पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। वाह रे सिस्टम और वाह रे धरती के भगवान, तुम्हारी लीला अपरंपार है. परिजनों का आरोप है कि एक मासूम और मां की जान ले ली. रिकॉर्ड में 18 घंटे तक बच्चा जिंदा रहा, जब लापरवाही से मासूम की जान गई, तो कहा कि मृत पैदा हुआ. इतना ही नहीं नाल काटने की वजह से ज्यादा खून बहने से मां की भी मौत हो गई. जच्चा बच्चा दोनों की जिंदगी काल के गाल में समा गई. परिवार में खुशियां लौटने से पहले मातम में बदल गई. दो परिवार की खुशियों में काला ग्रहण समा गया.

परिवार ने कहा- अस्पताल की लापरवाही ने ली जान

दरअसल, अभाव से जूझ रहे देवभोग अस्पताल में बड़ी लापरवाही सामने आई है. लापरवाही के दो अलग-अलग मामले में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो गई. मामले की जांच के बजाए दबाने में गलत जानकारी रिकॉर्ड किया. अस्पताल प्रबंधन ने 12 घंटे तक जीवित बच्चे को स्टील बर्थ दर्शाया, तो नाल काटने के बाद ज्यादा खून बहने से मौत के कगार पर पहुंची जच्चा को रेफर कर पल्ला झाड़ लिया. मामले को दबाने रिकॉर्ड के जरिए केस को डायवर्ट किया गया.

बीएमओ का बेतुका बयान

इन सब के बावजूद हैरानी की बात है कि मामले से बीएमओ डॉक्टर सुनील रेड्डी अनजान बने हुए हैं. मामले के संबंध में पूछे जाने पर रेड्डी ने अंभिज्ञाता जाहिर करते हुए पता करता हूं बोला गया. उनके इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे अपनी जवाबदारी कितनी गंभीरता से निभा रहे होंगे.

केस नंबर- 1

पांच साल बाद मां बनी भाग्यवती, सिस्टम ने कोख उजाड़ दिया

झखरपारा में रहने वाले राजेश यादव और उसकी पत्नी भाग्यवती विवाह के 5 साल बाद संतान पाने की खुशी मना ही नहीं पाए थे और लापरवाही ने खुशी को मातम में बदल दिया. राजेश ने बताया कि 19 मई को प्रसव पीड़ा के बाद पत्नी को सुबह 6 बजे देवभोग अस्पताल में भर्ती कराया गया.

नर्स नहीं की इलाज, पिता को लगाई फटकार

भर्ती के कुछ घंटे बाद साढ़े 7 बजे बेटा पैदा हुआ. जच्चा बच्चा अस्पताल में प्रबंधन की निगरानी में रहे. रात करीबन 10 बजे के बाद बेटा का शरीर तपने लगा. ड्यूटी में तैनात स्टाफ नर्स को पिता बार बार बुलाता रहा. बगैर देखे नर्स भूख और कमजोरी के कारण होना बता कर बीमार शिशु को देखने नहीं आई. पिता का मन नहीं माना तो पहट 4 बजे ड्यूटी डॉक्टर को उठाने चला गया. उठते ही डॉक्टर की फटकार सुननी पड़ी.

बेबस पिता की आग्रह पर डॉक्टर 1 घंटे लेट पंहुचे. 5 बजे आते ही शिशु के सांस उखड़ गए थे. ऐसे में डॉक्टर ने रेफर का बहाना बनाता रहा. नाजुक हालातों के बीच फिर शिशु को 20 मई की सुबह 6 बजे मृत घोषित कर दिया.

जवाबदारी से बचने डिस्चार्ज पर्ची बनाया, बताया मरा हुआ पैदा हुआ

सवेंदनहीनता बच्चे के मरने के बाद भी जारी रहा. जवाबदारी से बचने 20 को किए गए डिस्चार्ज में बच्चे को मरा हुआ पैदा( स्टील बर्थ) बताया गया है, जबकि प्रसव के बाद वजन 2 किलो होना बता कर शिशु देखभाल केंद्र में भर्ती के पंजीयन में उसका निगरानी करना दर्शाया गया है. इतना ही भी भर्ती तत्काल बाद 19 को ही अस्पताल प्रबंधन ने आयुष्मान कार्ड के जरिए हितग्राही के खाते से प्रसव के लिए निर्धारित 3500 रुपए सरकारी खजाने में ट्रांसफर भी कर दिए गए. हैरानी की बात है कि इस 3500 में प्रसव में तैनात स्टाफ नर्स व डॉक्टर को भी सरकार इनाम के तौर पर इनसेंटिव देगी.

केस नंबर- 2

प्रसव पीड़ा से कराह रही जच्चा को 102 नहीं मिला, नाल काट मरने छोड़ा

दूसरा मामला भी झखरपारा में वार्ड 27 में रहने वाले मजदूर दिनेश विश्वकर्मा के परिवार का है. 21 मई की रात 10 बजे पत्नी भूवेंद्री को प्रसव पीड़ा हुआ. परिवार वाले 102 को कॉल किया. जवाब में सेवा उपलब्ध नही होने का जवाब मिला. एंबुलेंस की कोशिश के बीच लगभग रात 2 बजे झाखरपारा पीएससी का एंबुलेंस तब पहुंचा, जब बेटे को जन्म दे चुकी थी. घर की महिलाएं साथ मौजूद थी.

बेबस पिता अस्पतालों का कटता रहा चक्कर

एंबुलेंस के आते ही जच्चा-बच्चा के नाल समेत उसे 3 बजे देवभोग अस्पताल में भर्ती कराया गया. पति दिनेश ने बताया कि अस्पताल में नर्स ने नाल काट दिया, जिसके बाद खून बहते रहा. खून रुका नहीं तो अस्पताल ने उसे रेफर लेटर थमा दिया. लाचार पति बोला इसी हालत में हम गरीब कहां जाते. सुबह 5 बजे ओडिशा धर्मगढ़ के सरकारी अस्पताल पहुंचे. वहां भी हाथ खड़ा कर दिया गया. थोड़ी देर बाद जच्चे की मौत हो गई.

एक साल पहले हुआ था विवाह

लापरवाही के चलते मासूम के सिर से मां का साया उठ गया. अब दादी उसे डब्बे का दूध पिलाकर जतन कर रही है. दिनेश का विवाह 1 साल पहले हुआ था. यह उसका पहला संतान था. पत्नी की मौत के बाद उसका रो रो कर बुरा हाल है.

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