हिंदू धर्म में अनेक ऐसे त्योहार आते हैं जो हमें रिश्तों की गहराइयों तथा उसके अर्थ से परिचित करवाते हैं. करवा चौथ भी उन्हीं त्योहारों में से एक है. यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 27 अक्टूबर को है.
रायपुर. यह सुहाग और सौभाग्य का व्रत माना जाता है. इसलिए सुहागन स्त्रियां श्रद्घा और विश्वास के साथ यह व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इससे पति की उम्र लंबी होती है, दांपत्य जीवन में वियोग का कष्ट नहीं भोगना पड़ता है. लेकिन परंपरा से एक कदम आगे बढ़कर अब प्रेमिकाएं भी अपने प्रेमी को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत रखने लगी हैं.
यहां तक ही बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और उनकी सलामती के लिए भी यह व्रत रख सकती हैं. ज्योतिषों के अनुसार, इसमें कोई बुराई नहीं है. इससे करवामाता का आशीर्वाद ही मिलेगा, कोई नुकसान नहीं होगा.
एक प्राचीन कथा में इसका उल्लेख भी है कि बहन अपने भाई के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं. यह कथा भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित है. महाभारत युद्घ में सफलता के लिए अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा करने अर्जुन तपस्या हेतु नीलगिरी पर्वत पर गये. काफी समय तक अर्जुन के नहीं लौटने पर द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को याद किया.
भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ व्रत करने की सलाह और विधि बतायी. द्रौपदी ने विधिवत रूप से करवाचौथ का व्रत रखा जिससे अर्जुन सकुशल तपस्या करके लौट आये. कृष्ण को द्रौपदी सखा और भाई मानती थी. कृष्ण के बताये विधि के कारण द्रौपदी का अर्जुन से फिर से मिलन हुआ. इसलिए कुंवारी कन्याएं भाई की सलामती हेतु करवाचौथ का व्रत रखती है.
भाई के लिए रखा जाने वाला करवाचौथ का व्रत चांद को देखकर नहीं बल्कि तारों को देखकर खोला जाता है. जो कुंवारी कन्याएं अपने भाई के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं तो उन्हें विवाहित स्त्रियों की तरह सजने संवरने और सोलह श्रंगार करने की जरूरत नही है. इन्हें सिर्फ भाई की मंगल कामना करते हुए करवा चौथ का व्रत रखना चाहिए.