पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव का कालभैरव रूप सृष्टि में अहंकार के विनाश और धर्म की रक्षा के लिए प्रकट हुआ था. एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच यह विवाद हुआ कि सृष्टि में सबसे बड़ा कौन है. इस विवाद में ब्रह्मा ने अपने आपको सर्वोच्च सिद्ध करने के लिए झूठ और अहंकार का सहारा लिया.

ब्रह्मा जी ने किया था भगवान शिव का अपमान
ब्रह्मा ने दावा किया कि उन्होंने ही सृष्टि की रचना की है, इसलिए वे सबसे श्रेष्ठ हैं. उन्होंने स्वयं को सर्वोपरि बताते हुए भगवान शिव का अपमान कर दिया. ब्रह्मा के अहंकार और असत्य को देखकर शिव का क्रोध भड़क उठा और उसी क्षण उनके भाल से अग्निज्वाला प्रकट हुई, जिससे एक भयंकर तेजस्वी रूप कालभैरव का जन्म हुआ.
ब्रह्मा के पाँचवें सिर को अलग कर दिया
कालभैरव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा के पाँचवें सिर को अलग कर दिया, जिससे ब्रह्मा का घमंड चूर-चूर हो गया. इस घटना के बाद भगवान शिव ने घोषणा की कि अहंकार का अंत ही सच्चे ज्ञान की शुरुआत है. कालभैरव को तब से काशी (वाराणसी) का कोतवाल माना जाता है, जो हर अधर्म और अन्याय का दंड देते हैं.
भय, पाप और दुख होता दूर
पौराणिक मान्यता है कि जो व्यक्ति कालभैरव जयंती के दिन सच्चे भाव से पूजा करता है, उसके जीवन से भय, पाप और दुख दूर हो जाते हैं. यह दिन भयमुक्ति, आत्मशक्ति और धर्म की स्थापना का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए कालभैरव जयंती केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह अहंकार पर विनम्रता की विजय की स्मृति भी है.
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