पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है. मजदूर दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले की कुछ मजदूरों की कहानी बताने वाले हैं. यहां के ग्रामीण काम की तलाश में निकले पर लौटे नहीं, वापसी की आस में इंतजार कर रहे परिजनों को पता नहीं है कि वो किस हाल में हैं. उसकी तलाश के लिए न तो किसी से मदद मांगी न खुद से प्रयास किया, लेकिन उम्मीद है कि वह घर लौट आएंगे. मनरेगा में काम के बावजूद लोग आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे बड़े शहरों के लिए पलायन कर जाते हैं. पलायन करने वाले मजदूर परिवार की सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं देता. लेकिन परिवार चलाने के लिए जान जोखिम में डाल बाहर जाने की मजबूरी कभी खत्म नहीं होते दिख रही है. अकेले देवभोग विकासखंड में अभी भी 1300 से ज्यादा मजदूर पलायन किए हुए हैं, लेकिन जिला पंचायत में मौजूद सरकारी आंकड़े में इसकी संख्या 340 है. सालों से कमाने बाहर जा रहे कुछ परिवार के सदस्य वापस ही नहीं आए, आइये मजदूर दिवस पर उन्हीं लाचार परिवार की अनसुनी दास्तान हम आपको सुनाते हैं.

केस 1 : 6 साल से लौटा नहीं अनुर्जय, पत्नी कर रही इकलौते बेटे की परवरिश

घोघर ग्राम में 10 बाई 10 से भी छोटा कच्चे कवेलू मकान में रहने वाला अनुर्जय अक्टूबर 2018 में घर से कमाई करने निकला था. तब बेटा चौधरी महज 6 साल का था.बेटे के सुनहरे भविष्य और पक्के मकान बनाने का सपना दिखा कर आंध्र प्रदेश के लिए निकला अनुर्जय आज तक वापस नहीं लौटा. पत्नी कमले बाई नेताम हर दिन मांग में पति के नाम की सिंदूर लगाती है मजदूरी कर बेटे का भरण पोषण कर रही है. पत्नी ने बताया कि घर से निकलने के बाद दोबारा आज तक उनकी कोई खबर नहीं मिली. पत्नी आज भी अपने पति की बाट जोह रही है.

केस 2 : दिव्यांग बहन बेवा भाभी के हवाले, भाई का अता पता नहीं

सुपेबेड़ा निवासी रवि आडिल की मौत 2007 में हो गई,साल भर बाद किडनी रोगी पत्नी सुका बाई की भी मौत हुई माता की बर्शी होते होते बीमार बड़े बेटा पीतम आडील भी किडनी रोग का ग्रास बना.घर की जवाबदारी छोटे भाई जगदीश पर आ गई,इलाज में सब कुछ गवा चुके जगदीश 2009 में आंध्र प्रदेश कमाने निकला.दिव्यांग बहन पद्मा को बेवा भाभी के हवाले छोड़ गया.जगदीश तो लौटा नही ना ही उसका कोई पता चल पाया.आज बेवा प्रेम बाई सिलाई मशीन के सहारे अपने दो बच्चे व ननंद की परवरिश कर रही है. पीटापारा निवासी जयशन यादव भी 16 साल की उम्र में गुजरात जाने 2007 को घर से निकला था पर आज तक नही लौटा परिवार वाले इंतजार के रहे.

केस 3 : मजदूर के इकलौते बेटे की गुमशुदगी बनी मिस्ट्री

धौराकोट में रहने वाला 26 साल का बाबूलाल 16 मार्च 2017 को अपने ही शादी का कार्ड बाटने घर से निकला था. बाहरी दुनिया से अनजान सीधा साधा यह युवा फिर घर नहीं लौटा. पिता सहदेव अपने इकलौते बेटे को ढूंढता रहा. 30 मार्च 2017 को मजदूर परिवार ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी लिखाई, मोबाइल का अंतिम लोकेशन घर से 10 किमी दूर गाड़ाघाट बताया, लेकिन आज भी पुलिस की जांच जारी है. इकलौते बेटे के वियोग में मजदूर दंपत्ति का रो-रो कर बुरा हाल है. मजदूर बेटे की गुमशुदगी अब भी मिस्ट्री बना हुआ है.

