शरीर के किसी अंग का ना होना कोई शर्म की बात नहीं है, ना ये हमारी सफलता के आड़े आता है. बस जरूरत है तो अपने अंदर की झिझक को खत्म कर आगे आने की. हम किसी से कम नहीं, ना ही हम अलग हैं तो बर्ताव में फर्क क्यों करना?  हमें दया की नहीं आप सबके साथ एक समान ज़िन्दगी जीने का हक चाहिए.

रायपुर . यह हौसले की ही उड़ान है कि एक दुर्घटना की वजह से उपजी शारीरिक कमजोरी भी छत्तीसगढ़ के एक युवा के रास्तों की रुकावट नहीं बन सकी और आज वो लोगों के लिए मिसाल बन गया है. हम बात कर रहे हैं एक ऐसे युवा चित्रसेन साहू की जिसने एक ट्रेन दुर्घटना में अपने दोनों पैर खो दिये और खुद को डिप्रेशन से बाहर निकालते हुए आज ब्लड रनर, राष्ट्रीय व्हील चेयर खिलाड़ी और अब देश दुनिया को अपनी हौंसले की उड़ान से परिचित करा देना चाह रहा है.

पेशे से इंजीनियर चित्रसेन 16 सितंबर को 15 दिन के अफ्रीका महाद्वीप के प्रवास पर जा रहे हैं. जहां वे 20 सितंबर से तंजानिया की 5895 मीटर ऊंची किलिमंजारो पर्वत की चढ़ाई शुरु करेंगे. वे देश के पहले डबल लेग एंप्युटी माउंटेनियर है जो अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो को फतह करेगा और यह नेशनल रिकॉर्ड भी होगा. हमेशा से ही अपने लोगों के हक के लिए काम किया है ताकि उन लोगों के साथ भेदभाव ना हो. शरीर के किसी अंग का ना होना कोई शर्म की बात नहीं है ना ये हमारी सफलता के आड़े आता है बस जरूरत है तो अपने अंदर की झिझक को खत्म कर आगे आने की. हम किसी से कम नहीं ना ही हम अलग हैं तो बर्ताव में फर्क क्यों करना हमें दया की नहीं आप सबके साथ एक समान ज़िन्दगी जीने का हक चाहिए.”

चित्रसेन पिछले दो सालों से पर्वतारोहण कर रहे हैं. उनका कहना है कि पर्वतारोही बनने के इस सपने को पूरा करने के लिए राहुल गुप्ता ने मदद की. राहुल गुप्ता एवरेस्ट को फतह करने वाले छत्तीसगढ़ के पहले पर्वतारोही हैं. चित्रसेन ने बताया कि पर्वतारोहण का काम उनके लिए आसान नहीं था लेकिन राहुल गुप्ता से उन्होंने इसके गुर सीखे. चित्रसेन ने बताया कि दो साल से मैं उनके संपर्क में था, जिसके पैर कटे हैं उसके लिए क्या पॉसिबिलिटी है कि वो पर्वतारोहण कर सकता है कि नहीं. टेक्ऩॉलाजी की जरुरत है. पिछले दो साल से मेहनत कर रहे थे. उसी दौरान हम छोटे-छोटे ट्रैक पर चले गए. हिमाचल गया था. हिमाचल में 10 दिन की ट्रेनिंग किया. वो काफी मददगार रहा, वहां का टम्परेचर किलमिंजारों के टंपरेचर के समान है. उसी के बाद किलिमिंजारों जाने का फैसला लिया.

इस दौरान राहुल गुप्ता ने कहा कि “अपने पैरों पर खड़े हैं” मिशन के पीछे हमारा एक मात्र उद्देश्य है सशक्तिकरण और जागरूकता, जो लोग जन्म से या किसी दुर्घटना के बाद अपने किसी शरीर के हिस्से को गवां बैठते हैं. उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाना, उनके नाम के आगे से विकलांग, दिव्यांग शब्द को हटाना ताकि उन्हें समानता प्राप्त हो ना किसी असमानता के शिकार हो. इसी पहल के तहत हमने फैसला किया है कि हम विकलांग, अशक्त या दिव्यांग जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करेंगे.