राजकुमार भट्ट, रायपुर. छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में से एक बहुचर्चित सीट है राजनांदगांव. कहानी एक ऐसी सीट की जहां राजपरिवार का दबदबा रहा है. बात एक ऐसी सीट की जिसे जीतकर रमन सिंह हीरो बन गए थे. चर्चा उस सीट की जहां से सांसद बनने वाले के दामन में रिश्वत के दाग भी लगे और रिपोर्ट उस संसदीय क्षेत्र की जहाँ कांग्रेस बनाम कांग्रेस की लड़ाई हुई. ऐसे राजनांदगांव सीट में इस बार मुकाबला दिग्गज बनाम न तो दिग्गज है और न ही दिग्गज बनान किसी नए चेहरे के बीच. बल्कि इस बार मुकाबला उन दो नए चेहरों के बीच जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं. हालांकि इस सीट पर प्रतिष्ठा दाँव पर किसी का है तो वो है पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का. क्योंकि रमन सिंह राजनांदगांव से विधायक और इसी सीट वे पहली बार सांसद बनकर लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बने. तो आखिर किस तरह है राजनांदगांव का राजनीतिक सफरनामा, क्या यहां का सियासी समीकरण, क्या कांग्रेस कर पाएगी इस सीट पर वापसी या मोदी के सहारे एक बार फिर बीजेपी की हो जाएगी नैय्या पार….? पढ़िए सत्ता का संग्राम-2019 हमारी ये खास रिपोर्ट-

 

खैरागढ़ राजपरिवार

राजपरिवार का रहा है दबदबा 
यह इलाक कभी खैरागढ़ राजपरिवार का माना जाता रहा. यहां से लंबे समय तक सिर्फ राजपरिवार के लोग ही चुनाव जीतते रहे हैं. राजपरिवार के सहारे राजनांदगांव सीट कांग्रेस का गढ़ बन गई थी. राजनांदगांव लोकसभा सीट पर पहला चुनाव सन् 
1962 को हुआ था. इस चुनाव में खैरागढ़ राजघराने के मेजर राजा बहादुर बीरेंद्र बहादुर ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 1967 में हुए चुनाव में उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी ने जीत दर्ज की. लेकिन इस दौर में कांग्रेस दो भाग में विभाजित हो गई. और राजनांदगांव सीट में मुकाबला कांग्रेस बनाम कांग्रेस की बन गई. दरअसल हुआ यह कि कांग्रेस के दो धड़े में रानी पद्मावती ने राष्ट्रीय कांग्रेस संगठन (एनसीओ) का दामन थाम लिया था.वहीं इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस ने  मुंबई के व्यवसायी रामसहाय पांडेय को मैदान में उतारा. नतीजा रामसहाय ने राज परिवार को पटकनी देते हुए चुनाव जीत लिया

आपातकाल में कांग्रेस का हुआ नुकसान
बस्तर और कांकेर की तरह छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव सीट पर भी आपातकाल गहरा असर दिखा. आपतकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव कांग्रेस को नुकसान हुआ. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय लोकदल की टिकट पर मदन तिवारी ने कांग्रेस के रामसहाय पांडेय को 
90 हजार के भारी मतों से पराजित किया.

फिर हुई राजपरिवार की वापसी, लेकिन हैट्रिक नहीं बनी
एक दौरा ऐसा भी जब राजनांदगांव सीट पर खैरागढ़ राजपरिवार की फिर से वापसी हुई. कांग्रेस की टिकट पर शिवेंद्र बहादुर सिंह 1980 और फिर 1984 का चुनाव लगातार जीते, लेकिन 1989 में हैट्रिक बनाने से चुक गए. 1989 के चुनाव भारतीय जनता पार्टी दुर्ग से धर्मपाल गुप्ता को राजनांदगांव लेकर आई और यह गणित काम कर गया.धर्मपाल गुप्ता ने शिवेंद्र बहादुर को 70 हजार मतों के अंतर से पराजित किया. हालांकि यह कामयाबी गुप्ता और भाजपा 1991 में के चुनाव में दोहरा नहीं पाए और बाजी पलट गई. कांग्रेस की टिकट पर राजपरिवार के शिवेंद्र बहादुर ने धर्मपाल गुप्ता को 50 हजार मतों के अंतर से पराजित किया.

ये और बात थी कि अब राजनांदगांव से राजपरिवार का वर्चस्व खत्म होने को दिखाई दे रहा था. क्योंक 1996  में हुए चुनाव में भाजपा के अशोक शर्मा ने शिवेंद्र बहादुर को हरा दिया. इसके बाद 1998 में कांग्रेस की टिकट पर दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा चुनाव लड़े और उन्होंने भाजपा के अशोक शर्मा को हरा दिया.

