसमे 58 पॉजिटिव रिपोर्ट सामने आये है. एक नजर पीलिया, मलेरिया, डेंगू से जिले में 2 दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. उसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा रोकथाम के सिस्टम मरीजों के सामने घुटना टेकती नजर आ रही है. ये तस्वीर दुर्ग जिला अस्पताल की है, जहाँ पर जिले के अलावा दूसरे जिले के मरीज और उसके परिजन रोजाना आते-जाते है. जिले में इस अस्पताल को जीवनदायिनी के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन इस अस्पताल की हकीकत सुनेंगे तो आप भी कहेंगे कि इस अपस्ताल में ही इतनी गंदगी है तो दूसरे अस्पतालों का तो भगवान ही मालिक है. जिला अस्पताल में प्रवेश करते ही मरीज और उनके परिजन नाक और मुंह में कपडा बांधकर जाने को मजबूर हो रहे है. अस्पताल में सबसे संवेदनशील माने जाने वाला प्रसूति वार्ड में भी गंदगियों और बदबू से मरीज और परिजन काफी परेशान है. अस्पताल में कई वार्डों में गंदगी और बदबू पसरी है. मरीज अपनी बीमारी को ठीक करने आते है, लेकिन इस गंदगी और बदबू से दीगर बीमारी का संक्रमण फैलने का डर हमेशा बना रहा है. कचरे के ढेर से निकलने वाली बदबू से पीलिया, मलेरिया, स्वाइन फ्लू जैसी गंभीर बीमारी का संक्रमण हो सकता है. मरीज के परिजनों की मानें कि जिस देश के प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत कई स्थानों की सफाई की जा रही है, लेकिन शासकीय अस्पतालों में यह अभियान सिर्फ कागजों तक ही सीमित है. और अस्पताल से निकलने वाली वेस्ट दवाई और विभिन्न सामग्रियों को भी खुले सथानों पर फेंक दिया जाता है.
सिविल सर्जन भी स्वीकार कर चुके हैं कि गंदगी और बदबू से पीलिया, मलेरिया, स्वाइन फ्लू जैसी गंभीर बीमारी फैलने का खतरा है. लेकिन जब जिले अस्पताल की सफाई व्यवस्था को लेकर पूछे जाने पर सफाई ठेका प्रक्रिया नहीं होने की बात कहते हुए अपना पल्ला झाड़ दिया. उनका कहना है कि निगम द्वारा कचरा उठाने की जिम्मेदारी दी गई है. अस्पताल से निकलने वाली वेस्ट सामग्रियों को भी खुले स्थानों पर नहीं फेंका जाता है.
सबसे चिंतनीय बात तो ये है कि जिले के किसी भी अस्पताल में वैक्सीन और मास्क की व्यवस्था नहीं है, जबकि पखवाड़ेभर से स्वाइन फ्लू ने अपनी दस्तक दिया है और जिसका दायरा लगातार बढ़ते जा रहा है. हालत तो ये है कि जिला अस्पताल में टेमीफ्लू की दवा की भी ख़त्म होने की कगार में आ गयी है. इन सबके बाद भी स्वास्थ्य विभाग स्वाइन फ्लू कंट्रोल कर लेने का दावा कर रहे है. जिले कई लोगों की मौत के बाद भी जिला स्वास्थ्य विभाग कंट्रोल करने में विफल नजर आ रही है. लेकिन इन सब का खामियजा गरीब आम जनता को ही भुगतना पड़ता है.