केस 4 : 1 लाख का कर्ज उतारने 6 माह से आंध्र के ईंटभट्ठी में तप रहा दंपत्ति

खुटगांव निवासी अरूपानंद प्रधान पिछले 6 माह से आंध्र प्रदेश के एक ईंट भट्ठे में पत्नी के साथ काम कर रहा है. साथ में दूध मूहा बच्चा भी है. वहीं दो बेटियों को अपने रिश्तेदार के घर छोड़ा हुआ है. बताते हैं कि पीएम आवास को बड़ा बनाने अरूपानंद ने एक मजदूर दलाल से एक लाख रुपये एडवांस उठाया, मकान का प्लास्टर बाकी था, कर्ज उतारने का भी तकादा हो रहा था. इसलिए दलाल के मार्फत पत्नी के साथ आंध्र के एक ईंट भट्ठे में काम कर रहा है. इन 6 माह में दंपत्ति दिन रात काम कर रहे पर उनका लिया कर्ज नहीं उतर रहा है.

इन्हें भी जानिए जिनके शव घर आए

ज्यादा मजदूरी के लालच में फंस पलायन करने वाले कई मजदूर ऐसे है जो कमा कर पैसे तो लाए नहीं पर उनकी लाशें घर लौटीं. मूंगझर निवासी 29 वर्षीय संतोष प्रधान हैदराबाद में काम करने के दौरान 2023 में हुए सड़क एक्सीडेंट में मृत हो गया. झरगांव निवासी 23 वर्षीय अनंत राम अपने माता पिता का इकलौता संतान था,काम करने चेन्नई गया था. 2023 में सड़क हादसे में मौत हो गई. इसी गांव का रहने वाला 35 वर्षीय मजदूर नूनकरण पाथर 2019 चेन्नई से 20 किमी पहले सेलुरपेट स्टेशन में पानी लेने उतरा फिर चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिस में जान गंवा बैठा.केस लड़ने मृतक के पत्नी के पास पैसे नही थे लिहाजा रेलवे का मुआवजा भी नहीं मिला. जानकार बताते है कि बड़ी और रजिस्टर्ड फर्म में काम करने वाले मजदूरों का ही फर्म बीमा करवाती है. इसलिए ऐसे लोगों की डेड बॉडी वापस आ पाती है, लेकिन दलाल के कमीशन में ईंट भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों की मौत हुई तो उन्हें अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होता. जल्लाद ठेकेदार उन्हे ईंट भट्ठे में झोंकवा देते हैं.

इन सभी मामलों पर जिला श्रम पदाधिकारी गरियाबंद एल एन मिंज ने कहा कि लापता मजदूरों के संबंध में किसी भी प्रकार से कोई लिखित जानकारी परिजनों की ओर से नहीं आई है. परम्परागत तरीके से कई सालों से काम करने जा रहे मजदूरों को पंचायत के माध्यम से विभाग जागरूक करने की कोशिश करते आ रही है. जाने से पहले उन्हें पंचायत में मौजूद पलायन पंजी में सारे आधार भूत जानकारी उल्लेख कराना चाहिए. खुद के मोबाइल नंबर से लेकर जिसके माध्यम से जहा जा रहे उसकी जानकारी होनी चाहिए. साल भर पहले एक एप भी बनाया गया था. जिसमें मोबाइल नंबर पंजीयन कर मजदूरों की मॉनिटरिंग करने का उद्देश्य था. पर जागरूकता के अभाव में मजदूर अपेक्षा से कम जुड़े. उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में हमने बंधक बनाए गए मजदूर के 30 केस को हैंडल किया है. जानकारी के अभाव में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अब तक 250 मजदूरों को पुनर्वास योजना का लाभ दिया जा चुका है.