राजनांदगांव लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 को हुआ था, जिसमें खैरागढ़ राजघराने के मेजर राजा बहादुर बीरेंद्र बहादुर ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 1967 में हुए चुनाव में उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी ने जीत दर्ज की. लेकिन इसके बाद हुए कांग्रेस के दो धड़े में रानी पद्मावती ने राष्ट्रीय कांग्रेस संगठन (एनसीओ) का दामन था, वहीं इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस ने  मुंबई के व्यवसायी रामसहाय पांडेय को मैदान में उतारा. रामसहाय पांडेय को चुनाव में जहां 157256 वोट, वहीं रानी पद्मावती को 58286 वोट मिले.

 

डॉ. रमन सिंह बने हीरो
अविभाजित मध्यप्रदेश में 1999 में एक ऐसा दौर भी आया जब कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा के सामने भाजपा को कोई ढंग का प्रत्याशी नहीं मिल रहा था. ऐसी स्थिति में भाजपा ने अपने युवा तुर्क जो कि 98 का विधानसभा चुनाव हार चुका था उसे प्रत्याशी बनाया. नाम था डॉ. रमन सिंह. तब के चुनाव में डॉ. रमन सिंह को बलि का बकरा भी कहा गया था. लेकिन बुलंद सितारों के डॉ. रमन सिंह ऐसा राजयोग बना कि वे उन्होंने मोतीलाल को 99 के चुनाव में 70 हजार के भारी मतों से हरा दिया. यहीं से डॉ. रमन सिंह भाजपा के हीरो बन गए. बाद फिर रमन सिंह नया राज्य छत्तीसगढ़ बनने के बाद लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बने.

स्टिंग फंसे भाजपा प्रत्याशी, राजपरिवार की फिर लगी लॉट्री
साल 2004 यह नया राज्य छत्तीसगढ़ में लोकसभा का पहला चुनाव था. राजनांदगांव सीट पर प्रदीप गांधी भाजपा से चुनाव लड़े. उन्होंने खैरागढ़ राजपरिवार के देवव्रत सिंह को हराया. लेकिन प्रदीप गांधी खराब किस्मत के निकले. 2007 में पैसे लेकर सवाल पुछने वाले स्टिंग में फंस गए. रिश्वत के लगे दाग के बाद नतीजा उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. और फिर उपचुनाव में राजपरिवार के देवव्रत की लॉट्री लग गई. देवव्रत सिंह ने भाजपा प्रत्याशी लीलाराम भोजवानी को हराकर सांसद बने. हालांकि वे 2009 के चुनाव में अपनी जीत बराकर नहीं रख पाए. 2009 में साधारण परिवार के मधुसूदन यादव ने देवव्रत सिंह को 1 लाख के भारी मतों पराजित कर दिया.

 

पिता की विरासत के साथ बेटे का हुआ राजनीति में पदार्पण
साल 2014 यह मोदी लहर वाला वक्त था. इसी वक्त में पिता की विरासत के साथ एक बेटे का राजनीति में पदार्पण हो रहा था. नाम था अभिषेक सिंह. तीन बार के मुख्यमंत्री रहने वाले रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह. 2014 में भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद मधुसूदन की टिकट काटकर रमन सिंह के बेटे अभिषेक को चुनावी मैदान में उतारा. मोदी लहर का यहां ऐसा असर हुआ कि अभिषेक सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश्वर वर्मा को ढाई लाख के भारी मतों से पराजित कर दिया.

राजनांदगांव लोकसभा में शामिल विधानसभा

राजनांदगांव लोकसभा में नौ विधानसभा आते हैं, इसमें पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला-मानपुर इनमें से डोंगरगढ़ विधानसभा अनुसूचित जाति और मोहला-मानपुर विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इनमें से राजनांदगांव और खैरागढ़ को छोड़कर बाकी छह सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी हुए हैं. केवल राजनांदगांव में भाजपा के डॉ. रमन सिंह और खैरागढ़ से जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के देवव्रत सिंह विजयी हुई हैं.

2019 में दो नए चेहरों के बीच मुकाबला
इस बार यहां से चुनाव लड़ने वाले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी लोकसभा के लिए बिल्कुल नए चेहरे हैं. कांग्रेस ने जहां खुज्जी के पूर्व विधायक भोलाराम साहू को प्रत्याशी बनाया है तो वहीं भाजपा ने संगठन के नेता संतोष पाण्डेय को. भले ही यहां चेहरा संतोष पाण्डेय हो लेकर लोग इसे सही मायने में रमन सिंह का ही चुनाव मान रहे हैं. क्योंकि राजनांदगांव विधानसभा रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र, जबिक इस लोकसभा सीट में आने वाला कवर्धा रमन सिंह का गृह नगर.

अब देखिए इन परिस्थितियों के बीच 2019 में विजय इस सीट पर किसे मिलती है कांग्रेस को या बीजेपी को.

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