फेसबुकिया, व्हाट्सेपिया, ट्वीटरिया, यूट्यूबिया, गूगलिया, इन्स्टाग्रामिया ऐसे अनेक नए-नए समाज का उदय हो चुका है. इन समाजों का प्रभाव लोगों पर सबसे अधिक है. बचे-खूचे पुराने समाज शास्त्री के दिमाग चकराए हुए हैं. समाज को लेकर उनकी जो पुरानी अवधारणाएं रही सब चकनाचूर होता नजर आ रहा है. नए समाज शास्त्री मौके के नजाकत को भांपते हुए नए समाज शास्त्र के निर्माण में लगे हुए हैं. समाज में नित नए समीकरण और अध्याय जुड़ते चले जा रहे हैं. अब पुराना समाज शास्त्र पढ़ने से ऐसा लगता है कि जैसे पुराने समाज शास्त्रियों ने इस आधुनिक समाज के लिए चुटकुलों का किताब लिख रखा हो. अब आप ही बताईये कि समाज के लोगों पर किस समाज का अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है.

बीते दिनों राजधानी में सनी लियोनी के आने का विरोध सुनकर पड़ोसी मित्र के बच्चे ने गूगल में टाइप किया कि सनी लियोनी पर विरोध क्यों…? पांचवीं पढ़ने वाला बच्चा भी जान गया कि विरोध कितना जायज और नाजायज है. साथ ही सनी लियोनी सर्च करने के बाद वह बच्चा आज तक नित नए-नए सनी अवतरण के सर्चिंग पर ही डूबा हुआ है. आप समझ सकते हैं कि आज के बच्चों पर किस समाज का सबसे अधिक प्रभाव- कुप्रभाव पड़ रहा है. क्या नए समाज शास्त्र के निर्माण की जरुरत का आपको एहसास नहीं होता. मैं स्वयं समाज शास्त्र का स्टूडेंट रहा हूँ. समाज शास्त्र के पुराने सूत्रों और समीकरण की जब यदा-कदा याद आ जाती है तो खुद को हंसने से रोक नहीं पाता हूँ. अब समाज के ताने-बाने कितने बदल चुके हैं.

हाँ ! एकबारगी पद्मावती फिल्म विवाद के समय फिर से समाज के चातुर्वर्णिक व्यवस्था की अनुगूँज सुनाई देने लगी थी. पुराने समाज शास्त्रियों का रूह एक बार फिर जाग गया था. मगर फिल्म रिलीज के बाद समाज फेसबुकिया और व्हाट्सेपिया ही नजर आया. राजपूत समाज के राजपुताना बयान, करणी सेना के गाड़ियाँ फूंकने का पराक्रम, क्षत्राणियों के कंगन खनकाती जौहर करने के ऐलान के बाद ऐसा लग रहा था मानो फिर से पुराने समाज शास्त्रीय सूत्र लागू हो जाएंगे. मगर लोगों ने फिल्म ताबड़तोड़ देखी और फिल्म के विरोध पर  जमकर चुटकुलों का दौर शुरू हो गया. समाज फिर से हवाबाजी से उबरकर अपने फेसबुकिया और वहाट्सेपिया समाज हो जाने के मूल स्वरुप पर वापस लौट गया.

पहले समाज का स्वरुप चाहे जो भी रहा हो. अब पूरा समाज एक हो चुका है. वर्चुअल हो चुका है. किसी को धरातल से और यथार्थ से अब मतलब नहीं रह गया है. पता नहीं समाज का यह नया दौर दौड़ते-हांफते कहाँ जा रहा है, ये तो हमें भी मालूम नहीं. फ़िलहाल फेसबुकिया समाज ‘मेरा ऑपरेशन होने वाला है, मुझे दुआ दीजिये’, ‘मैं मरने वाला हूँ, मुझे श्रद्धांजलि दीजिये’ कुछ इन्हीं बातों में डूबा हुआ है. फेसबुकिया समाज में दुआओं का दौर चल रहा है. फेसबुकिया समाज फेसबुकियाना से पस्त है. वही व्हाट्सेपिया समाज शुभकामना संदेशों से त्रस्त है. इन्स्टाग्रामिया समाज सबसे शांति प्रिय समाज है. वह सुन्दर-सुन्दर फोटू और खुबसूरत नैन-नक्श में मस्त है. ट्वीटरिया समाज संभ्रांत समाज होने का दंभ भरता है मगर अब यह समाज भी लुच्चों-टुच्चों के ट्वीट-रीट्वीट से त्रस्त है. मेरे ख्याल से गूगलिया समाज ही जबरदस्त है.

यूट्यूब को तो मैं किसी बड़े संत और बाबा की नजरिये से देखता हूँ. यूट्यूब बाबा के करोड़ों अंधभक्त फ़ॉलोवर्स हैं. इस बाबा के पास सबके लिए सब कुछ है. धर्म, अध्यात्म, शांति, वैभव और तमाम सुख-सुविधाएँ उपलब्ध है जो आजकल के संत-बाबाओं के आश्रम और गुफा में होता है. यूट्यूब बाबा ने तो एक अलग ही यूट्यूबिया समाज का निर्माण कर लिया है. समाज का जो आज बदला हुआ स्वरुप है उसका सारा श्रेय मैं माननीय मोदी जी को देना चाहता हूँ. क्या ऐसा मोदी के पहले हुआ था नहीं ना ! तो मान जाईये. यह जो सन 2018 आया है यह बीते अरसों-बरसों में नहीं आया था. मैं तो कहता हूँ सन 2018 मोदी के कार्यकाल में आया है. यह उनकी 18-18 घंटे तक काम करने की कार्यक्षमता और कार्यकुशलता के परिणाम स्वरुप आया है. अब आप इसे फिर जुमले कहेंगे यह मोदी की नहीं जनता की गलती है.

  • लेखक- कंचन ज्वाला कुंदन

      (ये लेखक के निजी विचार हैं)