पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। मजदूर दिवस प्रतिवर्ष 1 मई को मनाया जाता है. इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस भी कहा जाता है. वर्तमान समय में मजदूरों को रोजगार न मिलना पलायन ओर धकेल रहा है. उन्हें अपने गांवों और शहरों से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है. मजदूरों का पलायन एक बड़ी समस्या है, जो वर्तमान समय में उन्हें खतरे में डाल रही है. मजदूर अपने गांवों और शहरों से दूसरे राज्यों या देशों में निर्माण कार्यों या उद्योगों के लिए निकलते हैं. इन मजदूरों के लिए अपने परिवारों और बच्चों को छोड़कर घर से दूर जाना एक बड़ी समस्या होती है. पलायन को मजबूर मजदूर हर साल ठगी, हत्या और दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं. इन सबके बीच गरियाबंद में भी यही हाल है. बेबस मजदूर पलायन को मजबूर हैं. उनमें नाबालिब बच्चे भी शामिल हैं.

देवभोग मैनपुर अनुविभाग क्षेत्र से लगभग 10 हजार मजदूर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए पलायन कर गए हैं. इनमें से आधा स्थायी तौर पर जमे हुए हैं, तो आधे हर साल सितंबर अक्टूबर में पलायन कर जून जुलाई में लौट आते हैं. देवभोग अनुविभाग में 28 हजार 500 मजदूर परिवार का जॉब कार्ड बना हुआ है, लेकिन इनमें से 24 हजार सक्रिय हैं. यानी 4 हजार परिवार के 8 हजार श्रमिकों का आंकड़ा है, जो काम पर आ नहीं रहे या फिर ज्यादा मजदूरी के लालच में पलायन कर गए हैं.

मैनपुर अनुविभाग में यह आंकड़ा ज्यादा है. पेट के लिए जाने वाले कई लोग प्रति वर्ष अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं. कुछ आंकड़े जो बाहर आ सके हैं, उससे इनकी जोखिमता को समझा जा सकता है. श्रमिकों के बुरे हालत के लिए श्रम विभाग भी जिम्मेदार हैं. जिला मुख्यालय से लगे विकासखंडों में श्रम विभाग की योजनाएं केंद्रित हैं. दूसरे जगह योजना केवल कागजों में चल रहा है.

केस नंबर- 1

ठगी का शिकार हुए, फिर बंधक बनाए गए

31 जनवरी को देवभोग ब्लॉक के 35 मजदूर परिवार जिनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या मिलाकर 100 लोग शामिल थे. वारंगल जिले के एक ईंट भट्ठे में बंधक बना लिए गए थे. भूखे प्यासे जूझ रहे परिवार के एक सदस्य ने वीडियो भेज कर मदद की अपील की थी. इस अपील के बाद जिला प्रशासन की टीम जाकर बंधकों को सकुशल छुड़ा लाई थी.

इसी साल फरवरी में बाड़ीगांव और भरूवामूड़ा के 25 मजदूर तेलंगाना के करीम नगर के ईंट भट्ठे में बंधक बनाए गए थे।दोनो केस में ओडिसा के मजदूर दलाल भट्ठे मालिक से ज्यादा रकम एडवांस के रूप में लिए,जिसके बदले बगैर पैसे के मजदूरों से काम लेने के साथ साथ जानवरो जैसा सलूक करने का मामला सामने आया था।

केस नंबर- 2

हत्या की संदेह पर मदद नहीं मिली

इंदागांव में रहने वाला 20 वर्षीय धर्मेंद्र नागेश मजदूर भद्राचलम के पनकोटा के ईंट भट्ठे में काम कर रहा था. 8 मई 2022 को अपने परिवार से फोन में बात कर सप्ताह भर के भीतर कमाए हुए पैसे लौट कर आने की बात कहा था. आधे घंटे बाद उसकी मौत की खबर भट्ठी मालिक ने दे दी.

पिता अभिराम मदद की गुहार लगाता रहा, लेकिन मदद नहीं मिली. ओडिशा के ठेकेदार के साथ अक्टूबर 2020 में झरगाव 30 वर्षीय नूनकरन पाथर एम मजदूरी करने के लिए चेन्नई निकला था. रास्ते में संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी, लेकिन मौत की कहानी आज भी फाइलों में दफन है.

केस नंबर- 3

हिंसा के भी हुए शिकार

झरगांव में रहने वाला अनंत राम पिता मोहन उम्र 20वर्ष चेन्नई के एक ईंट भट्ठे में 3 माह पहले काम करने गया था. 8अप्रैल 2023 को भाषा विरोधी हिंसा का शिकार हो गया. जरूरी सामान खरीदी करने बाजार गया तो स्थानीय लोगों ने बेदम पिटाई कर दी. इलाज के दरम्यान उसकी मौत हो गई.

मां-बाप के साथ मासूमों पर भी बोझ

मजदूरों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी ईंट भट्ठा और अन्य कामों में हाथ बटाते हैं. जिन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए, उनके कांधों पर भी बोझ नजर आ रहा है. छोटे-छोटे बच्चों को लेकर मां-बाप दूसरे राज्यों में मजदूरी करने को बेबस हैं. ठेकेदार भी कभी बंधक बनाकर तो कभी डरा धमकाकर परिवार को जानवरों जैसे काम करता है, लेकिन जिले में मजदूरों को रोजगार नहीं मिलने के कारण दूसरे राज्यों में जाकर जीवन यापन कर रहे हैं.

वहीं इस मामले में देवभोग जनपद सीईओ प्रतीक प्रधान ने कहा कि मनरेगा योजना के तहत पर्याप्त रोजगार दिया गया है. मांगों पर लगातार रोजगार सृजन किए जा रहें. बेरोजगारी भत्ता के लिए अब तक 115 आवेदन स्वीकृति मिल गई है. जागरूकता अभियान भी चलाएंगे.

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus