सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। बच्चा जो बोली बोलता है, उसमें अच्छे से समझता है. इस आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 16 बोलियों में छत्तीसगढ़ में पढ़ाई हो रही, इन बोलियों में पुस्तक का प्रकाशन किया गया है. यही नहीं इन अलग-अलग बोली-भाषाओं में पढ़ाने के लिए शिक्षक दक्ष हो रहे हैं. इसका व्यापक असर अगले सत्र से देखने को मिलेगा.

SCERT के संचालक राजेश सिंह राणा ने लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में बताया कि 16 बोलियों में पुस्तक पिछले साल छप चुकी है, और इस साल कक्षा पहली और दूसरी के लिए उनके बोली-भाषाओं में पढ़ाई अच्छे से कराई जाएगी. शिक्षक सभी बोली-भाषाओं को बोलने में सक्षम नहीं थे, इसलिए ऑनलाइन कोर्स शिक्षकों के साथ-साथ DEO-DMC को कराया जा रहा है, जिससे स्थानीय बोली में पढ़ाई हो.

जब समझेंगे तब भी तो समझाएंगे

अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग बोली-भाषाएँ बोली जाती है. ऐसे में छत्तीसगढ़ में पाँच अलग-अलग राज्य के बॉर्डर के ज़िलों में लोग निवासरत हैं, साथ ही स्थानीय बोलियों में भी विभिन्नता है. बोलियों में पढ़ाने में दिक्कत न हो इसीलिए शिक्षकों को इन बोली-भाषाओं में दक्ष किया जा रहा है.

16 बोलियों में है पाठ्य पुस्तक

बोली-भाषाओं को लेकर पहले सर्वे किया गया था. सर्वे के अनुरूप, पाठ्यपुस्तक तैयार कराया गया है. कई भाषाई पुस्तक स्कूलों पर बच्चों तक पहुँचाया गया है, जैसे हिंदी और छत्तीसगढ़ी, हिंदी और हलबी, हिन्दी और गोंडी, अन्य बोलियों में पुस्तक प्रकाशित किया गया है.

बोलियों में पढ़ाई का उद्देश्य

बच्चे जिस भाषा में घर में बात करते हैं, उस भाषा में अगर शिक्षा दी जाए तो बच्चे बेहतर समझेंगे. अगर दूसरी भाषाओं में अचानक बच्चों को शिक्षा दी जाए तो पहले भाषा समझने में ही उलझ जाएंगे, और पाठ्य सामग्री को नहीं समझ पाएंगे. इसलिए प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय बोली भाषाओं में दी जा रही है.

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