रायपुर. कोहिनूर को दुनिया का सबसे मशहूर हीरा माना जाता है. मूल स्वरुप में उसे हीरे का वजन 793 कैरेट था, अब ये हीरा 105.6 कैरेट का रह गया है जिसका वजन 21.6 ग्राम महज हो गया है.
लेकिन छत्तीसगढ़ के राजघराने से जुड़े एक नेता के पास इस कोहिनूर सा कीमती हीरा मौजूद है. जिसका वजन 57.700 ग्राम यानी 285 कैरेट है. इसके मुताबिक ये हीरा कोहिनूर के हीरे से भी ज्यादा वजनीय है. ये नेता कोई और नहीं बल्कि नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव उर्फ टीएस बाबा है. चुनाव आयोग को अपनी संपत्ति की जो जानकारी उन्होंने दी है, उसके मुताबिक उनके पास कुल 500 करोड़ से ज्यादा की चल-अलल संपत्ति मौजूद है. जिसमें टीएस सिंहदेव के पास चल संपत्ति 8 करोड़ 61 लाख रुपए के करीब और अचल संपत्ति 491 करोड़ रुपए से ज्यादा की है.
टीएस बाबा के पास ये है विरासत में मिले गहने
- कलगी 1 डायमंड 57.700 ग्राम
- कलगी 42.500 ग्राम
- क्वाईन फिरोजी पोट 36.60 ग्राम
- मोती लड़ी डोरी के साथ 34.000 ग्राम
- हार 1 रूबी मोती वे डोरी 43.200 ग्राम
- कंगन 1 पैर पाना मोती, चुड़ी 4,193.600 ग्राम
- हार 1 ईयर रिंग, ब्राच 1, ब्रेसलेट 2, रिंग 1 कुल 195.800 ग्राम
- कोर्ट पिन 2, वजन क्रमश 5.300,2.800 ग्राम
- पैरेट कुण्ड हीरा लगा हुआ पोलकी 96.400 ग्राम
- सोने का फ्रेम फोटो लगा हुआ 49.500 ग्राम
- कफ्लिंग 8.300 ग्राम
- सरपेच कुण्डन 127 ग्राम
- ब्राच 3 रुबी डायमंडल इमरलैंड 39.300 ग्राम
कोहिनूर के बारे में कुछ रोचक जानकारी
- कोहिनूर के बारे में पहली जानकारी 1304 के आसपास की मिलती है, तब यह मालवा के राजा महलाक देव की संपत्ति में शामिल था.
- इसके बाद इसका जिक्र बाबरनामा में मिलता है. मुगल शासक बाबर की जीवनी के मुताबिक, ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह ने अपनी सभी संपत्ति 1526 में पानीपत के युद्ध के दौरान आगरा के किले में रखवा दी थी. बाबर ने युद्ध जीतने के बाद किले पर कब्ज़ा जमाया और तब 186 कैरेट के रहे हीरे पर भी कब्जा जमा लिया. तब इसका नाम बाबर हीरा पड़ गया था.
- इसके बाद ये हीरा मुगलों के पास ही रहा. 1738 में ईरानी शासक नादिर शाह ने मुगलिया सल्तनत पर हमला किया. 1739 में उसने दिल्ली के तब के शासक मोहम्मद शाह को हरा कर उसे बंदी बना लिया और शाही ख़जाने को लूट लिया. इसमें बाबर हीरा भी था. इस हीरे का नाम नादिर शाह ने ही कोहिनूर रखा.
- नादिर शाह कोहिनूर को अपने साथ ले गया.1747 में नादिर शाह के अपने ही लोगों ने उनकी हत्या कर दी. इसके बाद कोहिनूर नादिर शाह के पोते शाह रुख़ मिर्ज़ा के कब्ज़े में आ गया.
- 14 साल के शाह रुख़ मिर्ज़ा की नादिर शाह के बहादुर सेनापति अहमद अब्दाली ने काफी मदद की तो शाह रुख़ मिर्जा ने कोहिनूर को अहमद अब्दाली को ही सौंप दिया.
- अहमद अब्दाली इस हीरे को लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचा. इसके बाद यह हीरा अब्दाली के वंशजों के पास रहा.
- अब्दाली का वंशज शुजा शाह जब लाहौर पहुंचा तो कोहिनूर उसके पास था. पंजाब में सिख राजा महाराजा रणजीत सिंह का शासन था. जब महाराजा रणजीत सिंह को पता चला कि कोहिनूर शुजा के पास है, तो उन्होंने उसे हर तरह से मनाकर 1813 में कोहिनूर हासिल कर लिया.
- रणजीत सिंह कोहिनूर हीरे को अपने ताज में पहनते थे. 1839 में उनकी मौत के बाद हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह तक पहुंचा.
- 1849 में ब्रिटेन ने महाराजा को हराया. दिलीप सिंह ने लाहौर की संधि पर तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के साथ हस्ताक्षर किए. इस संधि के मुताबिक कोहिनूर को इंग्लैंड की महारानी को सौंपना पड़ा.
- कोहिनूर को लॉर्ड डलहौजी 1850 में लाहौर से मुंबई ले कर आए और वहां से छह अप्रैल, 1850 को मुंबई से इसे लंदन के लिए भेजा गया.
- तीन जुलाई, 1850 को इसे बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया. 38 दिनों में हीरों को शेप देने वाली सबसे मशूहर डच फर्म कोस्टर ने इसे नया अंदाज दिया. इसका वजन तब 108.93 कैरेट रह गया. यह रानी के ताज का हिस्सा बना. अब कोहिनूर का वजन 105.6 कैरेट है.
- स्वतंत्रता हासिल करने के बाद 1953 में भारत ने कोहिनूर की वापसी की मांग की थी, जिसे इंग्लैंड ने अस्वीकार कर दिया था.
- 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने भी इसकी मांग की थी, जिसे ब्रिटेन ने ख़ारिज़ कर दिया था.