-
राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे नजीर अहमद वानी. राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे. सोमवार को नजीर अहमद वानी को सुपुर्दे-खाक किया गया.
-
नजीर अहमद वानी ने 2004 में आर्मी ज्वाइन की थी, वीरता के लिए दो बार उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
-
शुरुआत में आतंकी थे वानी, बाद में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया
श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर के शोपियां में रविवार को मुठभेड़ में शहीद हुए लांस नायक नजीर अहमद वानी (38) कभी खुद आतंकी थे. हालांकि बाद में उन्होंने समर्पण कर दिया था. आर्मी ने वानी को सच्चा सैनिक बताया है. उन्हें 2007 और इसी साल अगस्त में वीरता के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
मुठभेड़ में 6 आतंकी मारे गए थे. वानी के गांव के आसपास काफी आतंकी गतिविधियां होती हैं. सेना के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया के मुताबिक, “वानी को बाटागुंड में मुठभेड़ के दौरान गोलियां लगी थीं. उन्हें तुरंत अस्पताल लाया गया लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. दुख की इस घड़ी में आर्मी वानी के परिवार के साथ है.” सोमवार को अंतिम संस्कार के दौरान उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया और 21 बंदूकों की सलामी दी गई. उनके परिवार में पत्नी, बेटा और बेटी हैं.
21 बंदूकों की दी गई सलामी
कुलगाम के चेकी अश्मुजी गांव के रहने वाले वानी शुरू में आतंकी थे लेकिन बाद में हिंसा से किनारा कर लिया. 2004 में उन्होंने आर्मी ज्वाइन की. टेरिटोरियल आर्मी की 162वीं बटालियन से उन्होंने करियर की शुरुआत की.
हिजबुल और लश्कर से जुड़े थे आतंकी
25 नवंबर को शोपियां के हिपुरा बाटागुंड इलाके में 6 आतंकी मारे गए थे, जिसमें से चार हिजबुल मुजाहिदीन और दो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे. उनकी पहचान उमर मजीद गनी, मुश्ताक अहमद मीर, मोहम्मद अब्बास भट, मोहम्मद वसीम वगई, खालिद फारूक मली के रूप में हुई. उमर गनी बाटमालू एनकाउंटर के दौरान बच निकला था. पिछले दिनों उसकी तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें उमर लाल चौक के आसपास नजर आया था. बीते दो साल में वह कई जवानों और आम नागरिकों की हत्या में शामिल रहा था.
सुरक्षाबलों के काफिले पर हुआ पथराव
सुरक्षाबलों की कार्रवाई के मद्देनजर शोपियां में मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी. इसके बाद भी प्रदर्शनकारियों ने मुठभेड़ के बाद लौट रहे जवानों के काफिले पर पथराव किया. जवाबी कार्रवाई में कुछ पथरबाज जख्मी हुए.