कुमार इंदर, जबलपुर। गेस्ट फैकल्टी को असिस्टेंट प्रोफेसर का न्यूनतम वेतन देने के मामले में आज हाईकोर्ट में सुनवाई की गई। जिस पर हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने पूछा इंजीनियरिंग कॉलेज के मानक तय करना केंद्र का विषय है न कि राज्य सरकार का, फिर कैसे राज्य सरकार ने वेतन संबंधी आदेश तय कर दिए। इस बाबत हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
दरअसल जबलपुर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज और उज्जैन कॉलेज के गेस्ट फैकल्टी द्वारा गेस्ट फैकल्टी के रूप में कार्य कर रहे सहायक प्राध्यापकों द्वारा समान कार्य समान वेतन के लिए याचिका दायर लगाई गई है। जिसमें कहा गया है कि, राज्य सरकार ने 27 जनवरी, 2022 को आदेश जारी किया था, जिसमें राज्य सरकार ने गेस्ट फैकल्टी के लिए मासिक वेतन 30 हजार तय किए थे। बावजूद इसके सरकार अपने ही आदेश के उलट 400 रूपये प्रति पीरियड पैसा दे रही है। याचिका में कहा गया है कि, इस संबंध में नियम तय करने के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद दिल्ली अधिकृत है। जस्टिस शील नागू और जस्टिस डीडी बंसल की बेंच में इस मामले में सुनवाई हुई।
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याचिकाकर्ता के वकील विनायक प्रसाद शाह ने बताया कि, याचिकाकर्ताओं की नियुक्तियां गेस्ट फैकल्टी के रूप में सहायक प्राध्यापक असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के रिक्त पदों के विरुद्ध की गई हैं। न्यायालय के आदेशानुसार याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सबसे पहले ग्वालियर खंडपीठ द्वारा पारित अंतरिम आदेश से अवगत कराया। इसके बाद इंदौर खंडपीठ द्वारा पारित याचिका में पारित आदेश से अवगत कराया कि, गेस्ट फैकेल्टी को समान कार्य समान वेतन के तहत नियमित सहायक अध्यापक का न्यूनतम वेतन महागाई भत्ता सहित दिया जाना चाहिए। ऐसा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया। इंदौर बेंच में याचिकाकर्ताओं के अभ्यावेदन, को माननीय राज्य सरकार ने विचार करते हुए 27 जनवरी, 2022 को आदेश पारित किया गया है जिसमें राज्य सरकार ने पूर्व के सभी आदेशों को निरस्त करते हुए गेस्ट फैकेल्टी के लिए 30 हज़ार रुपए महीना निर्धारित किया है।
याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि इंजीनियरिंग कॉलेजों का मानक निर्धारण करने का कार्य संविधान में संघ सूची का विषय है जिस पर कार्य करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाकर के अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की स्थापना की गई है जो निर्णय कॉलेजों की मानक को निर्धारित करता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अंतरिम राहत चाहते हुए निवेदन किया गया कि राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार याचिकाकर्ताओं को याचिका के विचाराधीन रहते हुए मासिक वेतन 30000 दिया जाना चाहिए। जिस पर राज्य सरकार की ओर से डिवीजन बेंच नंबर 1 द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए बताया कि इस तरह का अंतरिम आदेश देने से डिविजन बेंच नंबर 1 में इंकार कर दिया। जिस को मानने के लिए डिवीजन पेज नंबर दो भी बाध्य है। सरकार के पक्ष को सुनते हुए माननीय न्यायालय ने सभी रेस्पोंडेंट को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह, रूप सिंह मरावी, मधुसूदन कुर्मी, संजय बौद्ध ने पक्ष रखा।
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