अंकित तिवारी, रायसेन (बरेली)। त्रेतायुगीन योद्धा जामवंत ने द्वापर युग में अपने हाथों स्थापित की थी श्रीगणेश की मूर्ति। प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ने के कारण तिलगणेश के नाम से विख्यात और चमत्कारिक मूर्ति है। यह रायसेन जिले के बरेली तहसील में जामवन्त गुफा से 6 किलोमीटर दूर विंध्याचल की तलहटी में स्थित है। जामवन्त की गुफा जामगढ़ के पास है। भगदेई के मंदिर के पास त्रेता में 8 भुजी गणेश मूर्ति की जामवन्त ने स्थापना की थी और द्वापर में 6 भुजी गणेश की स्थापना की थी जिसे तिल गणेश कहते है।

बरेली तहसील के ग्राम उदयगिरी और पपलई के पास स्थित इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विराजमान गणेश प्रतिमा कई मायनों में चमत्कारिक मानी जाती है। माना जाता है कि यह मूर्ति प्रतिवर्ष एक तिल बराबर बढ़ रही है। इसलिए इसे तिल गणेश कहा जाता है। इसके साथ ही पहाड़ाें के ऊपर घने जंगल में स्थित इस दिव्य स्थान के चारों ओर पुरा सम्पदा भी बिखरी पड़ी है। हजारों टन वजनी पाषाण यहां मौजूद है। बताया जाता है कि यह शिलालेख रामायण व महाभारत काल के समकालीन है। इससे आगे जामवंत के पैर जामवंत की गुफा, 11वीं सदी का पाषाण शिव मंदिर सहित अनेक पुरातात्विक महत्व की सम्पदाएं मिलती है। जिससे यह स्थान दर्शनीय और रोमांचकारी है। सतयुग में गणेश की साकार पूजा होती थी, त्रेता युग में 8 भुजी गणेश और द्वापर में 6 भुजी गणेश मूर्ति की पूजा होती थी। अब कलयुग में 4 भुजी गणेश की पूजा हो रही है।

कठिन रास्ते से होकर जाना पड़ता है मंदिर तक
जिले के बरेली तहसील के इस प्राचीन स्थान तक पहुंचने के लिए पहाडों के बीच बने पथरीले और उबड़ खाबड़ मार्ग से होकर जाना पड़ता है। जो कि कई वर्षों से यथास्थिति में बना हुआ है। प्रतिमाह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यहां लोग गणेश जी की पूजा करने पहुंचते है। यहां खरगोन जामगढ़, भगदेई सेनकुआ, वापोली, मेहरागांव, उदयगिरी से होकर श्रद्धालुओं को आना पड़ता है। इस मार्ग का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र और काफी दुर्गम है। आसपास के लोग इस मार्ग को सुधारने और सड़क बनाने की मांग सालों से कर रहे है।

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