रायपुर. प्रदेश में तीसरी लहर के बीच लॉकडाउन न लगने को लेकर कई प्रकार की चर्चाएं हो रही है. लेकिन इसके पीछे का कारण वो चर्चाएं नहीं बल्कि कुछ और है. यही कारण है कि पूरे देश में कही भी लॉकडाउन नहीं लगाया गया है.
भारत में पिछले एक हफ्ते से औसतन प्रतिदिन कोरोना के मामलों में इजाफा जारी है. 27 दिसंबर 2021 के बाद से लगातार संक्रमण के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है. 27 दिसंबर को जहां 6780 मरीज मिले थे, वहीं 13 जनवरी को 1,93,418 मरीज सामने आए. लेकिन क्या इस संकट का मतलब यह है कि दूसरी लहर के दौरान डेल्टा वेरिएंट के फैलने के बाद जैसे हालात हो सकते हैं? क्या लॉकडाउन लगाना होगा? ऐसे ही तमाम बिंदुओं पर आधारित यह विश्लेषण:
राष्ट्रीय स्तर पर सात दिनों के औसत को देखें तो मौत के मामले नहीं बढ़े हैं. इसकी वजह यह रही कि केरल में ही आधी से ज्यादा मौतें हो रही थीं. इसलिए केरल को अलग करके आंकड़ों को देखना होगा. 22 दिसंबर के बाद लहर के 23वें दिन सीएफआर यानी औसतन मृत्यु दर डेल्टा वेरिएंट के दौरान 0.64 फीसदी रही थी, जो अब ओमीक्रोन के दौरान करीब 0.07 फीसदी है.
इस लहर से कैसे निपटें?
भले ही इस लहर में लोग अस्पताल में भर्ती न हो रहे हैं, लेकिन इससे गरीब लोग प्रभावित हो रहे हैं. अगर ऐसे लोग संक्रमण के चलते दो हफ्ते के लिए आइसोलेशन में चले गए तो उन्हें जिंदगी गुजारने के लिए कर्ज लेना पड़ेगा. ऐसे करीब 20 लाख लोग हैं जो संक्रमण की वजह से किसी न किसी तरह प्रभावित हो रहे हैं.
लेकिन सतर्कता का मतलब दहशत नहीं
सावधानी बरतने का यह कतई मतलब नहीं है कि लोग अपने आपको घरों में कैद कर लें और अपना कारोबार बंद कर दें. ऐसा इसलिए कि अस्पताल में भर्ती होने का खर्च कुछ लोगों के लिए कहीं ज्यादा होता है और इस लहर में जरूरतमंदों को ही इसका फायदा मिले. दिल्ली में संक्रमण के मामले देखें तो पिछले साल के पीक के करीब जा चुके हैं. लेकिन दिल्ली में इस बार 13 जनवरी को महज 2,969 लोग ही अस्पतालों या कोविड सेंटर पहुंचे जो पिछली लहर के पीक के दौरान का 14 फीसदी हैं.
सतर्कता जरूरत, भर्ती होने से गरीबों पर बढ़ेगा बोझ
तीसरी लहर में मौतें कम होने के बावजूद सरकार की ओर से बार-बार सावधान रहने की अपील की जा रही है. इसकी वजह यह है कि अस्पताल में भर्ती होने से हर घर पर खर्च का बोझ बढ़ जाएगा. गरीब तबके की 60 आबादी अपने खर्च का 30 अस्पताल में खर्च कर देती है. यह 2017-18 के एनएसओ के सर्वे पर आधारित रिपोर्ट है. 20 फीसदी अमीर आबादी अस्पताल पर करीब 15 खर्च करती है. हालांकि अभी अस्पतालों में स्थिति सामान्य है और तमाम शासकीय अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए बैड की व्यवस्था अतिरिक्त की गई है.