रायपुर। प्रदेश भर में राज्य सरकार 1 दिसम्बर से धान खरीदी की शुरुआत करने जा रही है, जबकि प्रदेश के किसानों को अब तक पिछले वर्ष हुई धान की खरीदी के समर्थन मूल्य का पूरा भुगतान अब तक नही हुआ है. ऐसे में जेसीसीजे अध्यक्ष अमित जोगी ने छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके को पत्र लिखकर धान खरीदी और उसके समर्थन मूल्य के भुगतान को लेकर राज्य सरकार को निर्देशित करने की मांग की है.

अमित जोगी ने पत्र में लिखा कि भारत में धान ख़रीदी की बुनियाद छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी ने बड़ी विषम परिस्थितियों में 1 नवम्बर 2001 को रखी थी. उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले किसानों को ₹2500 प्रति क्विंटल धान का समर्थन मूल देने के लिए बकाया शपथ पत्र दाखिल किया था, जिसका अनुसरण कांग्रेस पार्टी ने अपने जन-घोषणा पत्र में किया था.

2018 में कांग्रेस सरकार ने किसानों को ₹2500 देकर एक शानदार शुरुआत की थी किंतु 2019 में उसकी कथनी और करनी का अंतर साफ़ दिखने लगा. 2019 के अनुभव से 6 बातें स्पष्ट हैं-

(१) 2019 की किसानों को ₹2500 समर्थन मूल की पूरी राशि आज तक नहीं मिली है जबकि केंद्र द्वारा ₹18,500 करोड़ दिया जा चुका है और राज्य सरकार को मात्र ₹6000 करोड़ अपनी ओर से देना शेष था जो कि उसके वार्षिक बजट का 2% हिस्सा भी नहीं है. इतनी राशि तो सरकार हर साल केवल शराब बेच के कमा लेती है. एकमुश्त ₹2500 समर्थन मूल किसानों के खाते में जमा न करके कांग्रेस सरकार की किसान-विरोधी नियत स्पष्ट होती है.

(२) पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ से दोगुना धान ख़रीदा जा रहा है जिसके कारण राज्य सरकार का भार आधा हो गया है. इसका सीधा लाभ किसानों को तभी मिलेगा जब धान ख़रीदी की मात्रा में 15 क्विंटल प्रति एकर की सीमा को समाप्त करके सरकार उनके द्वारा उपार्जित एक एक दाना धान की ख़रीदी करे और किसानों के पट्टों में दर्ज रक़बा को लगातार कम करना बंद करे.

(३) धान ख़रीदी 1 नवम्बर से शुरू न करके एक महीने विलम्ब से की जा रही है जिसके कारण कम से कम 25% धान को किसानों को भंडारण के अभाव और आर्थिक मजबूरी में बिचौलियों को आधे से भी कम दामों में बेचना पड़ा है.

(४) धान ख़रीदी में 30 दिनों के इस विलम्ब के दौरान अघन की वर्षा के कारण कटी हुई धान की फसल का जो नुक़सान होता है, उसकी भरपाई करने का सरकार के पास कोई प्रावधान नहीं है.

(५) अधिकांश समितियों में सर्वर डाउन होने के कारण धान ख़रीदी के कम्प्यूटरीकरण का किसानों को फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा होता है. प्रतिदिन समितियों में धान ख़रीदी की मात्रा पूर्व से ही निर्धारित होती है जिसके कारण दो महीने में भी किसानों का पूरा धान ख़रीदा जाना सम्भव नहीं है. ऐसे में सरकार को 2020 में सर्वर की क्षमता के साथ-साथ बारदाना के स्टॉक और धान ख़रीदी केंद्रों की संख्या को कम से कम 75% बढ़ाना था किंतु ऐसा नहीं किया गया है. समितियों में भारी अव्यवस्था के कारण किसानों को अपना धान बेचने के लिए औसतन 14-24 घंटे इंतेज़ार करना पड़ता है.

(६) धान कटाई के बाद दो महीने की लम्बी धान ख़रीदी की अवधि के दौरान फसल के सूखने और संक्रमित होने के कारण भारी नुक़सान होता है. इसकी भी भरपाई करने का सरकार के पास कोई प्रावधान नहीं है.

1 दिसंबर 2020 से प्रदेश का एकमात्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने पूरे छत्तीसगढ़ में किसान हित में ‘धान सत्याग्रह’ करने का निर्णय लिया है जिसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ के किसानों की तरफ़ से हम सरकार से चार माँग करते है:

1. उठे धान का एक एक दाना.
2. कम न पड़े बारदाना.
3. एकमुश्त ₹2500 समर्थन मूल दिलाना.
4. बिचौलियों से किसानों को बचाना.

इससे पहले जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे ने केंद्रीय एवं जिला स्तरीय धान खरीदी निगरानी समिति का भी गठन किया है. इन सभी मांगों को लेकर जेसीसीजे के कार्यकर्ता सभी जिला कलेक्टरों को महामहिम राज्यपाल के नाम ज्ञापन भी सौंपेंगे.