रायपुर. गुरुवार को छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र केयूर भूषण का निधन हो गया, अपनी सादगी और गांधी वादी विचारधारा के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे. केयूर दादा का छत्तीसगढ़ से ऐसा गहरा लगाव था कि कालांतर में वे खुद इस प्रदेश की संस्कृति और साहित्य की पहचान बन गए. देश की आजादी की लड़ाई में महज 11 साल की उम्र में कूदने वाले केयूर भूषण ने अपनी जिंदगी के 9 साल जेल में बिताए. भारत छोड़ो आंदोलन समेत कई बार वे कई बार जेल गए. देश आजाद होने के बाद गोवा की आजादी के लिए भी संघर्ष किया. इसके बाद 1960 से वे पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
जन्म और गांधीवाद से नाता
केयूर भूषण का जन्म 1 मार्च 1928 को बेमेतरा के नजदीक जांता गांव में हुआ था. उनके पिता मथुरा प्रसाद मिश्र समाज सेवक थे. उनकी प्राथमिक शिक्षा ग्राम दाढ़ी के स्कूल में हुई , उन्होंने 5वीं कक्षा की पढ़ाई बेमेतरा में की, आगे की पढ़ाई के लिए रायपुर आए. यहां उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आव्हान पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1942 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुए. उस समय वे रायपुर केन्द्रीय जेल में सबसे कम उम्र के राजनीतिक बंदी थे। उन्होंने स्कूली शिक्षा को छोड़कर घर पर ही हिन्दी, अंग्रेजी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं का अध्ययन किया। आजादी के बाद सन 80-82 के दशक में पंजाब में आतंकवाद के दौर में शांति स्थापना के लिए केयूर भूषण ने सर्वोदयी नेताओं के साथ वहां के गांवों की पैदल यात्रा की. उन्होंने पूरा जीवन गांधीवादी तरीके से बेहद सादगी से बिताया. वे दो बार रायपुर से सांसद भी रहे.
साहित्य में योगदान
केयूर भूषण समाजिक और राजनैतिक जीवन में सक्रिय रहने के साथ ही वे बड़े साहित्यकार भी रहे. उन्होंने छत्तीसगढ़ी में कई कविता संग्रह और उपन्यास की रचना की इनमें ‘कुल के मरजाद’ ‘कहां बिलागे मोर धान के कटोरा’ बेहद चर्चित उपन्यास रहे.
निधन पर शोक की लहर
केयूर भूषण के निधन पर छत्तीसगढ़ में शोक की लहर महसूस की जा रही है. राज्यपाल ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने ओशक संदेश में कहा है कि केयूर भूषण के निधन से न सिर्फ छत्तीसगढ़ प्रदेश ने, बल्कि पूरे देश ने सच्चाई और सादगी पर आधारित गांधीवादी दर्शन और विनोबा जी की सर्वोदय विचारधारा के एक महान चिंतक को हमेशा के लिए खो दिया है. मुख्यमंत्री ने कहा स्वर्गीय श्री केयूर भूषण छत्तीसगढ़ राज्य के सच्चे हितैषी थे. प्रदेश के विकास के लिए मुझे उनका बहुमूल्य मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा. उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी अपूरणीय क्षति है.
अंतिम सांस तक छत्तीसगढ़ की चिंता
केयूर भूषण लंबे समय से बीमार चल रहे थे फिर भी वे उम्र के इस पड़ाव में बस्तर जाकर काम करना चाहते थे और पथ से भटके नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना चाहते थे. अपने अंतिम क्षण में भी वे कवि मीर अली मीर का गीत नंदा जही का रे…और डॉ नरेन्द्र देव वर्मा का गीत अरपा-पैरी के धार सुना. और इन्हीं स्वर लहरी के बीच इस कायनात को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार महादेव घाट स्थित श्मासान में किया जाएगा. उनके नहीं रहने से देश-प्रदेश ने एक महान चिंतक समाज सेवक को खो दिया है, लेकिन उनकी सीख , उनके दिखाए रास्ते आने वाली कई पीढ़ियों को राह दिखाती रहेंगी.