हर साल कृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले यानी भादो माह की षष्ठी तिथि के दिन हल षष्ठी का व्रत रखा जाता है. इस त्योहार को कई राज्यों में हलछठ और ललही छठ के नाम से जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में इस त्योहार को कमरछठ कहा जाता है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की सुख-समृद्धि के लिए करती व्रत करती हैं. आज 14 अगस्त को ये त्योहार मनाया जा रहा है.

बता दें कि बलराम अपने माता-पिता के 7वें संतान थे. यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन माताएं षष्ठी माता की पूजा करके परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं. बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं.
कैसे मनाया जाता है कमरछठ का त्यौहार
महामाया मंदिर, रायपुर के महाराज मनोज शुक्ला ने बताया कि कमरछठ व्रत में तालाब में पैदा हुए खाद्य पदार्थ अथवा बगैर जोते हुए खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं. इसलिए इस दिन बिना हल चली वस्तुओं का ही महत्व होता है, महिलाएं पूजा के बाद पसहर चावल (लाल भात) और 6 प्रकार की भाजी का सेवन करती हैं. इस दिन सिर्फ भैंस के दूध, दही और घी का ही सेवन किया जाता है. महिलाएं कमरछठ का व्रत में शिव और पार्वती जी की पूजा की जाती है. इस व्रत में महिलाओं द्वारा गली मोहल्लों और घरों में सगरी यानि दो तालाब की स्वरूप आकृति बनाई जाती है. व्रत रखने वाली महिलाएं सगरी में दूध, दही अर्पण करती हैं.
6 अंक का होता है महत्व
बता दें कि कमरछठ में 6 अंक का काफी महत्व है, इस दिन सगरी में 6-6 बार पानी डाला जाता है. साथ ही 6 खिलौने, 6 लाई के दोने और 6 चुकिया यानि मिट्टी के छोटे घड़े भी चढ़ाए जाते हैं. 6 प्रकार के छोटे कपड़े सगरी के जल में डुबोए जाते हैं और संतान की कमर पर उन्हीं कपड़ों से 6 बार थपकी दी जाती है, जिसे पोती मारना कहते हैं.
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