वाराणसी। आज काशी की गलियों और सड़कों में महसूस हो रहा है कि जैसे हजारों वर्ष प्राचीन भारत में घूम रहा हूं. हर तरफ आह्लाद, उमंग और आनंद है. यह बात काशी विश्वनाथ कॉरिलोर को लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे रितेश्वर महाराज ने मीडिया से कही.

रितेश्वर महाराज ने चर्चा में कहा कि कॉरिडोर के लोकार्पण के लिए प्रधानमंत्री को देश की लोगों की ओर से साधुवाद देते हुए कहा यह कॉरिडोर भारतीय संस्कृति, मंदिरों और भारतीय सनातन संस्कृति के पुनरोद्धार के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा. उन्होंने कहा कि भोगवाद से विकास नहीं हो सकता. प्रधानमंत्री सांस्कृतिक रूप से, धार्मिक रूप से और जागतिक रूप से समग्र विकास पर काम कर रहे हैं. रोटी, कपड़ा मकान जरूरी है, लेकिन उसके साथ ही सांस्कृतिक बोध भी जरूरी है. नहीं तो धन के पहाड़ पर भी बैठकर भिखारियों की जिंदगी जीनी होगी. संस्कृति का उत्थान परम उत्थान है.

महाराज ने कहा कि हमारे पास सुदामा जैसे लोग भी रहे हैं, जो पास रोटियां नहीं थी, लेकिन कृष्ण के प्रेम में मस्त रहते थे. और हमारे यहां बड़े-बड़े धनवानभी हैं, जिनके पास सबकुछ है, लेकिन शांति नहीं है. सनातन धर्म की परंपरा को सैकड़ों वर्षों बाद प्रधानमंत्री जिस प्रकार बढ़ाने का काम कर रहे हैं, प्रत्येक भारतवासी को दिल से समर्थन करना चाहिए. दल अलग-अलग हो सकता है, लेकिन जब भारतीय संस्कृति, सनातन संस्कृति और राष्ट्रवाद की बाद आती है, तो मुझे पक्का पता है लोग दिल से समर्थन करते हैं. और भूरी-भूरी आशीष देता हूं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से अहिल्या बाई होल्कर की तरह भारत की सनातन परंपरा के पुनरोत्थान का बीड़ा उठाया है. ये भूतों न भविष्यति है.

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