रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में आखिरकार संशोधित आरक्षण विधेयक पारित होने के साथ प्रदेश में 76 प्रतिशत आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो गया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस आरक्षण विधेयक को प्रदेश के इतिहास में मील का पत्थर करार देते हुए इसे छत्तीसगढ़ के भविष्य का रोडमैप करार दे रहे हैं. आरक्षण के संशोधित विधेयक को लेकर लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है.

लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में बीजापुर महार समाज के कोषाध्यक्ष कैलाश रामटेके सरकार की पहल को स्वागत योग्य बताते हैं. वे कहते हैं कि विधेयक को बिना किसी द्वेष के सदन में प्रस्तुत किया गया. जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का निर्धारण आवश्यक है. आरक्षण को लेकर संघर्ष की जो स्थिति बनी थी, इसके मद्देनजर सरकार ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है.

प्रधान समाज के प्रांतीय युवा संगठन अध्यक्ष राकेश प्रतागिरी कहते हैं कि आरक्षण उनका संवैधानिक अधिकार है. कटौती के बाद आरक्षण को मूल स्वरूप में दोबारा लागू करवाने स्थानीय स्तर पर पुरजोर मांग उठी, हम सरकार को धन्यवाद देना चाहते है कि आरक्षण को लेकर समाजों की मांगों को गम्भीरता से लेते हुए विशेष सत्र में विधेयक लाया गया. नतीजतन 76 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक सदन में पारित हो पाया.

गोंडवाना समाज समन्वय समिति के जिला सचिव सुशील हेमला ने चर्चा में कहा कि सरकार की कोशिशें अवश्य रंग लाई है. इसके साथ ही इसमें स्थानीय स्तर पर होने वाली भर्तियों का प्रावधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए. आदिवासी समाज को और अधिक आरक्षण का लाभ दिलाया जा सके, इसके लिए सरकार आगे भी प्रयास करें.

अंबिकापुर से विकास गुप्ता कहते हैं कि समाज में अब भी विषमता नजर आती है, जिसे दूर करने के लिए आरक्षण एक आवश्यकता है. सरकार ने इस दिशा में सही कदम उठाया है. इसके साथ ही आरक्षण में आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग को और ज्यादा तवज्जों दिए जाने की जरूरत है. इससे सामाजिक के साथ-साथ आर्थिक समानता का मार्ग प्रशस्त होगा.

अम्बिकापुर के ही मुन्ना टोप्पो कहते हैं कि सरकार ने जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण का लाभ देकर सकारात्मक कदम उठाया है. इसके साथ जरूरी है कि इस व्यवस्था का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे. आरक्षण मिलने के बाद भी पद रिक्त रह जाते हैं, यह नीतियों के प्रचार-प्रसार में कमी का नतीजा है. इसे दूर करने की जरूरत है. अंबिकापुर के लव कुशवाहा कहते हैं कि आरक्षण का लाभ उस व्यक्त तक जरूर पहुंचना चाहिए, जो इसका हकदार है.

22 सालों में बदल गया आरक्षण का स्वरूप

बात करें छत्तीसगढ़ में आरक्षण के स्वरूप की तो प्रदेश के गठन के बाद से काफी बदलाव आया है. वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जातिगत जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 12 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी.

इससे पहले अनुसूचित जनजाति के लिए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था. इस तरह से अनुसूचित जनजाति के लिए बीते 21 सालों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं अनुसूचित जाति को एक प्रतिशत का फायदा हुआ है. अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़कर 27 हो गया है.