वैभव बेमेतरिहा/प्रदीप गुप्ता, कवर्धा। कभी सच्ची कहानी फिल्मी हो जाती है, तो कभी फिल्म में देखीं हुई काल्पनिक कहानी सच्ची. ऐसी एक सच्ची और दिलचस्प कहानी आप लल्लूराम डॉट कॉम पर पढ़ने जा रहे हैं. ये कहानी है सीएम डॉ. रमन सिंह के गृह नगर की. ठहरहिए जल्दबाजी में कोई अनुमान ना लगाएं, बल्कि बड़े इत्मीनान से आप इस कहानी को पढ़ते जाइए. क्योंकि आप मोबाइल पर चंद मिनट में ही 3 घंटे की फिल्म पढ़ते-पढ़ते देख लेंगे.

चार साल का था शिवा, जब वह भिलाई से लापता हो गया था. रेल्वे स्टेशन में खेलते-खेलते कब वह ट्रेन में बैठकर गायब हो गया किसी को पता ही नहीं चला. शिवा अनजान ट्रेन में सफर करते-करते अनजान स्टेशन में पहुंच चुका था. इधर शिवा के घरवालों बच्चें की तलाश में भटकने लगे थे. सुपेला पुलिस से लेकर जीआरपी तक खोजबीन में जुट गई थी. इस बीच शिवा अजनबियों के बीच बिलासपुर स्टेशन पहुंच चुका था.

ये कहानी ज्यादा पुरानी नहीं, सिर्फ 3 साल पहले की बात है. वर्तमान को जनाने अतीत की ओर झांकना होगा. क्योंकि इस दिलचस्प कहानी में कई मोड़ हैं. इसी मोड़ की पहली शुरुआत बिलासपुर स्टेशन होती है. शिवा अब बिलासपुर रेल्वे पुलिस की कब्जें में था. लेकिन शिवा ये बता पाने की स्थिति में नहीं था कि वो कौन है, कहां से आया है यहां कैसे पहुँचा है.

दूसरी तरफ शिवा के परिवार वालें अपने बच्चें की तलाश में पुलिस वालों के साथ भिलाई, दुर्ग, रायपुर जगह-जगह तलाश में थे. दिन, हफ्ते और हफ्ते, महीने से लेकर कब साल बीतते 3 साल में बदल गए पता ही नहीं चला. शिवा की मां शारदा राजपूत इस दौरान ना सिर्फ अपने बेटे को तलाशते रहीं, बल्कि भगवान के दर पर मिन्नतें करती रहीं. लेकिन अर्जी तब भगवान कहां सुन रहे थे प्रभु तो शारदा की जैसे परीक्षा ले रहे थे. हर चौखट से शिवा की कोई खबर ना मिलने पर निराश शारदा अब शिवा के मिलने की उम्मीद छोड़ चुकी थीं.


इसी बीच तेजी से समय का चक्र घुमा. अचानक वर्तमान में अतीत की धुंधली यादें शिवा की मौसेरी बहन की स्मृति में स्मरणित हो गई. शारदा की बहन की बेटी जो शिवा की मौसेरी बहन है शिवा से वहां मिली जिसकी कभी कल्पना भी शारदा नहीं कर सकती थी. भ्रम में ना मत पढ़िए, बल्कि कहानी को बस पढ़ते जाइए.

अब आपको भिलाई और बिलासपुर से निकलकर सीएम के गृह नगर कवर्धा में पहुंचा होगा. क्योंकि इस सच्ची दास्तां में बिछड़े बेटे की मुलाकात इसी शहर में होती है. दरअसल शारदा की बहन कवर्धा में रहती हैं. शारदा की बहन की एक छोटी बेटी है. मतलब शिवा की मौसेरी बहन. शिवा की मौसेरी बहन कवर्धा के गंगा नगर स्कूल में पढ़ती है. उसी स्कूल में जहां शिवा दाखिला लेने पहुंचा था. बस फिर क्या था शिवा की मौसेरी बहन ने अपने भाई को पहचान लिया. इसकी खबर तत्काल शारदा तक पहुंची और बिना देर किए शिवा के माता-पिता कवर्धा पहुंच गए.

आप सोच में मत पढ़िए, बल्कि आगे पढ़ते रहिए. दरअसल बिलासपुर रेल्वे पुलिस की कब्जे में आने के बाद शिवा 6 महीने बाद कवर्धा स्थित बाल सुधार गृह पहुंच गया था. क्योंकि शिवा के बारे में कहीं कोई खोज-खबर नहीं मिली तो पुलिस ने बाल सुधार गृह भेज दिया. बाल सुधार गृह में रहकर शिवा पढ़ाई करते रहा.

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. लिहाजा बाल सुधार गृह प्रबंधन की ओर से शिवा को गंगा नगर स्थित सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में भर्ती कराने ले जाया गया. शायद वक्त़ इसी इंतज़ार में था. भगवान भी शारदा की परीक्षा यहीं खत्म कर रहे थे. शायद प्रभु ने शारदा की उसकी सबसे बड़ी खुशी, सबसे बड़े पर्व के साथ देना तय किया था.

दिवाली से पहले शारदा के घर जो खबर आई वह उसके लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए चौंका देने वाली थी. जिस बेटे की मिलने की उम्मीद शारदा छोड़ चुकी थी वह बेटा कभी इस तरह त्यौहार के मौके पर फिर मिल जाए करोड़ों से शायद किसी एक साथ ऐसा होता है. क्योंकि यहां तो हर दिन सैकड़ों लोग गुमशुदा हो जाते हैं. शारदा की तरह कोई-कोई ही किस्मत वाला होता जिसको उसका खोया कोई मिले.

भले शिवा को मौसेरी बहन पहचान चुकी थी, लेकिन अभी पुलिस को यह पहचान करना बाकी था कि शिवा शारदा का बेटा है या नहीं. महिला एवं बाल विकास विभाग, बाल सुधार गृह और कवर्धा पुलिस ने शारदा की गुमशुदगी रिपोर्ट से लेकर बिलासपुर रेल्वे पुलिस तक की गहरी छानबीन की. जब पुलिस को तमाम प्रमाण के बीच यह तस्दीक हो गया कि शारदा का गुमशुदा बेटा शिवा ही तो पुलिस ने शिवा को शारदा को सौंप दिया.

जैसे ही ये खबर स्थानीय विधायक अशोक साहू को मिली. अशोक साहू खुद बधाई देने शारदा और शिवा के पास पहुँचे. उन्होंने कहा कि आज यह हम सबके लिए दिवाली से पहले की एक बड़ी खुशी है.