नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के केंद्र में भारतीय जनता पार्टी को लाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजे जाने का एलान किया गया है. अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पखवाड़े भर के अंदर लाल कृष्ण आडवाणी को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की घोषणा अनेक मायनों में महत्वपूर्ण है. इसे भी पढ़ें : कांग्रेस सांसद के दक्षिण भारत को अलग राष्ट्र बनाने की मांग पर भाजपा ने जताई आपत्ति…

वर्ष 1990 में राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा निकाली. हालांकि, आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया. 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया था. वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है, उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है. हालांकि, बाद में उन्हें बरी कर दिया गया.

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लालकृष्ण आडवाणी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के कराची में आठ नवंबर, 1927 को हुआ था. उनके पिता केडी आडवाणी और मां ज्ञानी आडवाणी थीं. विभाजन के बाद भारत आ गए. लालकृष्ण आडवाणी की शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई. बाद में भारत आकर उन्होंने मुम्बई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक किया.

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वर्ष 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की. तब से लेकर सन् 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे. इसके बाद वर्ष 1973 से 1977 तक उन्होंने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला. वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे. इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी सम्भाला.

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लालकृष्ण आडवाणी तीन बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं. आडवाणी पांच बार लोकसभा और चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे. वर्ष 1977 से 1979 तक पहली बार केन्द्रीय सरकार में कैबिनेट मन्त्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व सम्भाला. आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मन्त्री रहे.

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आडवाणी ने वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्रीय गृहमन्त्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून 2002 को उपप्रधानमन्त्री पद का दायित्व भी सौंपा गया. भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए.

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