शब्बीर अहमद, भोपाल। मध्यप्रदेश की सत्ता हासिल करना है तो आदिवासी समाज का साथ होना जरूरी है और इस बात को कांग्रेस-बीजेपी दोनों बखूबी समझते भी हैं. 2018 में कांग्रेस की जो 15 साल बाद सरकार बनी थी उसकी भी नींव आदिवासी समाज ने ही रखी थी. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ आदिवासी फार्मूले पर काम कर रहे हैं.
कमलनाथ का आदिवासी प्लान
25 अगस्त को पीसीसी चीफ कमलनाथ 90 अलग-अलग आदिवासी संठगनों से मुलाकात करने जा रहे हैं. इसे नाम दिया गया है- विचार मंथन. मंथन के बहाने कांग्रेस आदिवासियों को अपने पक्ष में एकजुट करना चाहती है और उसी फार्मूले के तहत कांग्रेस आगे भी बढ़ रही है, क्योंकि आदिवासी समाज के बगैर साथ के कांग्रेस सत्ता के सिंहासन तक नहीं पहुंच सकती. ये उनके नेताओं को भी मालूम हैं. पूर्व मंत्री और कमलनाथ के करीबी सज्जन सिंह वर्मा का विचार मंथन को लेकर कहना है कि जिस तरह से बीजेपी सरकार में अत्याचार आदिवासियों पर बढ़ रहा है, उसको लेकर आदिवासियों के अलग-अलग संगठनों ने कमलनाथ से मुलाकात कर अपनी बात रखी थी उसके बाद विचार मंथन करने का फैसला लिया गया है.
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सत्ता के लिए जरूरी आदिवासी ?
मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित है. 2018 में कांग्रेस ने इसमें से 29 सीटों पर कब्जा जमाया था. 17 सीटें बीजेपी के खाते में गई थी. आदिवासी समाज से जुड़े मुद्दे कांग्रेस लगातार जोरशोर से उठा भी रही है. चाहे वो नेमावर की घटना हो या फिर विश्व आदिवासी दिवस पर सार्वजनिक छुट्टी घोषित नहीं करने का मामला. दोनों ही मामलों पर सरकार को कांग्रेस ने बैकफुट पर डाला. जिसके बाद सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी का एलान भी किया और धूमधाम से मनाने की घोषणा भी की. विचार मंथन को लेकर मंत्री भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि अब कांग्रेस के बहकावे में आदिवासी समाज नहीं आएगा, क्योंकि आदिवासी समाज भी समझ चुका है. उसका विकास सिर्फ बीजेपी सरकार ने ही किया है.
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उपचुनाव तय करेगा किधर हैं आदिवासी
पीसीसी चीफ कमलनाथ की रणनीति से ये साफ होता दिख रहा है कि 2023 की कमलनाथ जो प्लानिंग कर रहे हैं उसमें आदिवासी समाज पर सीधा फोकस होगा. उसमें कितना कामयाब होंगे ये तो वक्त बताएगा, लेकिन उससे पहले तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव परिणाम भी साफ कर देंगे कि आदिवासी किस तरफ हैं, क्योंकि खंडवा लोकसभा पर 19 लाख में से 6 लाख के करीब आदिवासी वोटर हैं तो, वहीं जोबट विधानसभा आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
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