रायपुर। दंतेवाड़ा से 40 किलोमीटर दूर एक गांव है तेलम, जो कटेकल्याण तहसील में आता है. यहां से बहने वाली नदी डंकिनी को पार करके आप गांव में प्रवेश कर सकते हैं. जंगल घिरा इस गांव में लगभग 1000 लोग रहते हैं. यहां रहने वाले 23 साल का किसन मंडावी न केवल अपने गांव के लिए, बल्कि पूरे बस्तर के लिए नई उम्मीद है.
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किसन के बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था चाचा ने पाला और अच्छी परवरिश दी, बचपन में किसन स्कूल जाता और मवेशी चराता था, कभी भी परिवार और दोस्तों के साथ तीर से छोटे-मोटे शिकार कर लेता था. अब सवाल उठता है कि सिर्फ गोंडी और हल्बी बोलने वाले और हिंदी तक ना समझने वाले इस आदिवासी लड़के की कहानी हम आपको क्यों बता रहे हैं?

यह कहानी आपको इसलिए जाननी चाहिए क्योंकि किसन आत्मविश्वासी है. पोलियो और बैसाखी भी कभी उसके सपनों के आड़े नहीं आई. दिव्यांगता, सुविधाओं का अभाव, माता-पिता की मृत्यु, कई बार तो लगता की कहीं बाहर पढ़ने गए तो मुखबिरी के शक में नक्सली कुछ गलत ना कर दें, पर नक्ससलियों का खौफ भी उसे तोड़ ना सका.
शिक्षा ने खोले नए रास्ते
प्राथमिक शिक्षा गांव से पूरी कर किसन ने आगे की पढ़ाई जवांगा एजुकेशन सिटी से की. इस दौरान उसने न सिर्फ हिंदी और अंग्रेज़ी सीखी बल्कि कंप्यूटर की दुनिया से भी परिचित हुआ. यहीं से उसका रास्ता बदल गया. उसने कंप्यूटर साइंस में स्नातक किया और आज राज्य के आईटी हब नवा रायपुर में सेवाएं दे रही हैदराबाद की बड़ी कंपनी स्क्वायर बिजनेस में काम कर रहा है.
अब बाहर जाने की जरूरत नहीं
किसन बताते हैं कि मेरे जैसे कितने युवा हैं, जो आईटी और इससे जुड़े सेक्टर्स में काम करने के सपने देखते हैं, पर हर किसी के लिए हैदराबाद, पुणे या बैंगलोर जाना मुमकिन नहीं होता, मुझे तो ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी होती है कि अब बाहर जाने की भी ज़रूरत भी नहीं, क्योंकि नवा रायपुर हमारे देश का नया आईटी हब बन रहा है. हमारे राज्य के अलग-अलग जिलों से कई युवा मेरे साथ यहाँ काम कर रहे हैं, और आने वाले कुछ वर्षों में यहाँ देश के कोने कोने से भी युवा आकर काम करेंगे.
जब भी गांव की याद आती है…
वह बताता है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ काम कि वजह से मुझे नवा रायपुर अच्छा लगता है. जब भी गाँव की याद आती है, मैं नवा रायपुर में घूमने निकल पड़ता हूँ दंतेवाड़ा जैसी हरियाली और साफ़ हवा है यहाँ. यहां की सेंध लेक बहुत सुंदर है. अक्सर वीकेंड पे दोस्तों के साथ यहाँ सनसेट देखने आता हूँ, जंगल सफारी घूमना भी अच्छा अनुभव देता है और जब घर की याद आती है तो यहाँ का ट्राइबल म्यूज़ियम चले जाता हूँ. ये मुझे अपने गाँव की संस्कृति की याद दिलाता है, ऐसा लगता है जैसे मैं कुछ समय के लिए घर लौट आया हूँ.
एआई में करना चाहता है काम
किसन सिर्फ़ नौकरी करके रुकना नहीं चाहता. उसका सपना है कि भारत सरकार के साथ काम करते हुए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में योगदान दे. उसका विज़न है ऐसा सॉफ़्टवेयर तैयार करना, जिससे दिल्ली में बैठा कोई व्यक्ति अगर हिंदी या अंग्रेज़ी बोले तो दंतेवाड़ा के गांव में बैठे लोग उसे गोंडी या हल्बी भाषा में रियल टाइम में समझ सकें.
बड़ी ताक़त होती है मातृभाषा में
किसन कहता है कि मैं गाँव लौटकर जब अपनी भाषा में बातें करता हूँ, तब लोगों को लगता है कि अपने ही बीच का कोई पढ़ा-लिखा लड़का अब उन्हें बेहतर भविष्य की राह दिखा रहा है. यही मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. इसके साथ ही वह कहता है कि हमारे आदिवासी समाज में लड़के-लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं है. सब चाहते हैं शासन की मदद से हमारे आदिवासी समाज की ज्यादा से ज्यादा बेटियां शिक्षित हो और मेरी तरह अपने सपने पूरे करें.
तीर से टेक्नोलॉजी तक
किसन मंडावी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हिम्मत और शिक्षा का साथ हो तो रास्ते खुद-ब-खुद खुल जाते हैं. जंगल में तीर-धनुष चलाने वाला यह लड़का आज कंप्यूटर की दुनिया में नए भविष्य की इबारत लिख रहा है. हम आशा करते हैं कि इस आर्टिकल को पढ़ किसन से प्रभावित हो कर ना जाने कितने ही युवा जंगल-गांव से निकलकर आयेंगे और अपने सपनों को पूरा करेंगे.
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