रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चारों सलाहकारों ने मोर्चा संभाल लिया है. सीएम भूपेश बघेल के चारों सलाहकार अपने- अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं. माना जा रहा है कि इनके ज़रिए सरकार बेहतर और नए तरीके से काम करेगी. विनोद वर्मा राजनीतिक सलाहकार के तौर पर रणनीति बनाने का काम करेंगे. जबकि रुचिर गर्ग मीडिया को लेकर सलाह देंगे. राजेश तिवारी विधायकों से सरकार के समन्वय का काम करेंगे, जबकि प्रदीप शर्मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने की दिशा में काम करेंगे.

आईए जानते हैं भूपेश बघेल के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी के बारे में. वे मुख्यमंत्री के इकलौते सलाहकार हैं जो बस्तर से आते हैं. 

राजेश तिवारी

चुनाव परिणाम आने से एक रोज़ पहले राजेश तिवारी ने वो 68 सीटें लिखकर अपने साथियों को दे दी थी. जिनपर कांग्रेस उनके मुताबिक जीतने वाली थी. केवल दो सीटें इधर से उधर हुईं लेकिन कांग्रेस पूरे 68 सीट इस विधानसभा चुनाव में जीती. ये आकलन संगठन पर उनकी मज़बूत पकड़ को दर्शाने के लिए काफी है. सरगुजा से लेकर बस्तर तक संगठन के सबसे स्वीकार चेहरे राजेश तिवारी हैं. बेहद सामान्य तरीके से रहने वाले राजेश तिवारी कभी इस बात का एहसास नहीं दिलाते कि वे प्रदेश के एक बड़े नेता हैं. जिनकी बस्तर की कांग्रेस की राजनीति में तूती बोलती है.

कांग्रेस के एक बड़े नेता के मुताबिक राजेश तिवारी की सबसे बड़ी पहचान ये है कि वे पार्टी के भीतर आदिवासियों की सबसे बड़ी आवाज़ हैं. उनके हक और मांगों को सामने रखने वाले राजेश तिवारी संगठन के बेहद पुराने और भरोसेमंद नेता हैं. लगभग तीन दशकों से कांग्रेस की बस्तर की राजनीति में सबसे ज़्यादा सक्रिय नेताओं में शुमार हैं. राजेश तिवारी के साथ सबसे बड़ी खूबी है कि उनके ऊपर किसी गुट की छाप नहीं लगी है. उनकी स्वीकार्यता हर गुट में हैं. माना जाता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच वे महत्वपूर्ण कड़ी हैं. पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता उनकी राय को महत्व देते हैं.

वे हमेशा से बड़े नेताओं के भरोसेमंद रहे हैं. मध्यप्रदेश के ज़माने में दिग्विजय सिंह के बेहद करीबी रहे तिवारी जब 2000 में आदिवासी मुख्यमंत्री की मुहिम में जोगी, कर्मा और भूपेश के साथ शामिल हुए तब भी बाकी सामान्य वर्ग के नेताओं से उनके मधुर संबंध कायम रहे.

राजेश तिवारी ने कांग्रेस की राजनीति 80 के दशक में शुरु की. उन्होंने अपनी एमए और एलएलबी की पढ़ाई कांकेर और रायपुर से पूरी की है. कॉलेज में ही राजनीति शुरु हो गई. 88 में वे यूथ कांग्रेस में ब्लॉक अध्यक्ष रहे. 1989 में जनपद पंचायत की टिकट मिली. लेकिन पटवा के शासनकाल में चुनाव पर रोक लग गई और वे चुनाव नहीं लड़ पाए.

1994 में वे उत्तर बस्तर जिले के जिला सदस्य और फिर उपाध्यक्ष बने. 95 में वे जिला पंचायत का अध्यक्ष बने. 2000 में छ्त्तीसगढ़ बना तो राजेश तिवारी प्रदेश कांग्रेस कमेटी का सचिव बन गए. 2003 में महासचिव बने. 2008 में कांकेर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए.  2013 विधायक दल का सचिव और 2014 में प्रदेश महासचिव बनाए गए.

2013 में जब वे विधायक दल के सचिव बने तो उसके बाद से विधायक दल की परफॉर्मेंस सुधरने लगी. उपस्थिति बढ़ गई. समन्वय अमित जोगी और रेणु जोगी के विधायक रहने के बाद भी बेहतर दिखा. पार्टी ने उनके काम को देखते हुए कांग्रेस के बूथ स्तर तक चलने वाले ट्रेनिंग कार्यक्रम का प्रभारी बनाया. संगठन का ढांचा तैयार करने में राजेश तिवारी की अहम भूमिका रही.

गैरआदिवासी होने के बाद भी राजेश तिवारी बस्तर में पांचवीं अनुसूची को लागू करने के प्रबल पक्षधर हैं. 2001 में राजेश तिवारी ने तात्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ तब मोर्चा खोल दिया जब उनके समर्थकों ने आदिवासी विकास परिषद के नेताओं पर कालिख पोत दी थी. आदिवासी विकास परिषद ने प्रस्ताव पारित किया था कि अजीत जोगी आदिवासी नहीं है. कालिख पोतने की घटना से नाराज़ बेहद ताकतवर रहे अजीत जोगी के खिलाफ दिल्ली में शिकायत कर दी.

नाराज़ जोगी सरकार ने उनके उन पर 420 का मामला दर्ज करा दिया. राजेश तिवारी ने ज़मानत लेने से मना कर दिया. लेकिन बाद में बड़े नेताओं के कहने पर जमानत ली. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजेश तिवारी बड़ी जिम्मेदारी दी है. उन्हें 68 विधायकों से सिर्फ समन्वय नहीं बनाना है बल्कि उन्हें संतुष्ट बनाए रखना है.