सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने जस्टिस यशवंत वर्मा (Yashwant Verma) के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले को तुरंत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता. चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने बताया कि यह इस मामले में तीसरी बार है जब तत्काल सुनवाई की मांग की गई है. चीफ जस्टिस ने याचिका के वकील से पूछा कि क्या वे चाहते हैं कि इसे खारिज किया जाए, जिस पर वकील ने कहा कि वर्मा भी यही तर्क दे रहे हैं कि औपचारिक शिकायत नहीं हुई है, इसलिए FIR होनी चाहिए और फिर जांच की जानी चाहिए.
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अदालत ने याची के वकील मैथ्यूज नेदुमपारा की भाषा पर आपत्ति जताई. बेंच ने स्पष्ट किया कि एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को ‘वर्मा’ कहकर संबोधित करना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश अब भी न्यायमूर्ति वर्मा हैं और इस तरह की असम्मानजनक भाषा का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. बेंच ने वकील से अपेक्षा की कि वे एक वरिष्ठ न्यायाधीश के प्रति मर्यादा बनाए रखें. हालांकि, मैथ्यूज ने अपने विचार पर अडिग रहते हुए कहा कि उन्हें इतना सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए और मामले की सुनवाई की मांग की. इस पर बेंच ने उन्हें चेतावनी दी कि अदालत के आदेश की भाषा में इस प्रकार की बात नहीं की जा सकती.
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में रखी है क्या मांग
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने मांग की है कि उनके खिलाफ आई इन-हाउस रिपोर्ट को खारिज किया जाए. इस रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा की भूमिका कैश कांड में संदिग्ध बताई गई है. यह मामला 14 मार्च 2025 का है, जब जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे. उन पर आरोप है कि उनके सरकारी आवास के एक कमरे में बड़ी मात्रा में नोट पाए गए थे, जो तब सामने आया जब घर में आग लग गई और फायर ब्रिगेड के पहुंचने पर कई नोट मिले, जिनमें से कुछ अधजले थे. इस प्रकरण की जांच के लिए तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने एक समिति का गठन किया था.
कमेटी की रिपोर्ट में क्या पाया गया, 55 गवाहों से की थी बात
इस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें जस्टिस वर्मा की भूमिका को संदिग्ध पाया गया. इसके आधार पर, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए पत्र लिखा गया. यह भी कहा जा रहा है कि सरकार मॉनसून सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकती है. इस मामले की जांच के लिए तीन जजों का एक पैनल बनाया गया, जिसकी अध्यक्षता हरियाणा एवं पंजाब हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने की. कमेटी ने 10 दिन की जांच में 55 गवाहों से बातचीत की और घटनास्थल का दौरा भी किया.
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