नई दिल्ली। नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से लगातार पूछताछ कर रही है. जिसे लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है. कांग्रेस इस पूछताछ का विरोध करते हुए पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन कर रही है. आज हम आपको बताएंगे कि नेशनल हेराल्ड केस क्या है और इसे लेकर कब क्या-क्या हुआ था. दरअसल BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 जिस वक्त देश में UPA की सरकार थी, उस समय दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के ही मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे पर घाटे में चल रहे नेशनल हेराल्ड अखबार को धोखाधड़ी और पैसों की हेराफेरी के जरिए हड़पने का आरोप लगाया था.

आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग

आरोप लगाया गया कि इन कांग्रेसी नेताओं ने नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर कब्जे के लिए यंग इंडियन लिमिटेड यानी YIL नाम का संगठन बनाया और उसके जरिए नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन करने वाली असोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी AJL का अवैध तरीके से अधिग्रहण कर लिया. सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप था कि ऐसा दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपए की इमारत पर कब्जा करने के लिए किया गया था. स्वामी ने 2000 करोड़ रुपए की कंपनी को सिर्फ 50 लाख रुपए में खरीदे जाने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत केस से जुड़े कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की थी.

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नेशनल हेराल्ड केस की TIMELINE

  • 1 नवंबर 2012- बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्लीकी पटियाला हाउस कोर्ट में केस दर्ज कराया.
  • 26 जून 2014- पटियाला हाउस कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत सभी आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया.
  • 1 अगस्त 2014- ED (Enforcement Directorate) ने मामले में खुद संज्ञान लेकर मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया.
  • 19 दिसंबर 2015- सोनिया, राहुल समेत सभी आरोपियों को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जमानत दे दी.
  • 2016- सुप्रीम कोर्ट का कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई को रद्द करने से इनकार, लेकिन आरोपियों को व्यक्तिगत पेशी से छूट. वकील के जरिए पेश हो सकते हैं आरोपी.
  • सितंबर 2018- दिल्ली हाईकोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी की इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिस के खिलाफ दायर याचिका खारिज की.
  • दिसंबर 2018- हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकम टैक्स की जांच जारी रहने का आदेश दिया.
  • 2018- केंद्र सरकार ने 56 साल पुराने स्थायी पट्टे को खत्म करते हुए हेराल्ड हाउस परिसर से AJL को बेदखल करने का फैसला किया.
  • अप्रैल 2019- सुप्रीम कोर्ट ने अगली सूचना तक AJL के किलाफ कार्रवाई पर लगाई रोक.
  • 2022- ईडी ने राहुल गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ के लिए जारी किया समन.
  • 13 जून 2022-15 जून 2022- लगातार 3 दिनों तक कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से ईडी ने की पूछताछ.
  • 23 जून 2022 – कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया.

मनी लॉन्ड्रिंग के बारे में जानिए

मनी लॉन्ड्रिंग बड़ी मात्रा में अवैध पैसे को वैध पैसा बनाने की प्रक्रिया है, यानी ब्लैक मनी को व्हाइट करने की प्रोसेस. ब्लैक मनी वो पैसा है, जिसकी कमाई का कोई स्रोत नहीं होता, यानी उस पर कोई टैक्स नहीं दिया गया है. मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में पैसे का मूल सोर्स कोई आपराधिक या अवैध गतिविधि होती है. धोखेबाज इस प्रोसेस का इस्तेमाल अवैध रूप से इकट्ठा पैसे को छिपाने के लिए करते हैं. मनी लॉन्ड्रिंग पैसे के सोर्स को छिपाती है, जो अवैध गतिविधियों जैसे ड्रग्स की तस्करी, भ्रष्टाचार, गबन या जुए से मिलता है. यानी अवैध तरीके से मिले पैसे को एक वैध स्रोत में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ही मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं. देश में मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए ड्रग डीलर से लेकर बिजनेसमैन, भ्रष्ट अधिकारी, माफिया और नेताओं ने करोड़ों-अरबों रुपए के फ्रॉड किए हैं.

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जानिए ED क्यों है इतनी पावरफुल, गिरफ्तारी के लिए किसी के परमिशन की जरूरत नहीं

मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी PMLA की ताकत से लैस ED केंद्र सरकार की अकेली जांच एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में नेताओं और अधिकारियों को तलब करने या उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है. ED छापा भी मार सकती है और प्रॉपर्टी भी जब्त कर सकती है.

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जमानत की बेहद कड़ी शर्तें

मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में जमानत की 2 सख्त शर्तें हैं. पहली आरोपी जब भी जमानत के लिए अप्लाई करेगा, तो कोर्ट को सरकारी वकील की दलीलें जरूर सुननी होंगी. दूसरी, इसके बाद कोर्ट अगर इस बात को लेकर संतुष्ट होगा कि जमानत मांगने वाला दोषी नहीं है और बाहर आने पर ऐसा कोई अपराध नहीं करेगा, तभी जमानत मिल सकती है. इस कानून के तहत जांच करने वाले अफसर के सामने दिए गए बयान को कोर्ट सबूत मानता है, जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की अदालत में कोई वैल्यू नहीं है.