कुमार इंदर। जबलपुर नगर निकाय चुनाव में भले ही कांग्रेस का मेयर प्रत्याशी जीत गया हो, लेकिन नगर निगम में दबदबा अभी बीजेपी का बरकरार रहने वाला है, क्योकि शहर से बीजेपी के 44 पार्षद चुनाव जीते हैं,जबकि कांग्रेस को महज 26 सीट मिली है। बीजेपी की भारी जीत यह बता रही है कि जबलपुर में अब भी बीजेपी का किला मजबूत है। जिसका परिणाम अगले साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। इस निकाय चुनाव में कई दिग्गज भी अपना किला नहीं बचा पाए हैं।

विधानसभा वार वार्ड की स्थिति

जबलपुर जिले में कुल 8 विधानसभा सीट और एक लोकसभा सीट आती है। मेयर के चुनाव में 5 विधानसभा की सीमा आती है। विधानसभा वार स्थिति देखा जाए तो सभी विधानसभा में कांग्रेस ने इस बार अपनी सीटें गवाई है, बात यदि कैंट विधानसभा की की जाए तो नगर निगम क्षेत्र में कैंट के 11 वार्ड आते हैं, जिसमें से कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया। कैंट विधानसभा के 11 वार्ड में से 9 पर बीजेपी जीती है, जबकि 2 वार्ड में निर्दलीय प्रत्याशी जीत कर आए हैं। कैंट विधानसभा में इस हालत के पीछे पूरी तरह पूर्व कैंट बोर्ड उपाध्यक्ष चिंटू चौकसे और कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा जिम्मेदार हैं। कैंट विधानसभा के सभी 11 वार्डों में इन्हीं दो लोगों की मर्जी से टिकट बांटी गई थी। यह स्थिति तब है जब आलोक मिश्रा कैंट से पिछली बार विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं उन्ही की पत्नी वत्सला मिश्रा भी इस बार कैंट से पार्षद का चुनाव लड़ी थी जो खुद हार गई। खास बात यह है कि आलोक मिश्रा की पत्नी जिस प्रत्याशी से हारी है वह इससे पहले कांग्रेस का पार्षद रह चुका है, उसी पार्षद की टिकट काटकर आलोक मिश्रा की पत्नी को टिकट दी गई थी।

पूर्व विधानसभा क्षेत्र में भी कुछ ठीक नहीं रहे हालात

पूर्व विधानसभा से लखन घनघोरिया विधायक हैं और पूर्व मंत्री भी रहे हैं। यहां पर कुल 21 वार्ड आते हैं, इनमें से भाजपा ने 10 वार्ड पर अपना कब्जा जमाया है तो वहीं कांग्रेस माइनस होकर महज 5 पार्षद ही जीत पाई है। यहां पर दोनों ही पार्टियों को यदि किसी ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है तो वह है ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने । कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचा है। ओवैसी के पार्टी के यहां पर दो पार्षद चुनकर आए हैं। जबकि 2 पार्षद निर्दलीय चुने गए हैं। पिछले निकाय चुनाव की तस्वीर देखी जाए तो यहां पर कांग्रेस को 5 सीट का नुकसान हुआ है। पूर्व विधानसभा में भाजपा को 50 हजार 653 वोट मिले, तो कांग्रेस को 84 हजार 213 वोट मिले। दोनों के बीच मतों का अंतर 33 हजार 560 है।

पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस पिछड़ी

कांग्रेस विधायक और पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट के पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में भी हालत कुछ अच्छी नहीं है। पश्चिम विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो यहां पर 18 वार्ड आते हैं, जिसमें से 10 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो वहीं कांग्रेस के खाते में 8 पार्षद आए हैं। पिछले निकाय चुनाव में पश्चिम विधानसभा की बात की जाए तो यहां पर 13 पार्षद कांग्रेस पार्टी के थे, जबकि पांच पर बीजेपी थी। यानी इस बार कांग्रेस की 5 सीटें पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से कम हुई है, वहीं बीजेपी प्लस में गई है। पश्चिम विधानसभा में भाजपा महापौर प्रत्याशी को 65 हजार 400 वोट मिले, तो कांग्रेस मेयर प्रत्याशी को 66 हजार 595 वोट मिले।

उत्तर मध्य विधानसभा में कुछ बेहतर है स्थिति

वहीं मध्य विधानसभा की बात की जाए यहां से कांग्रेसी विधायक विनय सक्सेना आते हैं। मध्य विधानसभा में कुल 20 वार्ड हैं, इनमें से कई वार्डों में तो भाजपा कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। दो से तीन वार्ड में कांग्रेस 40 से 70 वोट के अंतर से पिछड़ गई। इस बार निकाय चुनाव में बीजेपी के खाते में 11 पार्षद आए हैं तो कांग्रेस के 7 पार्षद जीते हैं, जबकि दो निर्दलीय पार्षद भी मध्य विधानसभा से चुनकर आए हैं। पिछली बार निकाय चुनाव में कांग्रेस के 3 पार्षद आए थे। उत्तर मध्य विधानसभा में भाजपा को महज 50 हजार 653 वोट मिले तो कांग्रेस की झोली में 84 हजार 213 वोट गिरे।

पनागर विधानसभा की स्थिति

निकाय चुनाव में यदि पनागर विधानसभा की स्थिति देखी जाए तो यहां पर 8 वार्ड इस बार निकाय चुनाव के अंतर्गत शामिल थे, जिनमें से चार भाजपा के खाते में जुड़े, तो 3 पार्षद कांग्रेस पार्टी की जीत कर आए। वहीं एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने अपनी जीत दर्ज कराई है। यहां पर जिस निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है वो भी कांग्रेस का बागी उम्मीदवार ही था। पनागर विधनसभा में भाजपा को 29 हजार 946 वोट मिले है तो कांग्रेस को 25 हजार 466 वोट मिले है। यहां भाजपा की लीड 4 हजार 480 मतों की रही।

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