रायपुर. कचरा बीनते अभाव में बीत रही ज़िंदगी को जब फुले अम्बेडकरी विचारधारा का मार्गदर्शन मिलता है तो जिंदगी और सोच बदल जाती है. वह कुमारी से कुमारी सावित्री बन फुले अम्बेडकरी मिशन को आगे बढ़ाने में सम्पूर्ण जीवन लगा देती है. यह कथानक है नाटक – कुमारी सावित्री का. विगत दिनों सार्वजनिक अम्बेडकर जयंती समिति के तत्वाधान में युवा प्रतिभा सम्मान कार्यक्रम में रायपुर के मैक कॉलेज ऑडिटोरियम में नाटक कुमारी सावित्री का मंचन संकेत ड्रामा एंड फ़िल्म सोसाइटी, रायपुर के द्वारा किया गया. खचाखच भरे ऑडिटोरियम में दर्शक मंत्रमुग्ध हो 30 मिनट के इस नाटक को देखकर भावविभोर हो गए. नाटक शुरू होता है कुमारी नामक केंद्रीय पात्र के अभावग्रस्त जीवन से. कुमारी कचरा बीनने वाली एक महिला है. जो कचरा बीनकर अपना जीवन चलाती है. उसकी दिनचर्या मुन्दरहा यानी अलसुबह शुरू होती है. झटपट उठ बच्चों के लिए पेज-पसिया और नून चटनी का इंतज़ाम कर वह बोरा लेकर कचरा बीनने घर से निकल जाती है. घाम (भीषण गर्मी), जाड़ (कड़कड़ाती ठंड) हो या भारी बरसात हो कचरा बीनना उसकी मजबूरी है. इसके बिना उसके घर का चूल्हा नहीं जलेगा.

इतना संघर्षपूर्ण जीवन में भी वो ज़रा सी विचलित नहीं होती है. कहते हैं जहां अंधकार ही अंधकार है. आशा की कोई किरण नहीं है तो भी चलते चलो कहीं न कहीं कोई रोशनी आपका इंतज़ार कर रही होगी. कुमारी के जीवन में भी ऐसा ही होता है. एक दिन वह कचरा बिन घर लौट रही होती है तो इस दौरान अम्बेडकरी जयंती की रैली वहां से गुज़र रही होती है. सिर पर कचरे का भारी वजन लेकर सड़क पार करने को होती है तो रैली की कुछ महिलाएं उसे रोकती है और कहती है – तुझे दिखाई नहीं देता. अम्बेडकर जयंती की रैली आ रही है. थोड़ी देर रुक नहीं सकती. कुमारी झल्लाते हुए कहती है कोई भी बड़े साहब आए मुझे क्या मैं सिर पर क्षमता से कई गुना वजन उठाके कैसे रुक सकती हूं. रैली में शामिल एक और महिला के पहल पर महिलाएं नरम होती है. कुमारी की तरफ़ इशारा कर महिला कहती है कि ये हमारे ही लोग हैं. ग़लती इनकी नहीं जो ये बाबा साहेब अम्बेडकर को नहीं जानते. ग़लती उनकी यानी हमारी है जो बाबा साहेब अंबेडकर को जानते हैं, पर ख़ुद तक सीमित रखते हैं. हमे इन्हें समझाना होगा बाबा साहेब का मिशन. और सारी महिलाएं कुमारी को बाबा साहेब के बारे में बताती हैं और गंदा काम छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं. कुमारी कचरा बीनना छोड़कर सिलाई करने लगती है और अपने बच्चों को अच्छे से परवरिश करने लगती है.

इस दौरान एक एक दिन बाबा साहेब उसके सपने में आते हैं. कुमारी मारे उत्साह के बाबा साहेब की आरती उतारने का प्रयास करती है. बाबा साहेब उससे कहते है. मुझे इन पांखण्डों से दुःख होता है. मैंने बौद्ध धर्म इसलिए ही अपनाया था कि पांखण्डों से दूर हो सकूं. पाखंड छोड़ो कुमारी. मुझे तुम जैसे लोगों से बहुत उम्मीदें हैं. सुविधाभोगी लोग मेरे मिशन को आगे नहीं बढ़ा सकते. इसके बाद कुमारी सब पाखंड छोड़ अम्बेडकरी मिशन को बढ़ाने में जुट जाती है. वो अपने घर से बदलाव की शुरुवात करती है. वह अपने नाम के आगे सावित्री जोड़ लेती है. उसकी बेटी जब पूछती है कि मम्मी आपका नाम तो कुमारी था फिर कुमारी सावित्री कब हो गया. जवाब में कुमारी कहती है- मैंने खुद जोड़ लिया. वह अपनी बेटी को बताती है कि सावित्री बाई फुले नें बालिकाओं के लिए देश में पहला स्कूल खोला. इस प्रकार माता सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका है. बेटी आश्चर्य व्यक्त करती है- लेकिन मम्मी हमारे स्कूल में तो किसी दूसरे के नाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है. जवाब में कुमारी कहती है – ब्राम्हणवादी तो चाहते हैं हमारे बहुजन महापुरुषों का इतिहास ही मिटा दें. लेकिन वो ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे. हमारे महापुरुष हमेशा प्रेरित करते रहेंगे. अन्ततः कुमारी अम्बेडकरी मिशन में लग जाती है.

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कलाकारों की ने अपनी भूमिका का निर्वाह बहुत सटीकता से किया. कुमारी की भूमिका में नंदा रामटेके ने अपनी अभिनय कौशल से कुमारी के चरित्र को जीवंत कर दिया. बाबा साहेब अंबेडकर की भूमिका कर रहे अच्छे आवाज़ के धनी संजय पटेल नें अपने बेहतरीन संवाद अदायगी और अभिनय दक्षता से ख़ूब वाहवाही बटोरी. नाटक के अन्य पात्रों नें भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया. महिला 1 – रूपा चौहान, महिला 2 – सविता भालाधरे, महिला3 – सीमा मैम, महिला 4- ललिता पखाले, बच्ची 1 – हिमाक्षी रामटेके, बच्ची 2 – ख़ुशी तलमले, बच्ची 3 – आरवी भालाधरे , बच्ची 4 – आयशा पखाले ने अपने अपने पात्रों के साथ न्याय किया. नाटक में कबीर के दोहे कबीर कहे ये जग अंधा……… पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ………. जाति न पूछो साधु की……… हिन्दू कहत हे राम पियारा……… एके बूंद एके मलमूत्रा ………का बहुत ही सटीक और प्रसांगिक ढंग से निर्देशक ने प्रयोग किया.

नाटक में गीत संगीत का बहुत सटीकता से उपयोग किया गया. नाटक का संगीत-लेखन-निर्देशन अनुभवी रंग निर्देशक शेखर नाग का था. नाट्य प्रदर्शन के दौरान रायपुर के गणमान्य नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ताओ, श्रमिक आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं सहित बच्चे और युवाओं से प्रेक्षागृह खचाखच भरा हुआ था. इस नाटक आयोजन में अम्बेडकर सार्वजनिक जयंती समारोह समिति के अध्यक्ष-शशांक ढाबरे, महासचिव- राजकुमार रामटेके, कोषाध्यक्ष- रतन डोंगरे और प्रोग्राम प्रभारी – बिम्बिसार एवं मिलिंद माटे का योगदान रहा.

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