गाजियाबाद। दुनियाभर में सबसे ज्यादा बिकने वाली डार्क रम ‘ओल्ड मॉन्क’ को बनाने वाले कपिल मोहन का निधन रविवार को हार्ट अटैक से हो गया. उन्होंने गाजियाबाद स्थित घर में आखिरी सांस ली. वे 88 साल के थे. ‘ओल्ड मॉन्क’ की क्वॉलिटी का कोई सानी नहीं था, जबकि हैरानी की बात तो ये है कि कपिल मोहन ने कभी शराब नहीं पी थी. शराब नहीं पीने के बावजूद उन्होंने ‘ओल्ड मॉन्क’ जैसी शराब दुनिया को दी.
कपिल मोहन रिटायर्ड ब्रिगेडियर थे. उन्होंने ‘ओल्ड मॉन्क’ जैसी उम्दा किस्म की शराब दुनिया को दी. ये शराब संभ्रांत और उच्च घरों की पार्टियों की शान हुआ करती थी. कपिल मोहन ओल्ड मॉन्क रम की निर्माता कंपनी मोहन मीकिन के चेयरमैन थे.
शराब उद्योग में कड़ी प्रतिस्पर्धा का दौर शुरू होने से पहले ओल्ड मॉन्क, सोलन नंबर 1 और गोल्डन ईगल जैसे मशहूर पुराने ब्रांड्स के पीछे कपिल मोहन का योगदान रहा है. उन्होंने करीब 4 दशक तक इस कंपनी का संचालन किया. करीब एक साल पहले ही उन्होंने अपने भतीजे हेमंत और विनय को कंपनी का कार्यकारी नियंत्रण सौंप दिया था. हालांकि कंपनी के चेयरमैन वे खुद थे.
‘ओल्ड मॉन्क’ को हासिल था मिलिट्री कैंटीनों का संरक्षण
बता दें कि 70 के दशक के शुरुआत में अपने बड़े भाई वी आर मोहन की मौत के बाद कपिल मोहन को कंपनी मोहन मीकिन की जिम्मेदारी मिली थी. ओल्ड मॉन्क इन्हीं के कोशिशों का परिणाम था. कपिल मोहन ने ओल्ड मॉन्क रम को 1954 में लॉन्च किया था. ये ब्रांड दुनियाभर में मशहूर हुआ और 2000 के दशक के मध्य तक देश में सबसे ज्यादा बिकता था. इसे मिलिट्री कैंटीनों का संरक्षण हासिल था.
बाद के वक्त में ओल्ड मॉन्क ने तो अपनी जगह बनाए रखी, लेकिन विजय माल्या के नेतृत्व वाले यूनाइटेड ब्रुअरीज समूह और दूसरी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिली और मोहन मिकिन कंपनी के दूसरे ब्रांड जैसे गोल्डन ईगल की पूछ-परख घट गई.
प्राकृतिक झरने से तैयार होती थी शराब
कपिल मोहन हिमाचल प्रदेश के सोलन में नगर समिति के अध्यक्ष थे, जहां कंपनी शराब तैयार करती है. ओल्ड मॉन्क और दूसरे ब्रांड की शराब सोलन के प्राकृतिक झरने के पानी से तैयार होती थी.
विज्ञापन के खिलाफ थे कपिल मोहन
मोहन कभी भी ओल्ड मॉन्क का विज्ञापन नहीं देते थे. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान साल 2012 में कहा था कि जब तक वे इस कंपनी का नेतृत्व करेंगे, तब तक विज्ञापन नहीं देंगे. उन्होंने कहा था कि हमारे उत्पाद ही हमारे विज्ञापन हैं. आप इसका स्वाद लेते ही बाकी के उत्पादों से इसका अंतर समझ जाएंगे और खुद ही इसे लोगों को बताएंगे और यही हमारा विज्ञापन होगा.
कपिल मोहन को 2010 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था. जब उनके परिवार में बंटवारा हुआ और उनका भतीजा राकेश रॉकी मोहन अलग हुआ, तो उसने कंपनी की लखनऊ फैक्ट्री को पॉन्टी चड्ढा के वेब समूह को बेच दिया था.