पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। LALLURAM.COM की खबर का बड़ा असर हुआ है. खबर के बाद प्रशासनिक अमला एक्शन मोड में नजर आ रहा है. जच्चा-बच्चा मौत केस की मेडिकल टीम जांच करेगी. प्रशासनिक रडार में BMO है. इस लापरवाही से लापरवाहों पर कानूनी गाज गिर सकती है. वहीं जच्चा-बच्चा मौत केस की पीड़ितों ने कलेक्टर से न्याय की गुहार लगाई है. झाखरपारा जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविर में पीड़ितों ने कलेक्टर के नाम आवेदन सौंपा है.
दरअसल, कलेक्टर प्रभात मालिक के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल अपर कलेक्टर अविनाश भोई के समक्ष मृत नवजात के पिता राजेश यादव व प्रसव के दौरान मृत महिला के पति दिनेश विश्व कर्मा ने मामले की लिखित शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई है. ज्ञापन लेने के बाद एडीएम भोई ने एसडीएम अर्पिता पाठक समेत अन्य अफसरों से मामले में गहन चर्चा की. अविनाश भोई ने कहा कि मामला गंभीर है. कलेक्टर को अवगत कराने के बाद मामले की जांच के लिए टीम गठित की जाएगी.
मामले की जांच स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अफसर करेंगे. दोनों मामले में अस्पताल प्रबंधन ने पहले तो लापरवाही बरती फिर उसे ढकने का प्रयास किया. इस घटना की दो बड़ी लापरवाही जो बीएमओ के सक्रियता पर सवालिया निशान लगाता है.
लापरवाही नंबर- 1
बच्चे की संस्था में मृत्यु का उल्लेख मासिक रिपोर्ट में नही किया था
मामले का खुलासा लल्लूराम. कॉम ने 6 जून को कर दिया था. उसी रात को एसडीएम अर्पिता पाठक जिले में आयोजित टीएल की बैठक से लौटते ही रात साढ़े 8 बजे सिविल अस्पताल देवभोग पहुंचे. मामले की संज्ञान लेना शुरू कर दिया था. दोनों घटना के समय ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर व स्टाफ से पूछताछ कर मामले की जानकारी ले ली थी.
नियमानुसार घटना की रिपोर्टिंग नहीं होने के चलते बीएमओ डॉक्टर सुनील रेड्डी को जम कर फटकार भी लगाई थी. एसडीएम के इस रेंडम जांच का असर यह हुआ कि जिला सांख्यिकी विभाग को भेजे जाने वाले जन्म मृत्यु की मासिक रिपोर्ट में बच्चे की मृत्यु को जन्म के बाद संस्था में हुए मृत्यु की सूची में शामिल किया गया. इस सूची में शामिल होने के बाद अब इसके कारणों की जांच होगी.
लापरवाही नंबर- 2
मातृ मृत्यु निगरानी प्रतिक्रिया गाइड लाइन का पालन नहीं
गर्भवती भुवेंद्री की मौत शिशु के जन्म के बाद, फंस गए प्लेसेनटा को देवभोग अस्पताल में नही निकालने के कारण संस्था से बाहर हुआ. नियम के मुताबिक मातृ मृत्यु निगरानी प्रतिक्रिया(एमडीएसआर)के तहत मृत्यु के बाद इसकी जांच बीएमओ स्तर पर घटना के सप्ताह भर के भीतर होनी थी.
घटना की पूरी जानकारी एएनएम व मितानिन से लेकर चूक क्यों हुई इसकी विस्तृत रिपोर्ट को मासिक समीक्षा में रखना था, ताकि मामले की पुनरावृत्ति न हो सके. ऐसा ही आरंभिक जांच शिशु के मृत्यु में होना था. मासिक मृत्यु रिपोर्ट में घंटना का उल्लेख न किया, न ही दोनों मामलों की जानकारी सीएमएचओ दफ्तर या अनुविभाग स्तर के अफसरों को दी गई, बल्कि लेकिन बीएमओ मामले के खुलासे तक घटना से अनजान बने रहे.
साल भर से 102 वाहन नहीं
एसडीएम पाठक द्वारा किए गए आरंभिक जांच में चौकाने वाले तथ्य का भी खुलासा हुआ है. प्रसव पीड़ा से कराह रही भुवेंद्री के परिजन जिस 102 वाहन का घंटों इंतजार कर रहे थे उस वाहन की सुविधा सिविल अस्पताल का दर्जा प्राप्त देवभोग अस्पताल में नहीं है.
जिला प्रशासन भी मामले से अवगत तो है पर डीएमएफ फंड से रौशनी फैलाने में जुटी प्रशासन इस जरूरी सुविधा को उपलब्ध कराने में कोई रुचि नहीं दिखाई. झाखरपारा पीएचसी में मिनी एंबुलेंस मौजूद थी, जो भुवेद्री के घर से 500 मीटर दूरी पर था, लेकिन उसे पहुंचने में 4 घंटा देर क्यों लगा इसका जवाब भी स्वास्थ विभाग के पास नहीं है.
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