शब्बीर अहमद,भोपाल/वेंकटेश द्विवेदी,सतना। मध्य प्रदेश के सतना जिले के चित्रकूट स्थित सिद्धा पहाड़ को बचाने का प्रयास सफल हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि भूमि पवित्र नगरी चित्रकूट धाम के धार्मिक स्थल सिद्धा पहाड़ में उत्खनन की तैयारी चल रही थी. जिसे विपक्ष ने मुद्दा बनाया और सरकार को घेरा. अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने कहा है कि सतना के सिद्ध पहाड़ पर उत्खनन नहीं होगा. इसके लिए जिला प्रशासन को भी निर्देश दे दिए गए हैं. लल्लूराम डॉट कॉम ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था. जिस खबर का असर हुआ है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर लिखा है कि सिद्धा पहाड़ सतना जैसे अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर स्थान जो हमारे आस्था और श्रद्धा के केंद्र हैं, यहां की पवित्रता को अक्षुण्य रखा जाएगा. यहां उत्खनन किसी कीमत पर नहीं होगा. सतना जिला प्रशासन को निर्देश दे दिए गए हैं.
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कांग्रेस नेता नरेंद्र सलुजा ने ट्वीट कर लिखा है कि कांग्रेस इस पर चुप नहीं बैठेगी. जन आस्थाओं के विरोधी इस निर्णय के विरोध में हम सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ेंगे और भगवान श्री राम की यादों से जुड़े इस पहाड़ को नष्ट व ख़त्म नहीं होने देंगे. शिवराज सरकार ने अपनी गलती स्वीकारी है और कहा है कि यहाँ खनन नहीं होगा. यह सत्य की जीत है.
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उन्होंने आगे लिखा है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने दो दिन पूर्व ही सतना ज़िले के सिद्धा पहाड़ का मामला उठाया था. उन्होंने कहा था कि भगवान श्री राम के नाम का राजनीति के लिये उपयोग करने वाली भाजपा सरकार अब उनके अवशेषों को सुनियोजित तरीक़े से नष्ट करने का काम कर रही है.
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दरअसल सतना जिले के चित्रकूट के राम वन गमन पथ पर स्थित पवित्र सिद्धा पर्वत का अस्तित्व संकट में था. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में सिद्धा पहाड़ अस्थि समूह पर्वत था जिसका राक्षसों ने साधुओं को खाकर ढेर लगा दिया था. लाखों लाख हिंदू आस्था के प्रतीक इस त्रेतायुगीन पर्वत पर 15 वर्ष से बंद पड़ी लेटेराइट और बाक्साइड की एक खदान को फिर से खोलने के लिए कटनी के एक खनिज कारोबारी सुरेंद्र सिंह सलूजा ने इनवायरमेंट क्लीयरेंस के लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में आवेदन लगाया है.
बता दें कि एमपी हाईकोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2015 में सिद्धा पर्वत समेत चित्रकूट के तपोवन क्षेत्र के 9 स्थलों का सर्वेक्षण कराया गया था. इसी टीम में शामिल प्रभारी अधिकारी आशुतोष उपरीत और प्रभारी अधिकारी डॉ. रमेश चंद्र यादव ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि उत्खनन से धार्मिक महत्व का सिद्धा पर्वत नष्ट हो रहा है. इसकी बर्बादी से न केवल धार्मिक आस्था आहत होगी, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ेगा. बावजूद इसके इंडियन ब्यूरो आफ माइंस (आईबीएम) के जबलपुर स्थित रीजनल आफिस ने बंद पड़ी खनिज विहीन खदान के माइनिंग प्लान को आंख मूंद कर मंजूरी दे दी. इसके अलावा इस क्षेत्र को वाइल्डलाइफ सेंचुरी बनाने का प्रोजेक्ट भी भोपाल में धूल फांक रहा है.
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रामायण के अरण्यकांड में मिलता है सिद्धा पर्वत का उल्लेख
सिद्धा पर्वत का सर्वप्रथम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में मिलता है. तुलसीकृत रामचरित मानस में भी इसके महत्व को रेखांकित किया गया है. इन्हीं पुख्ता आधारों पर जनविश्वास है कि त्रेतायुग में पर्वतनुमा हड्यिों का ढेर देखकर वनवासी श्रीराम द्रवित हो उठे थे. उन्हें ऋषियों ने बताया था कि यह उन ऋषि-मुनियों की अस्थियों के ढेर हैं, जिन्हें राक्षसों ने मार कर खा लिया है. मान्यता है. वही अस्थि समूह अब सिद्धा पर्वत कहलाता है. यह वही स्थल है, जहां श्रीराम ने धरती से राक्षसों को नाश कर देने का संकल्प लिया था.
मानस से यह भी स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में सर्वत्र ऋषि-मुनियों के आश्रम हुआ करते थे. सिद्धा पर्वत का संबंध इन्हीं सिद्ध संतों से है. डेढ़ दशक बाद एक बार फिर सिद्धा पहाड़ को खोदने की सुगबुगाहट के बीच क्षेत्रवासी आक्रोशित है. उनका कहना है कि यहां खदान नहीं शुरू होने देंगे. भारतीय जनता पार्टी के मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी ने भी सिद्धा पहाड़ में खदान शुरू किए जाने का विरोध किया है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखा था. वहीं इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने सरकार को जमकर अड़े हांथों लिया था. कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया था.
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