जयपुर. प्रदेश के सोम, जाखम और माही नदियों के त्रिवेणी संगम बेणेश्वर तीर्थ स्थल पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा पर आयोजित होने वाला राष्ट्रीय बेणेश्वर जनजाति मेला है. डूंगरपुर जिला प्रशासन और बेणेश्वर धाम ट्रस्ट ने बेणेश्वर मेला 2023 की पूर्व तैयारियों के संबंध में समस्त जिला स्तरीय अधिकारी और मंदिर ट्रस्ट की बैठक 12 जनवरी को शाम 4 बजे उपखण्ड कार्यालय साबला में रखी है. जनजाति मेला एक राष्ट्रीय स्तर का आयोजन है और इसमें विशाल संख्या में सम्मिलित होने वाले मेलार्थियों को देखते हुये बेहतर और पुख्ता इंतजाम प्रशासन द्वारा किए जाते हैं. ताकि मेलार्थियों को किसी प्रकार की असुविधाएं ना हो. प्रतिवर्ष विभागवार दिये गये दायित्वों और की गई तैयारियों की विभिन्न विभागाध्यक्षों जानकारी प्रशासन को देते हैं.

ये देश का अनूठा और सबसे बड़ा आदिवासी मेला है जो लाखों भक्तों को आकर्षित करता है. यह मेला प्रतिवर्ष राजस्थान के डूंगरपुर में आयोजित किया जाता है. बेणेश्वर मेला शिव मंदिर में स्थित पवित्र शिव लिंग से लिया गया है. राजस्थान के शहर डूंगरपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बेणेश्वर. यहां के सोम और माही नदियों के संगम पर बने स्थित शिव मंदिर के परिसर में हर साल माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर लआदिवासियों का महाकुंभ एकत्र होता है. यहां स्थित भगवान शिव मंदिर के निकट भगवान विष्णु का भी मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि जब भगवान विष्णु के अवतार मावजी ने यहां तपस्या की थी, यह मंदिर उसी समय बना था.

300 साल पुरानी है अस्थियां विसर्जन की परम्परा

मुख्य मेले के दिन पवित्र बेणेश्वर धाम में तीन नदियों के संगम तीर्थ में अस्थियों का विसर्जन कर पितरों की मुक्ति की कामना की जाती हैं. सोम, माही जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई जाती है. मान्यता है इस स्थान पर अस्थियां विसर्जन से मोक्ष मिला है. महाकुंभ में राजस्थान सहित गुजरात, मध्यप्रदेश राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में अस्थियां विसर्जित करने आते हैं. सूर्योदय से पहले शुरू हुए अस्थि विसर्जन से वातावरण में शोक और विलाप के स्वर भी गूंजते रहते हैं.